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Weekly News Roundup Dhanbad: ये भूख है कि मिटती नहीं... पढ़िए नक्सली क्षेत्रों में सरकारी राहत की सच्चाई

कोरोना ने समाजसेवा करने का पूरा मौका दिया है जिसकी जितनी शक्ति उतनी भक्ति। हर मोहल्ले में यह दिख रहा है। हो भी क्यों नहीं। कोरोना के खात्मे के बाद चुनावी बिगुल जो बजने वाला है।

By MritunjayEdited By: Published: Tue, 05 May 2020 10:23 AM (IST)Updated: Tue, 05 May 2020 10:23 AM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad: ये भूख है कि मिटती नहीं... पढ़िए नक्सली क्षेत्रों में सरकारी राहत की सच्चाई
Weekly News Roundup Dhanbad: ये भूख है कि मिटती नहीं... पढ़िए नक्सली क्षेत्रों में सरकारी राहत की सच्चाई
धनबाद [ आशीष सिंह ]। शहर से 40 किमी दूर टुंडी का एक गांव। लाला टोला। नक्सल प्रभावित इलाके में शुमार। लॉकडाउन में यहां 29 दिनों से खिचड़ी सेंटर चलाया जा रहा है। हर दिन आसपास गांव के लगभग 800 लोग खिचड़ी खाने पहुंचते हैं। दोपहर 12 बजे से खिचड़ी बांटने की शुरुआत होती है, लेकिन भूख तो समय से नहीं आती न। सुबह के साढ़े छह बजे हैं। पांच साल का एक बालक सफेद घेरे में बर्तन रख देता है। इस उम्मीद में शायद सुबह-सुबह खिचड़ी मिल जाएगी। पेट में लगी भूख की आग यह मानने को तैयार नहीं कि अभी खाना मिलने का समय नहीं हुआ है। भूख और बेबसी को बयां करती तस्वीर सोचने पर मजबूर करती है। लॉकडाउन परिवार वालों के साथ समय बिताने का मौका भले हो, लेकिन मेहनतकश के लिए दो जून की रोटी जुटाना मुश्किल साबित हो रहा है। आखिर ये भूख है बड़ी।
 
सड़क की बढ़ी रफ्तार
झारखंड की पहली आठ लेन सड़क। गोल बिल्डिंग से लेकर कांकोमठ तक। 400 करोड़ का भारी-भरकम बजट। जनवरी-फरवरी में धुआंधार काम हुआ। जिधर से गुजर जाइए उधर ही जेसीबी-हाइवा। लगे हैं काम पर। इस सड़क के लिए आठ हजार पेड़ों की बलि भी ले ली गई। विकास का हवाला दिया गया। लोगों ने मान भी लिया। मार्च आते ही कोरोना की दस्तक। काम ठप, सड़क बनने की रफ्तार पर बे्रक लग गई। 21 दिन के लॉकडाउन के बाद शर्तों के साथ काम शुरू करने की अनुमति मिल गई। बस फिर क्या था, एजेंसी ने समय के नुकसान की भरपाई के लिए दोगुने जोश से काम शुरू कर दिया। बिरसा मुंडा पार्क से लेकर बिनोद बिहारी चौक तक सड़क की रफ्तार देखते बन रही है। दोनों तरफ मिट्टी का भराव, पानी की निकासी के लिए नाला निर्माण जारी है। शहर की बदली तस्वीर जल्द दिखेगी।
 
चुनाव का भी तो मामला है
कोरोना ने समाजसेवा करने का पूरा मौका दिया है, जिसकी जितनी शक्ति उतनी भक्ति। हर मोहल्ले में यह दिख रहा है। हो भी क्यों नहीं। कोरोना के खात्मे के बाद चुनावी बिगुल जो बजने वाला है। कोई वार्ड पार्षद का दावेदार है तो कोई मुखिया के चुनाव की ताल ठोंक रहा है। अपनी छवि बनाने का इससे बेहतर मौका कहां मिलेगा। नगर निगम का चुनाव अप्रैल-मई में होना था। कोरोना ने इसे टाल दिया। पंचायत चुनाव दिसंबर में संभावित है। गांव से लेकर शहर तक सभी अपना वोट बैंक ठीक करने में लग गए हैं। गली-मोहल्ले तक सुख-सुविधा पहुंचाने के लिए आपाधापी मची है। वोटर भी अब तो सोच में पड़ गए हैं। जरूरत से ज्यादा समाजसेवा। यह लोगों को अब खटक भी रही है। कहीं बाद में यह गले की फांस न बन जाए। वोट के लिए हर पार्टी का झंडा इस्तेमाल हो रहा है।
 
इस डीह में लॉकडाउन- नो
बाबूडीह शहर का चर्चित इलाका है। नगर निगम क्षेत्र में आता है। बेकारबांध से भूली जाने का मुख्य मार्ग भी। वैसे खटाल की वजह से प्रसिद्धि अधिक है। यहां गोपालक ठीक-ठाक संख्या में हैं। आसपास के कई इलाकों के लोग दूध लेने आते हैं। सुबह और शाम वही भीड़ देखने को मिलती है, पहले जैसी। यानी लॉकडाउन से पहले। हाथ में केन लिए लोगबाग आसानी से देखे जा सकते हैं। आसपास कई दुकानें भी हैं। ये भी नियमित खुलती हैं। हर सामान मिल जाएगा। शाम होते ही यहां चहलकदमी भी शुरू हो जाती है। बच्चे सड़क के किनारे खेलते मिल जाएंगे। महिलाएं भी पल्लू के पीछे उपले संजोती दिख जाएंगी। चंद कदम की दूरी पर बिनोद बिहारी चौक है। सब्जी की दुकानें पहले इतनी न थीं, जितनी आज हैं। फल के ठेले तो दर्जनभर होंगे। लगते भी हैं। इन्हें लॉक करने कोई नहीं आ रहा।

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