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आज ही की तारीख झारखंड के इस स्टेशन से नेताजी ने पकड़ी थी ट्रेन, जानिए फिर कहां गुम हो गए

Subhas Chandra Bose गोमो स्टेशन से 18 जनवरी 1941 को नेताजी आधी रात 12 बजे अप कालका मेल पकड़ कर गोमो स्टेशन से रवाना हुए थे। उसी समय से गोमो के लोग 18 जनवरी को महानिष्क्रमण दिवस के रूप में मनाते आ रहे है।

By MritunjayEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 02:47 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 08:34 AM (IST)
आज ही की तारीख झारखंड के इस स्टेशन से नेताजी ने पकड़ी थी ट्रेन, जानिए फिर कहां गुम हो गए
नेताजी की ऐतिहासिक यात्रा की याद कराता गोमो रेलवे स्टेशन पर बना स्मारक ( फोटो जागरण)।

मनोज स्वर्णकार, गोमो। पहाड़ों से घिरा झारखंड का गोमो रेलवे स्टेशन महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ऐतिहासिक यात्रा से जुड़ा हुआ है। रहस्मय तरीके से गुम होने से पहले नेताजी धनबाद के गोमो में 17-18 जनवरी की रात 1941 में देखे गए थे। वे ट्रेन पर सवार होकर पेशावर ( अब पाकिस्तान) के लिए रवाना हुए। इसके बाद क्या हुआ ? कोई नहीं जानता। कहा जाता है कि नेताजी गोमो से पेशावर और फिर रंगून गए थे। नेताजी की याद में हर साल गोमो में 18 जनवरी को महानिष्क्रमण दिवस मनाया जाता है। इस साल भी नेताजी को याद करने और श्रद्धांजलि देने के लिए गोमो रेल प्रशासन और स्थानीय लोगों ने तैयारी की है। 

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गोमो रेलवे स्टेशन का नामकरण नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम

महानिष्क्रमण पर निकलने के लिए नेताजी ने गोमो स्टेशन से ही पेशावर के लिए ट्रेन पकड़ी थी। इसके बाद देश में नेताजी कभी देखे नहीं गए। नेताजी के सम्मान में रेल मंत्रालय ने साल 2009 में इस स्टेशन का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो जंक्शन कर दिया। 23 जनवरी, 2009 को तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उनके स्मारक का यहां लोकार्पण किया था।

किस ट्रेन में सवार हुए नेताजी

17-18 जनवरी की रात 1941 को कार से नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने भतीजे डा. शिशिर बोस के साथ धनबाद के गोमो स्टेशन पहुंचे थे। अंग्रेजी फौजों और जासूसों से नजर बचाकर गोमो हटियाटाड़ के घने जंगल में नेताजी छिपे रहे। यहां जंगल में ही स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और वकील चिरंजीव बाबू के साथ एक गुप्त बैठक की थी। बैठक के बाद वकील चिरंजीवी बाबू और अलीजान ने गोमो के ही लोको बाजार स्थित काबली वालों की बस्ती में नेताजी को ले गए। यहां उनको एक घर में छिपा दिया था। नेताजी गोमो के ही लोको बाजार स्थित कबीलेवालों की बस्ती में ही रहे। रात में दोनों साथियों ने इसी गोमो स्टेशन से उनको अप कालका मेल में बिठाकर रवाना किया। इसके बाद नेताजी कहां गए और उनके साथ कोई नहीं जानता? वह रहस्यमय तरीके से गुम हो गए। तब कालका मेल हावड़ा से वाया दिल्ली पेशावर तक चलती थी। इसलिए गोमो का नाम नेताजी सुभाष चंद बोस जंक्शन रखा गया। इसके बाद से अब प्रत्येक वर्ष प्रत्येक वर्ष 17-18 जनवरी को मध्यरात्रि निष्क्रमण दिवस स्टेशन परिसर में मनाया जाता है। धनबाद से नेताजी का गहरा नाता रहा है।

नेताजी की याद में हावड़ा-कालका मेल का बदला गया नाम

रेलवे की ओर से ऐतिहासिक हावड़ा-कालका मेल का नाम बदलकर 'नेताजी एक्सप्रेस' किया गया है। हावड़ा-कालका मेल भारतीय रेलवे नेटवर्क की उन सबसे पुरानी ट्रेनों में एक है, जो अभी भी पटरियों पर दौड़ रही है। यह ट्रेन पहली बार 1866 में चली थी। तबसे यह ट्रेन देश की सेवा कर रही है। प्रत्येक वर्ष गोमो के समाज सेवियों के द्वारा 18 जनवरी की रात गोमो स्टेशन पर हावड़ा-कालका मेल एक्सप्रेस का स्वागत कर रेल चालक व गार्ड को बुके देकर सम्मानित करते हैं। साथ ही गुलदस्ता देकर तथा हर डिब्बे में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की तस्वीर वाली स्टिकर साट कर भारत माता की जयकारे के साथ ट्रेन को गंतव्य ये लिए रवाना करते है।


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