अंगारपथरा के प्रेम ज्योति आश्रम में आवस, पानी व गंदगी की समस्या से लोग परेशान
धनबाद - चंद्रपुरा रेल मार्ग के समीप बंद पड़े अंगारपथरा रेलवे हॉल्ट स्थित प्रेम ज्योति आश्रम( कुष्ठ कालोनी) के लोगों के बीच ना पानी की बल्कि आवास व सफाई की समस्या है। ये लोग इन समस्याओं से जूझ रहे हैं।
कतरास, जेएनएन: धनबाद - चंद्रपुरा रेल मार्ग के समीप बंद पड़े अंगारपथरा रेलवे हॉल्ट स्थित प्रेम ज्योति आश्रम( कुष्ठ कालोनी) के लोगों के बीच ना पानी की बल्कि आवास व सफाई की समस्या है। ये लोग इन समस्याओं से जूझ रहे हैं।
आज से 32 वर्ष पूर्व गोविंदपुर के एक फादर के द्वारा इस कालोनी का निर्माण कराया गया। इसके बाद इस कालोनी के आवासों का कभी मरम्मत नहीं कराया गया यही कारण है कि सभी कमरे में बरसात के पानी रिसता है। कमोवेश सफाई की भी यही हाल है।
आज तीसरे किसी ने सफाई नहीं कराया। वहां रह रहे करीब बारह परिवार के सदस्यों द्वारा सफाई स्वयं की जाती है। पहले निर्मला कुष्ट अस्पताल गोविंदपुर द्वारा दवाई सहित अन्य सुविधा मिलती थी जो एक साल से बंद कर दिया गया है। हाथ पांव से लाचार रोगियों को करीब एक किलोमीटर की दूरी तय कर शिव मंदिर या फिर कच्छीकोठी जाकर पानी लाना पड़ता है।
गर्मी आते ही इन लोगों के बीच जल संकट गहरा गया है। फिलहाल ये लोग भिक्षाटन करके जीवन यापन कर रहे हैं। कालोनी का सायरा को भरे बहुत दिन हो गया। बरसात के दिनों में भी यह सायरा नहीं भरता है। सायरा में पर्याप्त पानी नहीं होने के कारण लोग भोजन के साथ पानी के लिए भी दर दर भटक रहे हैं।
इनका कहना है कि एक ओर जहां हम भी दाने दाने के लिए मोहताज हैं वहीं अब पानी की एक- एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। दिन रात मेहनत करते हैं तब कहीं जरुरत भर पानी का जुगाड़ हो पाता है। करीब 1986 में मजदूर नेता केबी सहाय के प्रयास से तथा बीसीसीएल प्रबंधन के सहयोग से यहां झमाडा का पानी का संयोग लग पाया है। पाइप कालोनी के मुख्य द्वार पर तक आने के कारण उस जगह पर एक सायरा का निर्माण करवाया गया है।
जिसमें एक दिन बीच करके पानी चलता है। प्रेशर इतना कम है कि सभी को पानी उपलब्ध नहीं हो पाता है। ऐसे में कुछ लोग पानी बाहर से लाकर सेवन करते हैं। जबकि इसी पानी को पीने, भोजन बनाने, कपड़ा व बर्तन धोने तथा नहाने के रुप में इस्तेमाल करते हैं। फिलहाल हमारे यहां न तो कोई जनप्रतिनिधि, बीसीसीएल प्रबंधन
या फिर कोई समाजसेवी ही आते हैं जिससे अपनी समस्या सुनाया जा सके। आखिर हाथ पांव से लाचार हम लोग जाए तो जाए कहां। कौन हमारी समस्या सुनेंगे।