Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti 2020: महानिष्क्रमण से पहले अंंतिम बार गोमो में देखे गए थे नेताजी
16 जनवरी 1941 में जब नेताजी जियाउद्दीन पठान के वेश में अंग्रेजों की नजरबंदी से कोलकाता से भाग निकले तो सीधे धनबाद बरारी चाचा अशोक बोस के यहा गए।
धनबाद [ जागरण स्पेशल ]। हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का धनबाद से गहरा नाता रहा है। नेताजी का वर्ष 1930 से 1941 के बीच कई बार धनबाद आगमन हुआ था। यहा वे जर्मन वेंडरर सेडान कार पर सवार होकर धनबाद, झरिया, जामाडोबा, टाटा सिजुआ, तोपचाची, कतरास और बाघमारा इलाके में घूमते थे। ताकि देश की आजादी के लिए चल रहे आदोलन में लोगों को एकजुट कर सकें।
मजदूरों के बीच बैठकों के दौरान ही आजाद हिंद फौज की परिकल्पना में रंग भरे गए। काबुल होते हुए जापान जाने के क्रम में नेताजी ने धनबाद के गोमो स्टेशन से दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ी थी। 18 जनवरी 1941 की रात नेताजी ने गोमो रेलवे स्टेशन से हावड़ा-पेशावर मेल (वर्तमान में कालकाला मेल) पर सवार होकर निकले थे। अंतिम बार उनको गोमो रेल जंक्शन पर ही देखा गया था। इसके बाद नेताजी कभी देखे नहीं गए। नेताजी के सम्मान में रेल मंत्रालय ने वर्ष 2009 में इस स्टेशन का नाम नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमोह जंक्शन कर दिया। 23 जनवरी 2009 को तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद ने उनके स्मारक का यहा लोकार्पण किया।
धनबाद में रहते थे नेताजी के रिश्तेदारः नेताजी जब भी धनबाद आते थे तो तोपचाची में रहने वाले एक बंगाली परिवार के यहा जरूर जाते थे। नेताजी का धनबाद से एक तरह से पारिवारिक रिश्ता भी था। यहा उनके चाचा अशोक बोस केमिकल इंजीनियर थे। 16 जनवरी 1941 में जब नेताजी जियाउद्दीन पठान के वेश में अंग्रेजों की नजरबंदी से कोलकाता से भाग निकले तो सीधे धनबाद बरारी चाचा अशोक बोस के यहा गए। नेता जी दिनभर यहीं रहे। यही भारत में उनका आखिरी पड़ाव था। इसके बाद वहा से कार से तोपचाची चले गए। तोपचाची से दूसरी कार (बीएलए 7164) पर सवार होकर गोमोह स्टेशन गए। यहा से ट्रेन पर सवार होकर वे दिल्ली रवाना हुए। कोलकाता में नेताजी के पैतृक आवास को ही म्यूजियम का रूप नेताजी रिसर्च ब्यूरो नाम दिया गया है। यहा नेताजी के दुर्लभ सामान सहेज कर रखे गए हैं। उनमें यह कार भी है। उस कार का मालिकाना हक ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था। कंपनी ने यह कार बरारी प्लाट में तैनात अशोक बोस को दी थी। जो नेताजी के चाचा थे। धनबाद आने पर नेताजी इसी कार की सवारी करते थे। इसी कार से तोपचाची तक गए और फिर वहा से गोमोह स्टेशन के लिए दूसरी कार ली।
गोमोह हो गया नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन: 17-18 जनवरी 1941 की रात के समय कार से नेताजी अपने भतीजे डॉ. शिशिर बोस के साथ धनबाद के गोमोह स्टेशन पहुंचे। अंग्रेजी फौजों और जासूसों से नजर बचाकर गोमोह हटियाटाड़ के घने जंगल में नेताजी छिपे रहे। यहा जंगल में ही स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और वकील चिरंजीव बाबू के साथ एक गुप्त बैठक की थी। बैठक के बाद वकील चिरंजीवी बाबू व अलीजान ने गोमो के ही लोको बाजार स्थित कबीलेवालों की बस्ती में नेताजी को ले गए। यहा उनको एक घर में छिपा दिया था। रात भर नेताजी यहा रहे। 18 जनवरी 1941 की रात दोनों साथियों ने इसी गोमोह स्टेशन से उनको कालका मेल से दिल्ली रवाना किया था। इसलिए गोमोह का नाम नेताजी सुभाष चंद बोस जंक्शन रखा गया। नेताजी ने धनबाद में 1930 में देश की पहली रजिस्टर्ड मजदूर यूनियन कोल माइनर्स टाटा कोलियरी मजदूर संगठन की स्थापना की थी। नेताजी स्वयं इसके अध्यक्ष थे। यहीं से देश को आजाद कराने को आजाद हिंद फौज का सपना पूरा करने की दिशा में नेताजी ने मजदूरों को एकजुट कर कदम बढ़ाए थे।