Durga Puja 2021: दुमका में शिवपहाड़ के पास कड़हलबिल में नवमी को होता जुटान, यहां गुरुमाता कराती हैं सनातन रीति-रिवाज से अनुष्ठान
दुमका के शिवपहाड़ के पास नवमी के दिन बड़ी संख्या में साफा होड़ समुदाय के लोगों का जुटान होता है। संताल परगना के गोड्डा पाकुड़ साहिबगंज समेत विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में साफा होड़ समुदाय के लोग पहुंचेंगे और पूजा-अनुष्ठान में पूरे अनुशासित भाव से शामिल होंगे।
राजीव, दुमका। दुमका के शिवपहाड़ के समीप स्थित है कड़हलबिल। यहां आवासीय अनुसूचित जनजाति बालिका उच्च विद्यालय परिसर से सटे साफा होड़ समुदाय के लोग वर्ष 1979 से पारंपरिक सनातन रीति-रिवाज से वैष्णवी दुर्गापूजा का अनुष्ठान करते हैं। खास बात यह कि यहां बिल्कुल सादगी, अनुशासित और आडंबर रहित तरीके से मां दुर्गा की पूजा होती है। पूजा का आयोजन साफा होड़ संस्कृति समिति की ओर से किया जाता है। कड़हलबिल में दुर्गापूजा की शुरुआत साफा होड़ समुदाय के गुरु सोभान टुडू ने की थी। वर्ष 2003 में उनके निधन के बाद उनकी धर्मपत्नी लुखी देवी मुर्मू बतौर गुरुमाता पूजा की जिम्मेदारी संभाल रही हैं।
गुरुमाता रोजाना कलश का जल बदल कर विधि-विधान से पूजा करती हैं। सप्तमी को पांच कलश में तालाब से जल लाकर कलश स्थापित करने का विधान है। प्रतिमा भी सप्तमी को स्थापित की जाती है। कलश स्थापना के दौरान समुदाय के लोग परंपरागत वेशभूषा में ढोल-ढाक के साथ तालाब पहुंचते हैं और वहां से कलश में जल भरकर मंदिर लौटते हैं। इससे पूर्व षष्ठी से ही गुरुमाता और इनके शिष्य जो पूजा अनुष्ठान में शामिल होते हैं, अन्न का ग्रहण नहीं करते हैं। पांच दिनों तक फलाहार पर रहते हैं। दसवीं को प्रतिमा विसर्जन के उपरांत ही अन्न का ग्रहण करते हैं। इस दौरान गुरुमाता लखी देवी मुर्मू प्रतिदिन तीन घंटे चंडी पाठ करती हैं। दुर्गा समेत अन्य देवी-देवताओं का आह्वान पूरे विधि-विधान से किया जाता है। प्रसाद के तौर पर फल, लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
नवमीं के दिन जुटेंगे साफा होड़ समुदाय के लोग
यहां नवमी के दिन बड़ी संख्या में साफा होड़ समुदाय के लोगों का जुटान होता है। संताल परगना के गोड्डा, पाकुड़, साहिबगंज समेत विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में साफा होड़ समुदाय के लोग पहुंचेंगे और पूजा-अनुष्ठान में पूरे अनुशासित भाव से शामिल होंगे। माता को बतौर प्रसाद खिचड़ी भोग लगाने की परंपरा है। यही खिचड़ी विभिन्न हिस्सों से आए साफा होड़ समुदाय के लोग ग्रहण करते हैं। इस दिन मां को प्रसन्न करने के लिए पारंपरिक अंदाज में भजन व कीर्तन भी किया जाता है।