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लोकतांत्रिक तानाशाही से समाज को खतरा

संवाद सहयोगी निरसा विश्व में पहले तानाशाही व्यवस्था थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लोगों ने लोकतांि

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Jul 2019 07:02 AM (IST)Updated: Tue, 16 Jul 2019 07:02 AM (IST)
लोकतांत्रिक तानाशाही से समाज को खतरा
लोकतांत्रिक तानाशाही से समाज को खतरा

संवाद सहयोगी, निरसा : विश्व में पहले तानाशाही व्यवस्था थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लोगों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अच्छा मानते हुए इसे अपनाया। परंतु वर्तमान समय में लोकतांत्रिक तानाशाही व्यवस्था चल रही है। लोकतंत्र साधन है लक्ष्य नहीं, लोकतांत्रिक व्यवस्था में भौतिक उन्नति तो काफी तेजी से हुआ है। परंतु उतनी ही तेजी से नैतिक पतन भी हो रहा है। यह बात सोमवार को केसजीएम कॉलेज निरसा में लोक स्वराज अभियान के सेमिनार में विचारक बजरंग मुनि ने कही।

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उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में अमेरिका एवं चीन के राष्ट्रपति यदि चाह लें तो कभी भी विश्वयुद्ध छिड़ जाएगा। विश्व की 7.5 अरब लोग इसे नियंत्रित करे, इसके लिए कोई भी प्रणाली आज तक नहीं बनी है। हमारे देश में 1947 से अब तक कई बार लोकतंत्र की परिभाषा बदली है। महात्मा गांधी की हत्या के बाद लोकतंत्र लोकनियुक्ति तंत्र के रूप में आया। 1951 में संसदीय लोकतंत्र हो गया जिसमें न्यायपालिका के अधिकारों में कटौती की गई। अब न्यायपालिका संविधान में कोई भी संशोधन नहीं कर सकता। 1973 में भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका को सर्वोच्च स्थान प्रदान कर दिया गया। 1975 में इंदिरा गांधी ने जो कहा वही लोकतंत्र हो गया। कुछ दिनों बाद वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो बोलेंगे, वही लोकतंत्र के लिए अपरिहार्य हो जाएगा। यह तो कहीं से भी लोकतंत्र नहीं है। देश की 125 करोड़ जनता लोकतंत्र को परिभाषित करेगी या संविधान के तहत संसद में चुनकर जाने वाले लोग लोकतंत्र को परिभाषित करेंगे। यह संसदीय तानाशाही व्यवस्था है।

उन्होंने कहा कि राज्य व्यवस्था कभी नहीं चाहती कि समाज के बीच एकजुटता हो। वह बराबर लोगों को लड़ाकर रखना चाहती है ताकि उनका काम आसानी से हो सके। यह लोकतंत्र के लिए यह खतरे की घंटी है। निरंतर भौतिक विकास हो रहा है, परंतु नैतिकता का पतन हो रहा है। शिक्षा का विस्तार हो रहा है, परंतु ज्ञान घटता जा रहा है। प्रत्येक इकाई में हिसा बढ़ी है। परंतु विचार मंथन की गति धीमी होती जा रही है। भावना और बुद्धि के बीच लगातार दूरी बढ़ती जा रही है। सत्ता का अधिकतम केंद्रीकरण हो रहा है। --लोकतंत्र की रक्षा के लिए करें ये उपाय

उन्होंने कहा कि यदि लोकतंत्र को सही रूप से बचाए रखना है तो समाज सर्वोच्च की अवधारणा को बढ़ाना होगा। परिवार व्यवस्था को बढ़ावा देना होगा। सुरक्षा तथा न्याय राज्य का प्राथमिक दायित्व बने तथा लोक स्वराजशाही प्रणाली विकसित हो। समान नागरिक संहिता बने, संविधान सभा का गठन हो, विचार मंथन को महत्व दिया जाए, परिवार और ग्रामसभा को संवैधानिक बनाया जाए तथा नई वर्ण व्यवस्था विकसित की जाए। तभी सही रूप से लोकतंत्र कायम होगा। सेमिनार को ज्ञानयज्ञ परिवार के केंद्रीय अध्यक्ष अभ्युदय द्विवेदी, प्राचार्य एमपी राय, भारत स्वाभिमान न्यास के जिला संयोजक मंजीत सिंह ने संबोधित किया। अध्यक्षता लोक स्वराज अभियान के निरसा प्रखंड संयोजक कृष्ण लाल रुंगटा ने की। कार्यक्रम को सफल बनाने में कॉलेज परिवार के सदस्यों की भूमिका रही।


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