MakeSmallStrong: शाकाहारी लजीज व्यंजन बोले तो -अपना ढाबा, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन भी खुद को नहीं रोक पाते
अपना ढाबा की विशेषता यह है कि यहां केवल शाकाहारी खाना ही मिलता है। आनंद पाठक बताते हैं कि वर्ष 1995 में पिता स्व. नंदकिशोर पाठक ने इसे शुरू किया था। उस समय जीटी रोड पर ढाबा का प्रचलन अधिक था। इसी को ध्यान में रखते हुए नामाकरण किया गया।
धनबाद, जेएनएन। लजीज भोजन के साथ यदि होटल मालिक का प्रेम और अपनापन भी मिल जाए तो पेट के साथ मन भी तृप्त हो जाता है। यही कारण है कि धनबाद के बरवाअड्डा में जीटी रोड से गुजरने वाले सैकड़ों यात्री खाना खाने के लिए अपना ढाबा होटल में जरूर रुकते हैं। होटल के संचालक आनंद पाठक कहते हैं कि सड़क से गुजरने वाले अधिकतर यात्री अनजान होते हैं। वे उन्हें जानते-पहचानते नहीं। होटल में लजीज व्यंजन और अपनापन मिलने के कारण ही वे रुकते हैं। हम भी इसका खास ख्याल रखते हैं कि ग्राहकों को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हो। इसी के कारण यह छोटा सा होटल अब बड़ा स्वरूप ले चुका है।
शाकाहारी सब पर भारी
अपना ढाबा की विशेषता यह है कि यहां केवल शाकाहारी खाना ही मिलता है। आनंद पाठक बताते हैं कि वर्ष 1995 में पिता स्व. नंदकिशोर पाठक ने इसे शुरू किया था। उस समय जीटी रोड पर ढाबा का प्रचलन अधिक था। इसी को ध्यान में रखते हुए इसका नामाकरण भी अपना ढाबा किया गया। पिताजी की सोच थी कि मांसाहार तो सभी जगह मिलता है, लेकिन शुद्ध शाकाहारी खाना जल्दी नहीं मिलता। बहुत लोग रास्ते में शुद्ध शाकाहारी खाना नहीं मिलने के कारण सफर में परेशान होते हैं। इसी कारण होटल में सिर्फ शाकाहारी खाने की व्यवस्था की गई। इसका भी ख्याल रखा गया कि लोगों को घर जैसा लजीज खाना मिले। खाने के बाद ग्राहक तारीफ कर ही जाएं, शिकायत नहीं।
बदलता रहा स्वरूप
शुरुआत में सामान्य होटल के रूप में ही इसे खोला गया। खपरैल छप्पर और बरामदा जैसा परिसर। चारपाई और चौकी लगी थी। तब ट्रक चालक और खलासी सबसे अधिक आते थे। लंबी दूरी की बसें भी रुकती थी। बाद में यहां के खाने की चर्चा शहर में भी होने लगी। तब शहर के लोग भी आने लगे। तब इसे बड़े होटल का रूप दिया गया। कुर्सी और टेबल की व्यवस्था की गई। भवन का भी विस्तार कर उसे आधुनिक रूप दिया गया। परिवार के साथ आने वाले लोगों के लिए अलग व्यवस्था की गई।
लॉकडाउन में स्टाफ को संभाला
होटल में बावर्ची से लेकर साफ-सफाई करने वाले 15 लोग कार्यरत हैं। लॉकडाउन के दौरान उन्हें संभाल कर रखने की चुनौती थी। लॉकडाउन शुरू होते ही होटल बंद हो गया। कई स्टाफ अपने घर जाने लगे। सभी को तीन माह का पैसा देकर विदा किया गया। चार स्टाफ ऐसे थे जो यहीं रुक गए। उनके लिए प्रतिदिन खाने-पीने से लेकर रहने और दवा की भी व्यवस्था की गई। यहां भी उन्हें पैसा दिया गया। पाठक बताते हैं कि लॉकडाउन में होटल बंद रहने के कारण आर्थिक स्थिति कमजोर तो हुई, लेकिन स्टाफ के साथ और पिता के आशीर्वाद से अब सब ठीक है।
दिशोम गुरु की मनपसंद जगह
झारखंड के दिशोम गुरु और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की यह मनपसंद जगह है। शिबू सोरेन जब भी धनबाद आते अथवा इस रास्ते से गुजरते हैं तो यहां अवश्य रुकते हैं। यहां के शाकाहारी भोजन का आनंद उठाने के बाद ही उनका काफिला आगे निकलता है। वही नहीं, राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी समेत कई मंत्री, सांसद और विधायक भी उनके नियमित ग्राहक हैं।