जिस कतरी नदी के नाम पर रखा गया कतरास शहर का नाम, उसके अस्तित्व को बचाने के हो रहे जतन
बीते कुछ वर्षों तक इस नदी में सालों भर जल का प्रवाह होता था लेकिन नदी में कई चेकडैम बना दिए गए जिससे जल के प्रवाह में काफी कमी आ गई। मलबा और मिट्टी का काफी जमाव हो जाने से जल का ठहराव भी नही हो पा रहा है।
संवाद सहयोगी, कतरास: कतरी नदी से कतरास का इतिहास जुड़ा हुआ है। शहर के पुराने लोग बताते हैं कि कतरास शहर का नाम ही कतरी नदी के नाम पर पड़ा है। हालांकि यह बात अलग है कि आज यही कतरी नदी खुद अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
बीते कुछ वर्षों तक इस नदी में सालों भर जल का प्रवाह होता था, लेकिन नदी में कई चेकडैम बना दिए गए, जिससे जल के प्रवाह में काफी कमी आ गई। कतरास शहर के पास इस नदी में मलबा और मिट्टी का काफी जमाव हो जाने से जल का ठहराव भी नही हो पा रहा है। अब हाल यह है कि गर्मी के दस्तक देते ही नदी सूख जाती है। इससे शहर व आसपास के मोहल्लों के लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
पूर्व पार्षद हरि प्रसाद अग्रवाल कहते हैं कि कतरी नदी की वजह से ही शहर का नाम कतरास पड़ा है। नदी यहां की जीवनरेखा है। इसके अस्तित्व की रक्षा के लिए नगर निगम, बीसीसीएल व आउटसोर्सिंग कंपनियों के सहयोग से सफाई करानी चाहिए। बताया कि इस नदी का पानी 1967 के भीषण आकाल में भी नहीं सूखा था, लेकिन पहले हमलोग स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़े लोगों के सहयोग से नदी की सफाई करते थे।
जलेस की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. मृणाल कहती हैं कि पारसनाथ पहाड़ी से निकली कतरी नदी, जिसके किनारे खूबसूरत कतरास शहर बसा था, झरिया कोलफील्ड के बाद यह कोयलांचल का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जिससे कतरास वासियों को भी पीने का पानी मिलता है, आज उस कतरी नदी की स्थिति उत्खनन परियोजना के कारण बदतर व दयनीय होती जा रही है।
चैंबर ऑफ काॅमर्स कतरास के सचिव मनोज कुमार गुप्ता ने कहा कि जिस कतरी नदी को शहर की लाइफलाइन माना जाता है, उसमें धड़ल्ले से नाली का गंदा पानी और कूड़ा-कचरा फेंका जा रहा है। इस दिशा में आज तक किसी जनप्रतिनिधि ने सार्थक पहल नहीं की। अब जरूरत है एक जोरदार आंदोलन की, ताकि कतरी नदी के अस्तित्व को बचाया जा सके।
व्यवसायी श्यामाकांत गप्ता ने भी इनकी बात से सहमति जताई। कहा कि कतरी नदी की सूरत बदलनी चाहिए। एक समय था, जब शहर के लोग फुर्सत के पल में इस नदी के किनारे बैठते थे। किनारे पर लोग मार्निंग वाक करते थे। लोक आस्था का महापर्व छठ के समय हर कोई कर सेवा करते थे। इस नदी को लेकर जनप्रतिनिधि से लेकर सामाजिक संस्था के लोगों को सोचना चाहिए, ताकि नदी की सूरत बदल जाए। क्योंकि नदी पर ही शहर का नाम है ।