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वैज्ञानिकों ने विकसित की तकनीक, कोल डस्ट के प्रदूषण से मिलेगी निजात Dhanbad News

सिंफर के वैज्ञानिकों ने तकनीक विकसित कर टाटा मोटर्स मुंबई को सौंप दी है जो इसका वाणिज्यिक उपयोग जल्द शुरू करेगी। ओसीपी से निकलने वाले वाहनों से 80 फीसद तक वायु प्रदूषण फैलता है।

By mritunjayEdited By: Published: Tue, 18 Jun 2019 09:34 AM (IST)Updated: Tue, 18 Jun 2019 12:49 PM (IST)
वैज्ञानिकों ने विकसित की तकनीक, कोल डस्ट के प्रदूषण से मिलेगी निजात Dhanbad News
वैज्ञानिकों ने विकसित की तकनीक, कोल डस्ट के प्रदूषण से मिलेगी निजात Dhanbad News

धनबाद, तापस बनर्जी। दशकों से कोयला व अन्य खनिजों का उत्पादन करनेवाले धनबाद जैसे कई शहर कोयले के कण मिश्रित धूल के गुबार से परेशान हैं। हवा में घुलकर ये कण जहां सांसों में जहर घोल रहे हैं वहीं प्रदूषण का स्तर बढ़ाकर कई बीमारियों की वजह बन रहे हैं। अब एक नई तकनीक इस समस्या का समाधान लेकर आई है। इस तकनीक के तहत हवा में उडऩे वाली धूल को ठोस रूप दिया जा सकता है। कोयला खदानों के कारण उडऩे वाली कोल डस्ट को यदि ठोस में बदल जाए तो प्रदूषण से थर्रा रहे धनबाद जैसे शहरों को संजीवनी मिल जाएगी। इस सोच को संभव कर दिखाया है केंद्रीय खनन व ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर) धनबाद के वैज्ञानिकों ने।

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सिंफर के वैज्ञानिकों ने तकनीक विकसित कर टाटा मोटर्स मुंबई को सौंप दी है, जो इसका वाणिज्यिक उपयोग जल्द शुरू करेगी। दरअसल ओपन कास्ट माइंस से निकलने वाले वाहनों से 80 फीसद तक वायु प्रदूषण फैलता है। नई तकनीक धूल को ठोस रूप में तब्दील कर ब्रिकेट (ठोस रूप) बना देगी, जो जलाने के काम आ सकेगी। इसके लिए रोड डस्ट कलेक्टिंग व ब्रिकेटिंग सिस्टम तैयार हो गया है। जो ओपन कास्ट माइंस (खुली खदानें) में दौडऩे वाले वाहनों के लिए विकसित किया गया है। सिंफर ने अपनी इस तकनीक को पेटेंट कराने की तैयारी कर ली है।

प्रोजेक्ट लीडर सिंफर वैज्ञानिक डॉ. एसके चौल्या ने बताया कि इस प्रणाली से खदान और कोयला उद्योग क्षेत्र की कोल डस्ट को एकत्रित किया जा सकेगा। एकत्रित किए गए कोयले के कणों को विभिन्न रसायनों के माध्यम से कोल ब्रिकेट में बदला जाएगा। इनका घरेलू जलावन के रूप में उपयोग हो सकेगा। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी यह तकनीक बेहद कारगर होगी। क्योंकि हवा को यह साफ कर देगी। इससे कोल डस्ट से होने वाले प्रदूषण के कारण हो रही बीमारियों को भी कम किया जा सकेगा।

पानी भी बचेगा : जहां कोयला खदान वाले इलाके में धूल प्रदूषण से बचने को जल छिड़काव होता है। पर यह व्यवस्था अति प्रभावशाली नहीं है। पानी के सूखते ही धूल कण फिर हवा में उडऩे लगते हैं। इसके अलावा सड़क पर पानी छिड़कने से कीचड़ भी भर जाता है। इससे डंपर चालकों को परेशानी होती है। इस तकनीक से न सिर्फ वातावरण की रक्षा होगी बल्कि जल संरक्षण भी होगा।

सिंफर की ओर से जनता के हितों को ध्यान में रख लगातार शोध हो रहे हैं। इस तकनीक से पूरी दुनिया के लिए समस्या बने कोयला धूल प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सकेगा।

-डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, निदेशक, सिंफर

इस तकनीक का सफल ट्रायल हो चुका है। कोलियरी में चलनेवाले वाहनों में इसका इस्तेमाल शुरू किया जा सकता है। स्टील प्लांट और सीमेंट प्लांट के लिए भी ऐसी ही विशेष तकनीक पर शोध जारी है।

-डॉ. एसके चौल्या, प्रोजेक्ट लीडर, सिंफर

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