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Dumka Durga Puja: माता के इस दरबार में एक नहीं दो प्रतिमाएं होती स्‍थाप‍ित; एक मंदिर के अंदर और दूसरी बाहर

दुमका जिला के प्रसिद्ध रामगढ़ प्रखंड स्थित भालसुमर दुर्गा मंदिर का इतिहास 200 साल से भी अधिक पुराना है। रामगढ़ प्रखंड मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर रामगढ़-हंसडीहा मुख्य मार्ग पर स्थित भालसुमर दुर्गा मंदिर में गांव के जमींदार बान सिंह मांझी ने पूजा की शुरूआत की थी।

By Atul SinghEdited By: Published: Tue, 12 Oct 2021 05:12 PM (IST)Updated: Tue, 12 Oct 2021 05:12 PM (IST)
Dumka Durga Puja: माता के इस दरबार में एक नहीं दो प्रतिमाएं होती स्‍थाप‍ित; एक मंदिर के अंदर और दूसरी बाहर
रामगढ़ प्रखंड स्थित भालसुमर दुर्गा मंदिर का इतिहास 200 साल से भी अधिक पुराना है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

अमरेंद्र कुमार भगत, रामगढ़(दुमका) : दुमका जिला के प्रसिद्ध रामगढ़ प्रखंड स्थित भालसुमर दुर्गा मंदिर का इतिहास 200 साल से भी अधिक पुराना है। रामगढ़ प्रखंड मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर रामगढ़-हंसडीहा मुख्य मार्ग पर स्थित भालसुमर दुर्गा मंदिर में गांव के जमींदार बान सिंह मांझी ने पूजा की शुरूआत की थी। मंदिर स्थापना को लेकर लगवा स्टेट के राजा तथा जमींदार के बीच तत्कालीन भागलपुर आयुक्त के न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया था। लगवा स्टेट के राजा मंदिर की स्थापना अपने यहां कराना चाहते थे लेकिन कोर्ट ने बान सिंह मांझी के पक्ष में फैसला दिया। जिसके बाद यहां पर एक झोपड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित की गई। बाद में चंदा एकत्र कर एक मंदिर का निर्माण करवाया गया। जमींदार बान सिंह की मृत्यु के बाद भालसुमर तथा डेलीपाथर गांव में रह रहे उनके वंशजों के बीच मंदिर में पूजा-अर्चना को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया जो आज तक कायम है।

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भालसुमर तथा डेलीपाथर के ग्रामीणों के बीच मुख्य मंदिर के अंदर दुर्गा पूजा के दौरान प्रतिमा स्थापित करने को लेकर तनाव उत्पन्न हो जाता है। जिसके कारण प्रति वर्ष प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ता है। हालांकि तीन-चार वर्षों से किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हो रही है। मामला आज भी न्यायालय में लंबित है। प्रशासन द्वारा हस्तक्षेप करने के बाद आपसी सहमति से वर्षो पूर्व यह निर्णय लिया गया था कि डेलीपाथर गांव के ग्रामीणों द्वारा निर्मित दुर्गा की प्रतिमा मंदिर के अंदर तथा भालसुमर गांव के ग्रामीणों द्वारा निर्मित दुर्गा की प्रतिमा मंदिर के बाहर बरामद में रखी जाती है। यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है जो आज भी कायम है। एक ही मंदिर में दो दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है एक अंदर तथा एक बाहर बरामदा में।

ग्रामीणों की मानें तो माता के दरबार में जो भी भक्त सच्चे मन से जो कुछ मांगता है उनकी मुराद पूरी होती है।

ऐसे तो यहां पर प्रत्येक मंगलवार को माता का दरबार सजता है। लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान पूजा-अर्चना कुछ खास ही महत्व रखता है। दुर्गा पूजा के दौरान यहां पर सप्तमी को कलश स्थापित की जाती है। अष्टमी की रात्रि से ही यहां हजारों की संख्या में पाठा की बलि दी जाती है। पाठा के सिर को बेचने के लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी द्वारा प्रतिवर्ष इसकी डाक लगाई जाती है। लेकिन लगातार दो साल से कोरोना वायरस के कारण मेला का डाक नहीं किया गया है।

बीडीओ कमलेंद्र कुमार सिंहा के मुताबिक इस वर्ष भी मेला का आयोजन नहीं किया जाएगा। जिस प्रकार पूजा होती थी उसी प्रकार पूजा होगी। प्रशासन की निगरानी में पाठा के सिर की बोली लगाई जाएगी। किसी प्रकार का विरोधाभास न हो इसके लिए पूर्व में भी डेलीपाथर एवं भालसुमर के ग्रामीणों के साथ बैठक की गई है। मंदिर में श्रद्धालुओं को कतार बद्ध तरीके से पूजा-अर्चना कराया जाएगा। दुर्गा पूजा के दौरान प्रत्येक वर्ष झारखंड, बिहार तथा पश्चिम बंगाल से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।


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