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बालमन पर लिखी जा रही संस्कारों की इबारत

धनबाद : बोकारो से लगभग 20 किलोमीटर दूर बांस के जंगलों के बीच है पुपुनकी आश्रम। आश्रम बेहद खास है। यह

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jun 2018 10:47 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jun 2018 10:47 AM (IST)
बालमन पर लिखी जा रही संस्कारों की इबारत
बालमन पर लिखी जा रही संस्कारों की इबारत

धनबाद : बोकारो से लगभग 20 किलोमीटर दूर बांस के जंगलों के बीच है पुपुनकी आश्रम। आश्रम बेहद खास है। यहां भारतीय संस्कृति सहेज बालमन पर संस्कारों की इबारत लिखी जाती है। बच्चों के मस्तिष्क में भारतीय परंपराएं और संस्कार भरे जाते हैं। जी हां यहां गुरुकुल शिक्षण पद्धति से बच्चों को शिक्षा प्रदान की जा रही है। बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ श्रमदान, संस्कार, सेवाभाव, नैतिकता व अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाता है। गोपालन व कृषि से संबंधित जानकारी भी दी जाती है। आश्रम की जिम्मेदारी वर्तमान में सचिव डॉ. आनंद कमल ब्रह्माचारी देख रहे हैं।

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स्वामी स्वरूपानंद ने की थी

पुपुनकी आश्रम की स्थापना

स्वामी स्वरूपानंद परमहंस देव ने 70 वर्ष पूर्व चास प्रखंड के पुपुनकी में आश्रम की स्थापना की थी। उन्होंने यहां के ग्रामीणों को भारतीय दर्शन से परिचित कराया। वक्त गुजरने के साथ बिहार के अलावा पश्चिम बंगाल व पूर्वोत्तर राज्यों तक से श्रद्धालु यहां सत्संग के लिए आने लगे।

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शिक्षा के माध्यम से

भर रहे संस्कार

संस्कृति की रक्षा के लिए बच्चों को शिक्षा में संस्कार देने की बात स्वामी स्वरूपानंद ने ठानी। आश्रम परिसर में 1974 में स्वावलंबी विद्यापीठ की स्थापना के साथ यह सपना साकार हो गया। यहां बच्चों के लिए आवास, भोजन व शिक्षा की व्यवस्था हो गई। बच्चों को गुरुकुल शिक्षण पद्धति से शिक्षा दी जाती है। यहां असम, मेघालय, त्रिपुरा, बिहार, पश्चिम बंगाल व झारखंड के लगभग 80 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। कक्षा पांच से दसवीं तक शिक्षा दी जाती है। प्राचार्य कालीपद पांजा के नेतृत्व में एक दर्जन शिक्षक बालमन पर संस्कारों की इबारत लिख रहे हैं। यहां के बच्चे झारखंड अधिविद्य परिषद व पश्चिम बंगाल बोर्ड के माध्यम से मैट्रिक परीक्षा में शामिल होते हैं। यहां अध्ययनरत बच्चे के अभिभावक को प्रति माह शुल्क का भी भुगतान करना होता है।

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गुरुकुल की दिनचर्या

में कड़ा अनुशासन

यहां रहने वाले बच्चे सुबह योगासन करते हैं। इसके बाद गोशाला व खेत में स्वेच्छा से श्रमदान करते हैं। को¨चग क्लास के बाद वे विद्यापीठ में शिक्षा ग्रहण करते हैं। छुट्टी के पश्चात खेलकूद में भाग लेते हैं। संध्या प्रार्थना के बाद को¨चग क्लास करते हैं। बच्चों को गाय की महत्ता से अवगत कराया जाता है। आश्रम में रहने वाले बच्चों व लोगों को निश्शुल्क दूध दिया जाता है। आश्रम की ओर से 50 बीघा जमीन पर कृषि कराई जाती है। यहां सब्जी, फल व खाद्यान्न का उत्पादन होता। जो आश्रम की रसोई में प्रयुक्त होता है।

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आश्रम का संदेश

'जल ही जीवन'

स्वामी स्वरूपानंद अब इस दुनिया में नहीं हैं। पर, उन्होंने अपने जीवनकाल में जल प्रबंधन, कृषि को हमेशा महत्व दिया। आश्रम में जल व खेतों के लिए सिंचाई व्यवस्था उनकी जल प्रबंधन क्षमता की नजीर है। उन्होंने आश्रम के बगल की जोड़िया को बांधकर जल संग्रह कराया। पास में डीप बो¨रग कराकर जल को आश्रम की टंकी तक पहुंचाया। यह पानी आश्रम के काम आता है। साथ ही जोड़िया के पानी का प्रयोग खेत की ¨सचाई में होता है। आश्रम की ओर से क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए निश्शुल्क चिकित्सा शिविर लगते हैं।

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पुपुनकी आश्रम में बच्चों को नैतिक मूल्यों पर शिक्षा दी जाती है। बच्चों व आम लोगों को गाय की महत्ता, कृषि के वैज्ञानिक तरीके बताए जाते हैं। जल प्रबंधन व पौधरोपण पर जोर दिया जाता है। आश्रम समाज को भारतीय दर्शन के महत्व से रूबरू करा रहा है।

डॉ.आनंद कमल ब्रह्माचारी, सचिव

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विद्यार्थियों को जीवन पथ पर आगे बढ़ने को संस्कारों के साथ ज्ञान दिया जाता है।

कालीपद पांजा, प्राचार्य, स्वावलंबी विद्यापीठ

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आश्रम में नैतिक मूल्यों से अवगत कराया जाता है। शिक्षक बेहतर शिक्षा और भारतीय दर्शन से परिचित कराते हैं।

अनिरुद्ध पाल, छात्र, तिनसुकिया असम


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