रेल अफसरों के घर पर अब नहीं रहेंगे आदेशपाल
धनबाद रेल अफसरों को अब बंगला प्यून यानी टेलीफोन अटेंडेंट कम डाक खलासी (आदेशपाल) नहीं मिलेगा।
धनबाद : रेल अफसरों को अब बंगला प्यून यानी टेलीफोन अटेंडेंट कम डाक खलासी (आदेशपाल) नहीं मिलेगा। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इस परंपरा को रेल मंत्रालय ने तत्काल प्रभाव से रोक दिया है। इनकी नई नियुक्ति पर भी रोक लगा दी गई है। एक जुलाई 2020 तक स्वीकृत इनकी नियुक्ति से जुड़े सभी मामलों की समीक्षा होगी और इससे रेलवे बोर्ड को अवगत कराया जाएगा। रेलवे बोर्ड के कार्यपालक निदेशक (स्थापना) नवीन अग्रवाल ने गुरुवार को सभी जोन को आदेश जारी कर दिया है। रेलवे के अधिकारियों को बंगला प्यून या टेलीफोन अटेंडेंट सह डाक खलासी (आदेशपाल) की सुविधा दी गई थी। इससे अधिकारियों को घर में काम करने के लिए 24 घंटे का एक कर्मचारी मिल जाता था। इसकी भर्ती के लिए कोई परीक्षा नहीं होती थी। रेल अधिकारी जिसे चाहे भर्ती कर सकते थे। इसके बाद वह रेलवे का कर्मचारी बनकर अफसर के बंगले पर घरेलू काम करता था। अमूमन तीन साल तक बंगले पर काम के बाद उसे रेलवे के दफ्तर, ओपन लाइन या किसी वर्कशॉप में नौकरी मिल जाती थी। उसके नौकरी पर जाते ही दूसरे बंगलो प्यून (आदेशपाल) को नौकरी मिल जाती थी। कोई अधिकारी कहीं पांच-छह साल तक जमे रह गए तो हर तीन साल में किसी दूसरे व्यक्ति की भर्ती हो जाती थी। जानकारों का कहना है कि रेल अधिकारी अपने कम पढ़े लिखे दूर के रिश्तेदार या सगे-संबंधियों को रेल की नौकरी दिलाने का शॉर्टकट बंगला प्यून (आदेशपाल) के तौर पर अपनाते थे। इसमें बगैर किसी परीक्षा के आसानी सरकारी नौकरी मिल जाती थी। पहले हटाए जा चुके ट्रैकमैन, गैंगमैन व पोर्टर : इससे पहले 2017 में पूर्व रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी का चाबुक भी रेल अधिकारियों पर चला था। उनके कार्यकाल में अफसरों के बंगलों में सेवा देनेवाले ट्रैकमैन, गैंगमैन व पोर्टर हटाए गए थे। बंगला से हटाकर उन्हें फील्ड में भेजा गया था।