Move to Jagran APP

सात महीने भी नहीं निभा पा रहे सात जन्मों का बंधन, कभी मोबाइल तो कभी अपने लगा रहे सात फेरों में आग

सनातन संस्कृति में विवाह सात जन्मों का बंधन कहते है बावजूद सामाजिक रीति रिवाजों को दरकिनार कर एडवांस बन रही वाली युवा पीढ़ी में कई जोड़े ऐसे सामने आ रहे जो सात जन्म छोड़िए सात माह भी इस पवित्र बंधन का निर्वहन नहीं कर पा रहे।

By Deepak Kumar PandeyEdited By: Published: Wed, 06 Jul 2022 08:07 AM (IST)Updated: Wed, 06 Jul 2022 08:07 AM (IST)
सात महीने भी नहीं निभा पा रहे सात जन्मों का बंधन, कभी मोबाइल तो कभी अपने लगा रहे सात फेरों में आग
जो समझदार हैं, वे किसी प्रकार अपना परिवार बचा लेते हैं।

बोकारो [बीके पाण्डेय]: दुनिया की हर संस्कृति विवाह को अटूट रिश्ता मानती है। सनातन संस्कृति में इसे सात जन्मों का बंधन कहते है। एक बार जिससे बंधे तो सात जन्म तक इस रिश्ते को निभाना होगा। बावजूद सामाजिक रीति रिवाजों को दरकिनार कर एडवांस बन रही वाली युवा पीढ़ी में कई जोड़े ऐसे सामने आ रहे, जो सात जन्म छोड़िए, सात माह भी इस पवित्र बंधन का निर्वहन नहीं कर पा रहे। झारखंड के बोकारो व्यवहार न्यायालय में छह माह में 280 तलाक या भरण पोषण के मामले आए हैं। हर माह 50 से अधिक विवाह टूट रहे।

loksabha election banner

कोरोना काल के बाद तो स्थिति और विकट हुई। कई का रोजगार प्रभावित हुआ, इससे चिड़चिड़ापन आया, दोनों पक्षों में से एक ने भी धैर्य नहीं रखा तो मुलाकात कोर्ट में ही की। अकेले बोकारो व्यवहार न्यायालय के मामलों से साफ है कि हर साल जितनी शादियां हो रहीं, उनमें से 20 से 30 प्रतिशत में विवाद उत्पन्न हो रहा है। जो समझदार हैं, वे किसी प्रकार अपना परिवार बचा लेते हैं।

बड़े हो जाएं समझदार तो नहीं टूटेगा बंधन

विवाह के दौरान वर शपथ लेता है कि वधू का आजीवन भरण-पोषण करेगा। बावजूद अक्सर उनके मध्य स्वजनों का हस्तक्षेप, युवाओं में एक दूसरे की कमी निकालने की आदत, रिश्ते को कमजोर करती है। नतीजा वधू जीविका व भरण पोषण के लिए न्यायालय दौड़ जाती है। भरण पोषण संबंधित मामलों के बोकारो में 2022 में 137 आवेदन आ चुके हैं। अधिवक्ता रंजीत गिरि कहते हैं कि युवाओं में नैतिक मूल्यों का पतन भी इसका कारण है। दंपती के जीवन में वर पक्ष या कन्या पक्ष के परिवार का बेवजह हस्तक्षेप भी विवाद का कारण है। अधिवक्ता कुमार सुधांशु बताते हैं कि आज मोबाइल फोन भी विवाद पैदा कर रहा। दंपती में एक पक्ष अपने साथी को समय देने की जगह मोबाइल फोन पर अधिक व्यस्त रहता है तो नतीजा विवाद के रूप में सामने आता है।

रिश्ता तोड़ने में पढ़े-लिखे भी पीछे नहीं

बोकारो का एक दंपती बैंक कर्मी है। पढ़े-लिखे हैं, मगर छोटी छोटी बातों में भिड़ जाते थे। अंतत: उनका मामला कोर्ट पहुंच गया। इसी तरह बोकारो के एक लड़के की शादी जमशेदपुर में हुई थी। एक महीना भी पूरा नहीं हुआ कि लड़की कुटुंब न्यायालय पहुंच गई। चंद्रपुरा के एक लड़के की शादी हजारीबाग में हुई। 29 दिन दोनों साथ रहे, फिर एक दिन छोटी सी बात पर ऐसे उलझे कि अलग राह पकड़ने को न्यायालय पहुंच गए।

बीते चार वर्षों में बोकारो व्यवहार न्यायालय में दायर तलाक के मामले

2019 : 65

2020: 75

2021 : 253

2022 : 280

गुजारा भत्ता के लिए दायर मामले

2019 : 77

2020 : 59

2021 : 125

2022 : 137

(आंकड़े ई-कोर्ट की वेबसाइट से लिए गए हैं।)

वैवाहिक रिश्‍ते से ज्‍यादा सुख-सुविधाओं पर ध्‍यान देंगे तो विवाद होना तय

इस संबंध में बोकारो स्‍टील सिटी कॉलेज के मनोविज्ञानी डॉक्‍टर प्रभाकर कुमार बताते हैं कि जब युवा वैवाहिक रिश्ते से ज्यादा करियर व अपनी सुख-सुविधाओं पर ध्यान देने लगते हैं तो विवाद होते हैं। पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण भी एक कारण है। सामाजिक एवं धार्मिक कर्म में कम सहभागिता के कारण भी युवाओं में धैर्य का अभाव हो रहा। मानव अधिकार के नाम पर लिव इन रिलेशन के मामले सामने आने से रिश्तों में दरार स्वाभाविक है। विवाह का रिश्ता बचाने को सामाजिक एवं पारिवारिक संस्थाओं व परिवारों को आगे आना होगा। जीवन में पवित्र बंधन विवाह की महत्ता बतानी होगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.