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Jharkhand: तोता बेचते-बेचते माओवादियों के पैसे से उड़ने लगा मनोज चाैधरी, अब खोलेगा Maoist funding का राज

Terror Funding Case गिरिडीह पुलिस ने भी मनोज चौधरी को रिमांड पर लेने की तैयारी शुरू की है। उसके खिलाफ गिरिडीह जिले में मुकदमे विचाराधीन हैं।

By MritunjayEdited By: Published: Mon, 04 May 2020 10:05 AM (IST)Updated: Mon, 04 May 2020 10:05 AM (IST)
Jharkhand: तोता बेचते-बेचते माओवादियों के पैसे से उड़ने लगा मनोज चाैधरी, अब खोलेगा Maoist funding का राज
Jharkhand: तोता बेचते-बेचते माओवादियों के पैसे से उड़ने लगा मनोज चाैधरी, अब खोलेगा Maoist funding का राज

गिरिडीह [ दिलीप सिन्हा ]। एनआइए की गिरफ्त में आया मनोज चौधरी माओवादियों की कमाई से धनवान हो गया। गिरिडीह जिले के पीरटांड़ में भारती चलकरी गांव के चौधरी के पास कभी इतनी रकम भी नहीं थी कि वो ठीक से भोजन कर सके। उसकी जिंदगी का सफर तोता बेचने से शुरू हुआ था। वह ताड़ी भी बेचता था। इसके बाद मधुबन के पारसनाथ में जैन संस्थाओं के लिए ठेकेदारी का काम शुरू किया था।

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ठेकेदारी के बाद मनोज चाैधरी ने धीरे-धीरे जमीन की दलाली शुरू कर दी। उसी दौरान मनोज के माओवादियों से रिश्ते बनते चले गए क्योंकि पारसनाथ की पहाडिय़ों पर माओवादियों का प्रभाव था। इतना यकीन हो गया था कि जोनल कमांडर अजय महतो, शिव दयाल महतो एवं पतिराम माझी समेत कई बड़े माओवादी लीडरों ने लेवी की रकम निवेश के लिए चौधरी को दी। उस रकम में मनोज को भी हिस्सा मिला। गिरिडीह पुलिस के साथ एनआइए अफसरों का प्रारंभिक अनुमान है कि चौधरी के मार्फत माओवादियों के 40 करोड़ रुपये अचल संपत्ति में लगाए गए। एनआइए ने गिरिडीह जिले में ऐसी कई अचल संपत्ति को जब्त किया है जो माओवादी लीडरों के पैसे से किसी और के नाम पर खरीदी गई है। मनोज के पास माओवादियों के और भी राज हैं। 

90 के दशक में तोता व ताड़ी बेचने पर परिवार चलाना कठिन होने लगा तो चौधरी ने राज मिस्त्री का काम शुरू किया। किस्मत ने साथ दिया। मधुबन में देश भर के जैन संगठन धर्मशाला समेत कई तरह के निर्माण कार्य कराते रहते हैं। मनोज के पास कुछ और पैसे आ गये तो उसने मधुबन की जैन संस्थाओं के लिए ठेकेदारी शुरू की। उस वक्त मधुबन की पहाड़ी और जंगल में माओवादियों का बोलबाला था। उनकी मर्जी के बगैर पत्ता नहीं हिल सकता था। उसी दौरान मनोज ने मधुबन में जमीन की दलाली शुरू की। जल्द ही वो माओवादियों की निगाह में आ गया। माओवादियों के सामने मनोज को हाजिर होना पड़ा। उसके बाद मनोज ने माओवादियों का इस कदर दिल जीत लिया कि उन लोगों ने अपनी रकम उसे देने में संकोच नहीं किया। 2008 तक पुलिस को यकीन हो चला था कि मनोज एवं माओवादी एक दूसरे के लिए समर्पित हो चुके हैं। बता दें कि शनिवार को चौधरी को पश्चिम बंगाल के हुगली से दबोचा गया था।

अकबकीटांड़ कांड के बाद आया एनआइए के निशाने पर 

छह मार्च 2018 को गिरिडीह के तत्कालीन एसपी सुरेंद्र झा एवं एएसपी (अभियान) दीपक कुमार के नेतृत्व में पुलिस एवं सीआरपीएफ ने भाकपा माओवादी के सेंट्रल कमेटी मेंबर (सैक) सुनील मांझी समेत 15 दुर्दांत माओवादियों को डुमरी थाना के अकबकीटांड़ से हथियारों के जखीरे के साथ दबोचा था। वहां कई दस्तावेज मिले थे। उसमें मनोज का नाम माओवादी कमांडरों के निवेशक के नाते दर्ज था। पुलिस ने उसे भी आरोपित किया। 9 मई 2018 को यह मामला एनआइए के हवाले कर दिया गया। एनआइए ने दो आरोप पत्र दाखिल किए जिसमें मनोज का भी नाम था। गहन अनुसंधान के बाद गिरिडीह शहर एवं मधुबन में ऐसी कई चल अचल संपत्ति को जब्त किया गया जिनमें माओवादियों का पैसा लगा होने का संदेह है। 

मनोज को रिमांड पर लेने की तैयारी में गिरिडीह पुलिस भी

अदालत के आदेश पर रिमांड पर लेकर एनआइए के अधिकारी मनोज से रांची में पूछताछ कर रहे हैं। माओवादियों की लेवी की रकम को निवेश करने का एक और आरोपी झरी महतो रांची जेल में है। संभावना है कि चौधरी एवं झरी को आमने-सामने बैठाकर एनआइए अफसर पूछताछ कर सकते हैं। एनआइए यह जानने की कोशिश में हैं कि चौधरी ने किन-किन माओवादी लीडरों की रकम निवेश की है। इसी बीच गिरिडीह पुलिस ने भी चौधरी को रिमांड पर लेने की तैयारी शुरू की है। उसके खिलाफ गिरिडीह जिले में और भी मुकदमे विचाराधीन हैं। 


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