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वाह री पुलिस! तू जो कोयले की कोठरी में बैठकर ...

गांव के सरकार की कुर्सी खतरे में हैं। साहब से पंगा लिया तो उन्होंने दिखा दिया नौकरशाही की राजनीति के पेच। इधर अविश्वास प्रस्ताव मिला और उधर पावर सीज।

By mritunjayEdited By: Published: Mon, 28 Jan 2019 10:54 AM (IST)Updated: Tue, 29 Jan 2019 11:47 AM (IST)
वाह री पुलिस! तू जो कोयले की कोठरी में बैठकर ...
वाह री पुलिस! तू जो कोयले की कोठरी में बैठकर ...

धनबाद, जेएनएन। वाह री पुलिस! तेरी ईमानदारी और कर्तव्य परायणता का जवाब नहीं। कोयले की कोठरी में बैठकर भी बेदाग है। तेरी सादगी और साफगोई पर कौन नहीं बल-बल जाएगा! पुलिस का तो कोयला चोरी में कोई रोल थोड़े ही है। कोयले की चोरी तो चोर करते हैं। माफिया करते हैं। सरकारी कोयला कंपनियों के अधिकारी करते हैं। आउटसोर्सिंग कंपनियों के मालिक करते हैं। ऊपर से इन सबको राजनीतिक दल और सरकार के लोग संरक्षण देते हैं। यही लोग अवैध खनन के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे ही लोग अवैध खनन में होनेवाली मौतों के लिए कसूरवार हैं। यही लोग अवैध खदान में दुर्घटना के बाद फंसे गरीब-मजदूरों को बचाने के लिए बचाव एवं राहत कार्य चलाने से रोकते हैं। खदान से लाश निकालने से पुलिस के हाथ बांध देते हैं। कोयला चोरी में तो पुलिस की कोई भूमिका ही नहीं है। नीचे से ऊपर तक के अधिकारी अवैध खदान और कोयला डिपो खोलने की परमिट भी नहीं देती है। थाने के लोग कोयले और ट्रकों का हिसाब भी नहीं रखते हैं। इसी कारण तो आउटसोर्सिंग कंपनी में कोयले की अवैध कटाई में चार की मौत पर थानेदार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बड़े-बड़े साहबों ने भी कह दिया कि सारा दोष कोयला कंपनी और आउटसोर्सिंग कंपनियों का है। बगैर समय गंवाए कोयला कंपनी और आउटसोर्सिंग कंपनी के लोगों पर प्राथमिकी भी दर्ज कर दी गई। सीआइडी वाले तो पुलिस की धुली हुई प्रतिष्ठा से जलते रहते हैं। वे जान-बूझकर पुलिस को बदनाम करते हैं। अपनी रिपोर्ट में पुलिस की भूमिका को भी इंगित करते हैं। सचमुच, हमारी पुलिस तो दूध की धुली है। 

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तरल पदार्थ पर भरोसा नहींः गांव के सरकार की कुर्सी खतरे में हैं। साहब से पंगा लिया तो उन्होंने दिखा दिया नौकरशाही की राजनीति के पेच। इधर अविश्वास प्रस्ताव मिला और उधर पावर सीज। अब घोड़ा मंडी सज गई है। मोल-तोल जारी है। इस मंडी में रोज नए-नए भाव खुल रहे हैं। तरल पदार्थ भी ठोस बनने को सक्रिय है। अपने बड़बोलेपन के कारण चुनाव के बाद सरकार बनने से चूक गए थे। अब मौका मिला है। ढाई लाख का रेट खोल दिया है। 25 हजार एडवांस और अविश्वास प्रस्ताव पास होने के बाद शेष 2.25 लाख का भुगतान। सयाने लोग एडवांस के चक्कर में नहीं पडऩा चाहते। वह फुल पेमेंट चाहते हैं। काम निकलने के बाद कौन पूछता है जी? और यह कोई हिसाब-किताब का पैसा तो है नहीं कि भविष्य में तगादा चलता रहेगा। वैसे भी धंधा तरल पदार्थ का है। उसका क्या भरोसा? पंचायत चुनाव के बाद भी तो पांच-पांच लाख का रेट खोला था। अंत-अंत तक किसी को एडवांस तक नहीं थमाया। इस बार भी शेष भुगतान की क्या गारंटी! 

खरबूजा बदलने लगे रंगः यूं तो हवा नीचे से ऊपर की ओर जाती है लेकिन, राजनीति में ज्यादातर हवा ऊपर से नीचे बहती है। अविश्वास प्रस्ताव की हवा जैसे ही ऊपर वाले सदन में उठी नीचे वाले सदन को भी इसकी हवा लग गई। शहर के ब्लॉक में भी बगावत का शंखनाद हो गया। अविश्वास प्रस्ताव का आवेदन लेकर लेकर बीडीओ साहब के पहुंच गए। अब यह दूसरे ब्लॉकों में भी पहुंचने लगी है। चुनाव के बाद प्रमुख बनने से चूकने वाले सक्रिय हो गए हैं। खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदल रहा है। 

और अंत में टेक-रिटेकः गणतंत्र दिवस का रंगारंग कार्यक्रम। एक से बढ़कर एक झांकी। अतिथि और उपस्थित जनसमूह के सामने से एक-एक झांकी गुजरती है। झांकियों की सुंदरता और संदेश की तरफ सबका ध्यान केंद्रित है। उद्घोषक भी झांकियों की तारीफ करते जा रहे हैं। यह क्या? एक झांकी का मंच सूना पड़ा है। खाली डिब्बे की तरह झांकी आगे बढ़ जाती है। सब सोचने को मजबूर। थोड़ी देर में फिल्मों की शूटिंग की तरह टेक-रिटेक होता है। सबके सामने से झांकी गुजरती है। मंच पर विराजमान कलाकारों की तरफ से जबरदस्त प्रस्तुति दी जाती है। अब सब खुश। वजह भी कम मजेदार नहीं। कलाकारों को पुलिस वालों ने गेट से एंट्री देने में देर लगा दी। 


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