Weekly News Roundup Dhanbad: वाह री दोस्ती ! डीसी के बंगले के सामने ही लगवा दी महफिल
Weekly News Roundup Dhanbad मित्रता ऐसी कि रेस्टोरेंट के लिए भवन देने में सारे नियम कानून ही दरकिनार हो गए। ऐसा हो भी क्यों नहीं जब दोस्ती ही परिषद के मुख्य कार्यकारी से हो तो कौन रोकेगा। जिला परिषद के प्रधान चिल्लाते रहे।
धनबाद [ बलवंत कुमार ]। Weekly News Roundup Dhanbad धनबाद सर्किट हाउस और उपायुक्त आवास के सामने जिला परिषद का अतिथि गृह। इसकी सबसे बड़ी खासियत तो ये है कि हमेशा से यह चर्चे में ही रहा है। कभी आग लगने से तो कभी इसमें ठहरने वाले लोगों की वजह से। इस भवन में एक समय पूर्व सांसद चंद्रशेखर दुबे रहते थे। बाद में उनसे इसे खाली कराया गया। अब यहां एक रेस्टोरेंट खुल गया है। वह भी दोस्ती के नाम पर। मित्रता ऐसी कि रेस्टोरेंट के लिए भवन देने में सारे नियम कानून ही दरकिनार हो गए। ऐसा हो भी क्यों नहीं, जब दोस्ती ही परिषद के मुख्य कार्यकारी से हो, तो कौन रोकेगा। जिला परिषद के प्रधान चिल्लाते रहे। खूब दिमाग लगाया मगर उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती बन गई। कार्यकारिणी भी नाराज। उसके बाद भी साहब की ऐसी ठसक कि देवघर के मित्र को धनबाद में बसा ही दिया। दोस्ती जो उनको निभानी थी। वाह री दोस्ती।
प्लाटिंग वाले गुरुजी
बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्विद्यालय का भेलाटांड़ में नया भवन बन रहा है। इसका फायदा आसपास के लोगों को भविष्य में होगा। मगर एक गुरुजी की अभी से दस की दस अंगुलियां घी में व सिर कढ़ाई में है। महाशय विश्वविद्यालय में ही एक महत्वपूर्ण पद पर थे। अब शिक्षक के अलावा प्लाटिंग वाले गुरुजी के नाम से भी जाने जाते हैं। ज्यों ही विश्वविद्यालय के लिए यहां जमीन चिह्नित हुई, उन्होंने भी प्लाट खरीद लिया। इतना ही नहीं अन्य शिक्षकों को भी प्लाट खरीदने में पूरी मदद करते रहे। बिक्री करने वालों को भी गुरुजी का सहारा मिला। खास बात ये कि पांच प्लाट बिकवाने पर एक गुरुजी का। आलम ये हो गया कि पांच प्लाट के खुद मालिक। जब किसी को यहां जमीन लेनी होती है तो गुरुजी के दर पर दस्तक देता है। इनको देखते ही छात्र भी कहने लगे हैं प्लाटिंग वाले गुरुजी।
चिढ़ गए साहब
इंस्पेक्टर तो समझते ही होंगे, एक इलाके के राजा से कम नहीं। बड़े साहब की भी इनके इलाके में नहीं चलती। किसकी मजाल, कोई कुछ पूछ भी ले। बात बैंक मोड़ थाना क्षेत्र की है। विवाहिता की मौत हो गई। हत्या या आत्महत्या, गुत्थी उलझ गर्ई। आसपास के लोग परेशान, आखिर सच क्या है। पुलिस का सीधा आकलन, आत्महत्या है। थानेदार ने कह दिया ना। उलझी गुत्थी को सुलझाने की मंशा से किसी ने सवाल दागा। गर्भवती महिला आत्महत्या क्यों करेगी। बड़े साहब का पारा चढ़ गया। बोले, मुझसे क्यों पूछते हो। बाहर के लोग ही बताएंगे। उनकी सुनो। तभी फिर किसी ने जुमला जड़ा, सड़क पर घटना हो तो पब्लिक से पूछेंगे। सुराग नहीं मिला तो पब्लिक को ठोक देंगे। फिर पब्लिक की बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे। साहब की आंखें लाल हुईं, मुड़े और निकल लिए। इन्हें कौन समझाए, पब्लिक सब जानती है।
पब्लिक के लिए समय नहीं
पुलिस और जनता के बीच समन्वय के लिए आला अधिकारी हर कोशिश करते हैं। तालमेल शानदार रहे इसके लिए बैठक भी होती हैं। हो भी क्यों नहीं, जनता के पैसे से ही पुलिस को वेतन मिलता है। मंच पर पुलिस अधिकारी कहते नहीं थकते, पुलिस आपकी सेवा में तत्पर है। मगर यहां बात डीएसपी मैडम की हो रही है। मुख्यालय देखने के साथ विधि व्यवस्था का भी जिम्मा है। वर्क लोड है। मगर किसके लिए, जनता के ही लिए ना। मगर इन्होंने तय किया है कि तीन बजे जनता से मिलेंगे। देर हुई तो अगले दिन आइए। एक युवक को पासपोर्ट बनवाना था। बेचारे को आने में कुछ देर हुई। दफ्तर में मैडम मौजूद थीं। मगर सहायक बोला, कल आइए। मैडम को रहम न आया। बेचारा दुखी होगा लौट गया। यह बुदबुदाते हुए कि यहां खाने के और व दिखाने के दांत और होते हैं।