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पिता से फोन पर पूरी बात भी नहीं कर पाए थे कुलदीप, बहू ने कहा- शहादत के बाद शहीद को मातृभूमि नसीब होनी चाहिए

घनश्याम उरांव ने बताया कि दो दिन पूर्व उनकी बेटे से बात हुई थी। जब वह कॉल किया था तब वे बाजार में थे। उसने कहा था कि आप घर लौटिए तब कॉल करेंगे।

By Sagar SinghEdited By: Published: Fri, 03 Jul 2020 04:04 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2020 06:35 PM (IST)
पिता से फोन पर पूरी बात भी नहीं कर पाए थे कुलदीप, बहू ने कहा- शहादत के बाद शहीद को मातृभूमि नसीब होनी चाहिए
पिता से फोन पर पूरी बात भी नहीं कर पाए थे कुलदीप, बहू ने कहा- शहादत के बाद शहीद को मातृभूमि नसीब होनी चाहिए

साहिबगंज, [डॉ. प्रणेश]। शुक्रवार की सुबह जिले के लिए फिर मनहूस खबर लेकर आई। सुबह उठते ही लोगों को यहां के एक और लाल कुलदीप उरांव के श्रीनगर में शहीद होने की खबर मिली। जिसे भी यह सूचना मिली वह हतप्रभ रह गया क्योंकि करीब डेढ़ माह के अंदर साहिबगंज के तीन नौजवान शहीद हो चुके हैं। शहीद कुलदीप के पिता घनश्याम उरांव साहिबगंज नगर परिषद के वार्ड नंबर 28 के पार्षद हैं। वर्तमान में वे साहिबगंज मंडल कारा के सामने रहते हैं। शुक्रवार अलसुबह से ही लोगों का उनके यहां पहुंचना शुरू हो गया। वे बेटे के शहादत का गम सीने में दबाए आने वाले लोगों को बैठने के लिए कह रहे थे तथा शव आने के बाद होनेवाली भीड़ के मद्देनजर दरवाजे पर पड़े बालू व पत्थर को भी हटाने का निर्देश दे रहे थे।

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उन्होंने बताया कि गुरुवार की रात 11 बजे उन्हें सीआरपीएफ अधिकारियों ने जम्मू से फोन कर बेटे की शहादत की सूचना दी। बताया कि दो दिन पूर्व उनकी बेटे से बात हुई थी। जब वह कॉल किया था तब वे बाजार में थे। उसने कहा था कि आप घर लौटिए तब कॉल करेंगे। चूंकि वे स्वयं सीआरपीएफ में रहे हैं इसलिए ड्यूटी के दौरान होनेवाली परेशानियों से अवगत हैं। इस वजह से उन्होंने दुबारा कॉल नहीं किया। इसके बाद उसकी कोई सूचना नहीं मिली। गुरुवार की रात सीआरपीएफ अधिकारियों ने बहू को फोन किया जहां से उन्हें मेरा नंबर मिला तब अधिकारियों ने कॉल किया। उन्होंने बताया कि कुलदीप सितंबर में 15 दिन की छुट्टी में यहां आया था। इस माह 26-27 जुलाई तक यहां आने की बात कही थी।

2001 में हुई थी बहाली : कुलदीप उरांव की बहाली 2001 में सीआरपीएफ कैंप मोकामा में हुई थी। उस समय घनश्याम उरांव वहां पदस्थापित थे। कुलदीप वहीं केंद्रीय विद्यालय में इंटर में पढ़ते थे तभी वैकेंसी निकली। कुलदीप का चयन हो गया जिसके बाद वे पढ़ाई छोड़कर चले गए। सीआरपीएफ में वे हेड कांस्टेबल के पद पर तैनात थे। करीब दो साल से श्रीनगर में वे थे। कुलदीप की शादी 2009 में पश्चिम बंगाल के 24 परगना की वंदना उरांव से हुई थी। वंदना पश्चिम बंगाल पुलिस में है।

रो मत बहू, अमर हो गए कुलदीप : शहीद के पिता ने बताया कि गुरुवार की रात सीआरपीएफ के अधिकारियों ने शव भेजने के संबंध में जानकारी मांगी। उन्होंने कहा कि शव पश्चिम बंगाल के 24 परगना भी जाए तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन बहू ने कहा कि शहीद को शहादत के बाद मातृभूमि नसीब होनी चाहिए। इसके बाद शव साहिबगंज लाने का निर्णय हुआ। शुक्रवार करीब साढ़े दस बजे घनश्याम उरांव ने पहुंचने का समय जानने के लिए बहू वंदना उरांव को कॉल लगाया तो वह रो रही थी। इसपर घनश्याम उरांव ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा- रो मत बहू, रो मत। शहीद कभी मरता नहीं वह अमर हो जाता है। 


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