नौकरी के इंतजार में बूढ़ी हो गई सरोज की आंखें
25 अक्टूबर 1992 को झरिया में हुए भीषण पटाखा कांड में दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई थी। उसमें से अधिकतर लोगों के स्वजनों को नौकरी नहीं दी गई।
गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया : 25 अक्टूबर 1992 को झरिया में हुए भीषण पटाखा कांड में दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। सौ से अधिक लोग जख्मी हो गए थे। उस समय बिहार सरकार की पीड़ित परिवार को नौकरी देने की घोषणा की गई थी। पटाखा कांड के 29 वर्ष हो गए, लेकिन मृतक परिवार को आज तक सरकार की ओर से नौकरी नहीं दी गई। सरकारी कुव्यवस्था के कारण मृतक परिवार के जख्म आज भी हरे हैं। काफी प्रयास के बाद मृतक के तीन परिवार को नौकरी मिली थी। अन्य आज भी नौकरी से वंचित हैं।
सरकार की भेदभाव नीति से मृतक परिवार में आक्रोश है। पूर्वी कोयरीबांध निवासी सरोज देवी के पति राजकुमार जायसवाल की कपड़ा पट्टी में रेडीमेड की दुकान थी। पटाखा कांड में इनकी भी मौत हो गई। घटना को याद कर सरोज की आंखों से आंसू बहने लगे। कहा कि पति की मौत के बाद बहुत गरीबी में जीवन काट रहे हैं। सरकार का दिया एक लाख तो कुछ दिन में ही खत्म हो गया। नौकरी आज तक नहीं मिली। अगर नौकरी रहती तो आज यह दिन देखना नहीं पड़ता। कई वर्ष तक धनबाद व झरिया के सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटती रही। किसी का दिल नहीं पसीजा। अंत में कार्यालय जाना छोड़ दिया। अब किसी तरह छोटी दुकान चलाकर परिवार चला रहे हैं। एक बेटा दीपक जायसवाल को स्थाई काम नहीं है। मजदूरी करता है। 29 साल से नौकरी की आस में सरोज अब बूढ़ी हो गई है। मालूम हो कि पटाखा कांड के 20 से अधिक मृतक लोगों के परिवार आज भी नौकरी से वंचित हैं, लेकिन इनकी सुध लेने वाला अब कोई नहीं है।
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गंभीर रूप से जख्मी छेदी को भी नहीं मिली नौकरी
झरिया पटाखा कांड में कपड़ा पट्टी का रेडीमेड दुकानदार छेदी जायसवाल गंभीर रूप से झुलस गया था। कई माह तक बोकारो जनरल अस्पताल में इलाज चला। महीनों बाद ठीक हुआ। छेदी के चेहरे व हाथ में अभी भी जख्म के निशान हैं। निराश छेदी ने कहा कि सरकार ने उस समय पटाखा कांड के मृतकों व गंभीर रूप से जख्मी होनेवाले लोगों के परिवार को मुआवजा के साथ नौकरी देने की घोषणा की थी। 29 साल होने को हैं। आज तक नौकरी नहीं मिली। सरकार की घोषणा खोखली निकली।