Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti 2021: जबलपुर के जियाउद्दीन के वेश में पेशावर मेल से निकल गए थे नेताजी, हाथ मलते रह गए फिरंगी
Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गोमो रेलवे स्टेशन का नाम इतिहास के पन्ने में दर्ज है। धनबाद जिले में स्थित गोमो रेलवे स्टेशन जिसका नाम बदलकर अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो रेलवे स्टेशन किया जा चुका है।
गोमो [ मनोज स्वर्णकार ] । Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti 18 जनवरी 1941, इसी दिन ने धनबाद के गोमो को दुनिया के मानचित्र में विशेष स्थान नवाजा। गोमो रेलवे स्टेशन से कालका मेल से महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाषचंद्र बोस इस दिन ही फिरंगियों को चकमा देकर निकल गए थे। पठान के वेश में पहुंचे आजादी के इस महानायक को अंग्रेजी हुकूमत छू भी न सकी थी। भारत का गोमो ही वह रेलवे स्टेशन था, जहां नेताजी अंतिम बार देखे गए थे।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर बनाती गोमो की नेहा चाैधरी
नजरबंदी में कोलकाता से निकल पहुंचे धनबाद
दरअसल नेताजी को गोरों की सरकार ने उनके घर कोलकाता में नजरबंद कर दिया था। नेताजी का धनबाद से गहरा रिश्ता था। यहां उनके भतीजे अशोक बोस इंजीनियर थे। 16 जनवरी 1941 को वे जबलपुर के जियाउद्दीन पठान के वेश में कोलकाता से निकल गए। धनबाद के बरारी इलाके में भतीजे अशोक बोस के यहां गए। वे यहां केमिकल इंजीनियर थे। वहां से वंडर कार से भतीजे शिशिर बोस के साथ तोपचांची आए। अंग्रेजों को खबर न लगे इसलिए वह कार छिपा दी थी। दूसरी कार से गोमो के लिए चल पड़े। फिर उस कार को भी छोड़ दिया। नेताजी के मित्र अधिवक्ता शेख मो. अब्दुल्लाह गोमो के निवासी थे। अब्दुल्लाह तो नहीं रहे, उनके बड़े पोते हसीबउल्लाह आज भी अपनी विरासत को बयां करते करते भावुक हो उठते हैं। उन्होंने बताया कि अब्बा डॉ. एसएम अब्दुल्लाह हमेशा दादाजी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के किस्से सुनाते थे।
गोमो स्थित अब्दुल्लाह का घर जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस ठहरे थे
पठान के रूप में देख नेताजी को नहीं पहचान पाए थे अब्दुल्लाह
हसीबउल्लाह ने बताया था कि नेताजी पैदल ही लोको बाजार के हाते में उनके घर आ गए थे। शाम के छह बजे थे। तभी नेताजी ने दरवाजे पर दस्तक दी। दादा ने दरवाजा खोला। एक पठान को देख पहले तो नहीं पहचाना। जब नेताजी ने परिचय दिया तो वे अवाक रह गए। नेताजी ने उनको बताया कि उनको फिरंगी तलाश रहे हैं। इसलिए यह वेश रखा। दादा और नेताजी के बीच करीब पांच घंटे बातचीत हुई। रात हो चुकी थी। पेशावर एक्सप्रेस (कालका मेल) गोमो स्टेशन आने वाली थी। नेताजी पेशावर एक्सप्रेस से जाना चाहते थे। अब्दुल्लाह साथ जाते तो उनकी पहचान का डर था। तब उन्होंने पड़ोसी अमीन दर्जी को बुलाया। उनके साथ पैदल ही नेताजी को गोमो स्टेशन भेज दिया। लोको बाजार से गोमो स्टेशन तक के इलाके में जंगल था। उनके बीच से नेताजी गोमो स्टेशन पहुंचे। कुछ देर में ट्रेन आई और नेताजी उस पर सवार होकर निकल गए। अंग्रेज हाथ मलते रह गए। अब्दुल्लाह इस दुनिया में नहीं हैं पर उनका पुश्तैनी मकान आज भी नेताजी की यादों को संजोए है। अब्दुल्लाह की याद में गोमो के लोको बाजार में आलीशान द्वार बना है। उनके मकान में जहां नेताजी बैठे थे, उस कमरे को सौंदर्यीकरण किया गया है। उसे इस परिवार के लोगों ने छेड़ा नहीं। परिवारवालों का कहना है कि ताउम्र कमरे का वजूद बनाए रखेंगे।
अब्दुल्लाह के पोत हसीबुल्लाह
बरारी में नेताजी से जुड़े धरोहर की अनदेखी
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादों से जुड़ा है बरारी कोक प्लांट। बावजूद यहां का मैदान अनदेखी का शिकार है। इस स्थान पर नेताजी ने कुछ समय बिताया था। ईस्ट इंडिया कोल कंपनी के एक बंगले में उनके भतीजे रहते थे। इस धरोहर को बचाने को नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्मारक समिति दो दशक से प्रयास में लगी है। इसी के फलस्वरूप बीसीसीएल की ओर से बीच बलिहारी स्थित नेताजी की इस धरोहर को बचाने के लिए नेताजी कुटीर का निर्माण किया गया। वर्ष 1997 में नेताजी के भतीजे शिशिर बोस ने इस पार्क का उद्घाटन किया था। नेताजी कुटीर में नेताजी की कार एवं उनकी कुछ तस्वीरें लगी हुई हैं।