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Parkinson Disease: रोग की पहचान और उपचार अब होगा आसान, आइएसएम व आइआइसीबी के शोधार्थियों ने विकसित किया विशेष उपकरण

Parkinson Disease एल्फा साइन्यूक्लीन प्रोटीन शृंखला का समाधान करने में कौन सी दवा कारगर होगी दवा बनाने वाली कंपनी इस उपकरण के माध्यम से यह पता कर सकेंगी।

By MritunjayEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 03:02 PM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 03:50 PM (IST)
Parkinson Disease: रोग की पहचान और उपचार अब होगा आसान, आइएसएम व आइआइसीबी के शोधार्थियों ने विकसित किया विशेष उपकरण
Parkinson Disease: रोग की पहचान और उपचार अब होगा आसान, आइएसएम व आइआइसीबी के शोधार्थियों ने विकसित किया विशेष उपकरण

धनबाद [ शशिभूषण ]। आइआइटी (आइएसएम) धनबाद के वैज्ञानिकों ने ऐसा उपकरण विकसित करने में सफलता अर्जित है, जिससे पार्किंसन रोग की कारक विषाक्त प्रोटीन शृंखला की पहचान हो सकेगी। साथ ही, इस रोग के उपचार के लिए कारगर दवा का निर्धारण भी इसकी सहायता से संभव होगा। शरीर के अंगों-अंगुलियों में कंपन, मांसपेशियों में अकड़न, शरीर पर नियंत्रण में कठिनाई, याददाश्त में कमी जैसे कई लक्षण पार्किंसन रोग से संबंधित हैं। धीरे-धीरे उभरने वाले ऐसे लक्षण अंतत: शरीर को निष्क्रिय बना देते हैं। समय पर निदान और कारगर उपचार न हो पाने के चलते स्थिति हाथ से निकल जाती है।

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धनबाद, झारखंड स्थित आइआइटी आइएसएम (इंडियन स्कूल ऑफ माइंस) के प्रोफेसर उमाकांत त्रिपाठी और कोलकाता स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी (आइआइसीबी) के प्रोफेसर कृष्णानंद चट्टोपाध्याय ने शोध के बाद ऐसा उपकरण विकसित किया है, जो न केवल पार्किंसन रोग की पुष्टि में सहायक होगा, वरन इसकी दवा का भी सटीक परीक्षण और निर्धारण करेगा। प्रोफेसर त्रिपाठी के अनुसार दिमाग में एल्फा साइन्यूक्लीन नामक प्रोटीन होता है, जो शरीर की संदेश प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। किसी कारणवश जब इस प्रोटीन के कई अणु मिलकर शृंखला बनाते हैं तो इसका प्रभाव खतरनाक हो जाता है। यह शृंखला संदेशों का आदान-प्रदान करने वाली संवेदी तंत्रिकाओं (न्यूरॉन) को नष्ट कर देती है।

प्रो. त्रिपाठी कहते हैं, हमारी टीम ने प्रयोगशाला में इन प्रोटीन अणुओं की शृंखला तैयार की और उसके बनने की प्रक्रिया का गहन अध्ययन किया। साथ ही, इसकी पहचान के लिए विशेष ऑप्टिकल उपकरण भी तैयार किया। रिसर्च टीम के अन्य सदस्यों में साक्षी, सुमंत घोष, विकास चंद्र और रितोब्रिता चक्रवर्ती शामिल हैं। सभी के प्रयास से हमें यह बड़ी सफलता प्राप्त हुई है।  उन्होनें कहा कि इस उपकरण का उपयोग रक्त प्लाज्मा के माध्यम से पार्किंसन की पहचान के लिए होगा। पार्किंसन से ग्रस्त लोगों के प्लाज्मा में यह प्रोटीन शृंखला अवश्य उपस्थित होती है। इसकी पहचान के लिए पार्किंसन रोग के लक्षण वाले रोगी के रक्त के नमूने (सीरम) को लेकर इस उपकरण के माध्यम से जांच की जा सकेगी। नमूने में यदि एल्फा साइन्यूक्लीन शृंखला की उपस्थित होगी तो पुष्ट हो जाएगा कि व्यक्ति पार्किंसन रोग से ग्रस्त है। 

बकौल प्रो. त्रिपाठी, यह उपकरण पार्किंसन रोग में दी जाने वाली दवा का परीक्षण कर यह भी बताएगा कि दवा कारगर है या नहीं। एल्फा साइन्यूक्लीन प्रोटीन शृंखला का समाधान करने में कौन सी दवा कारगर होगी, दवा बनाने वाली कंपनी इस उपकरण के माध्यम से यह पता कर सकेंगी। दवा कितनी कारगर है, इसका पता एल्फा साइन्यूक्लीन की शृंखला के टूटने से लग जाएगा। इस शोध का प्रकाशन एसीएस केमिकल न्यूरोसाइंस जनरल में हुआ है।

पार्किंसन रोग की अब तक कोई सटीक दवा नहीं बनी है। हमें उम्मीद है कि यह उपकरण पार्किंसन की पुष्टि करने के साथ ही इसकी दवा तैयार करने में भी मील का पत्थर साबित होगा।

-प्रोफेसर उमाकांत त्रिपाठी, आइआइटी आइएसएम, धनबाद, झारखंड


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