वह 15 जनवरी का ही दिन था जब शिबू सोरेन ने बराकर नदी तट पर बजाई थी डुगडुगी, याद में हर साल खिंचड़ी मेला
Shibu Soren 1973 में शिबू सोरेन टुंडी में महाजनों व सामंतों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। इसी क्रम में झामुमो के स्थापना दिवस को लेकर बैठक करने शिबू सोरेन इस इलाके में पहुंचे थे। उन्हें बताया कि नंढा महादेव मंदिर में आदिवासियों के पूजा करने पर प्रतिबंध है।
दिलीप सिन्हा, धनबाद। आदिवासियोंं के सबसे बड़े नेता व झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन के शुरूआत में ही पंडा समाज के घोर विरोध के बीच सैकड़ों आदिवासियों व दलितों को शिव मंदिर में न सिर्फ प्रवेश दिलाया था बल्कि पूजा करवाया था। यह मामला धनबाद एवं गिरिडीह की सीमा पर बराकर नदी के तट पर स्थित नंढा महादेव मंदिर का है। यह ऐतिहासिक मंदिर है। प्रत्येक साल 15 जनवरी को बराकर नदी के किनारे यहां खिचड़ी मेला लगता है। धनबाद एवं गिरिडीह के हजारों लोग यहां जुटते हैं। बराकर नदी में स्नान कर सभी लोग वहां नंढा महादेव मंदिर में पूजा करते हैं। इस मंदिर में आदिवासियों एवं दलितों को पूजा करने की अनुमति नहीं थी।
1973 में शिबू सोरेन टुंडी में महाजनों व सामंतों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। इसी क्रम में झामुमो के स्थापना दिवस को लेकर बैठक करने शिबू सोरेन इस इलाके में पहुंचे थे। इस दौरान लोगों ने उन्हें बताया कि नंढा महादेव मंदिर में आदिवासियों व दलितों के पूजा करने पर प्रतिबंध है। सामूहिक खेती व रात्रि पाठशाला के साथ शिबू राजनीति के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन की भी लड़ाई लड़ रहे थे। तब तक उनकी पहचान आदिवासियों के बीच दिशोम गुरू के रूप में हो चुकी थी। आदिवासियों व दलितों के मंदिर में पूजा करने पर प्रतिबंध की बात सुनते ही शिबू सोरेन भड़क गए।
बैठक में ही ऐलान किया कि खिचड़ी मेला के दिन 15 जनवरी को वह हजारों दलितों व आदिवासियों के साथ पहुंचेंगे और नंढा महादेव मंदिर में पूजा करेंगे। शिबू टुंडी थाना में बैठे रहे और इधर आदिवासी व दलित समाज के सैकड़ों लोग डुगडुगी बजाकर मंदिर पहुंच गए। एक ओर आदिवासियों का जुटान था तो दूसरी ओर पंडा समाज प्रवेश नहीं करने देने की जिद पर डटा रहा। अंत में आदिवासियों के बागी तेवर देखकर पंडा समाज के लोग पीछे हट गए। इसके साथ ही इस ऐतिहासिक मंदिर में पहली बार आदिवासियों व दलितों ने पूजा की। इसके बाद से इस मंदिर में नियमित रूप से दलित व आदिवासी समाज के लोग पूजा कर रहे हैं। शिबू के इस मुहिम को टुंडी के तत्कालीन थानेदार बीके कीजिंगिया, बराकर नदी किनारे स्थित डीवीसी कैंप कार्यालय के कर्मी नरेश झा व एक डीवीसी कर्मी के पुत्र विजय अधिकारी ने खुलकर समर्थन दिया था।
पुरानी परंपरा थी कि इस मंदिर में दलित व आदिवासी समाज के लोग पूजा नहीं करते थे। शिबू सोरेन को जब इसकी जानकारी मिली थी तो उन्होंने सैकड़ों दलितों व आदिवासियों को भेजकर पूजा कराया था। पंडा समाज के लोगों ने इसका विरोध किया था लेकिन, फिर सब कुछ शांतिपूर्वक हो गया था। तभी से सभी समाज के लोग यहां मिलजुल कर पूजा करते हैं।
गोपाल पांडेय, नेता ब्राम्हण समाज टुंडी
नंढा महादेव मंदिर में आदिवासियों व दलितों को पूजा करने नहीं दिया जाता था। गुरुजी को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने विरोध किया। उनके नेतृत्व में इसके खिलाफ शांतिपूर्वक आंदोलन हुआ। पंडा समाज के लोग भी अंत में मान गए। अब आदिवासी व दलित समाज के लोग सभी के साथ मिल-जुलकर यहां पूजा करते हैं।
छतिकलाल मरांडी, शिबू सोरेन के पुराने सहयोगी, टुंडी
बराकर नदी के तट पर यह प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक शिव मंदिर है। टुंडी के तत्कालीन राजा ने इस मंदिर में करीब तीन सौ साल पहले पहली बार पूजा की थी। यह खुला मंदिर है। इस मंदिर में छत बनाने की कोशिश कभी भी सफल नहीं हुई। पुरनाडीह के मुखिया माया देवी ने इस मंदिर में चारदीवारी का निर्माण कराया है।
रामचंद्र पांडय, अहिल्यापुर गिरिडीह