16 साल16 सवालः धनबाद में स्वास्थ्य सेवाओं में निष्ठा व समर्पण की घोर कमी
सरकारी अस्पताल के प्रत्येक विभाग में चिकित्सकों की घोर कमी है। जहां चिकित्सक हैं भी तो वहां मरीजों का इलाज जूनियर डाक्टर और नर्सों के भरोसे होता है। जब भी सरकारी टीम इन अस्पतालों का दौरा करती हैं, तब सारी व्यवस्था दुरुस्त मिलती है।
धनबाद, जेएनएन। झारखंड की स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। गांव से लेकर शहर तक में आधारभूत संरचनाओं से ज्यादा आवश्यक है चिकित्सकों एवं पारा मेडिकल स्टाफ में अपने काम के प्रति निष्ठा और समर्पण की भावना। सरकारी स्वास्थ्य सेवा में नियुक्त चिकित्सकों एवं कर्मियों में इसकी घोर कमी दिखती है। यह कहना है धनबाद के प्रबुद्ध एवं आमजनों का, जो इस व्यवस्था से हर रोज दो-चार होते हैं। लोगों को स्वास्थ्य सेवा में हर दिन परेशानी का सामना करना पड़ता है। कोई भी ऐसा शख्स नहीं है, जो डॉक्टर या अस्पताल की व्यवस्था से खुश है।
सरकारी अस्पताल के प्रत्येक विभाग में चिकित्सकों की घोर कमी है। जहां चिकित्सक हैं भी तो वहां मरीजों का इलाज जूनियर डाक्टर और नर्सों के भरोसे होता है। जब भी सरकारी टीम इन अस्पतालों का दौरा करती हैं, तब सारी व्यवस्था दुरुस्त हो जाती है, पर जनता को फिर से पुरानी व्यवस्था ही मिलती है। सरकार इनकी ठोस निगरानी व्यवस्था सुनिश्चित करे। इसके लिए तकनीकी निगरानी की जानी चाहिए। इसके विपरीत निजी अस्पतालों में दक्ष कर्मचारियों की घोर कमी दिखती है।
- सुनील कुमार सिंह, निदेशक पेटसी
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था की पूर्ति के लिए प्राथमिक और उपप्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो बना दिया गया है, लेकिन यहां मूलभूत जरुरतें जस की तस हैं। ना चिकित्सक हैं और ना ही स्टाफ। दवाओं का भी घोर अभाव है। छोटी सी छोटी बीमारी के लिए भी जिला अस्पताल पर निर्भर रहना पड़ता है। सरकार तो योजनाएं बना रही हैं, लेकिन इसका लाभ कितने लोगों तक मिल रहा है इसे देखने वाला कोई नहीं। जनता में भी जागरूकता का अभाव है। इस कारण लोगों को योजनाओं का संपूर्ण लाभ नहीं मिल पा रहा है।
- आनंद राय, सचिव रूद्रा संस्थान
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में एएनएम की बहाली केवल दिखावा के लिए की गई है। एएनएम को अस्पताल में रहने ही नहीं दिया जाता। अस्पताल का काम छोड़ बाकी सभी कार्य इनसे कराए जाते हैं। एएनएम सप्ताह में अधिकांश समय बैठकों में व्यवस्थ रहती हैं। सबसे बुरी स्थिति सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की है, जहां के लोगों को आज भी चिकित्सीय सुविधा के लिए 45 से 50 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। सरकार के पास सारी ताकत है, लेकिन जनता के लिए इनकी ताकत फेल कर जाती है। ईमानदार पहल करने से हर राजनेता घबराता है।
- संजय राय, पूर्व मुखिया
निजी अस्पतालों में सीधे तौर पर गरीबों के इलाज के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। वर्तमान में सरकार ने इलाज कराने के लिए पांच लाख रुपये तक की छूट दी है, लेकिन इलाज कराने के बाद इनके बिल का भुगतान नहीं होने से अस्पतालों ने गरीबों का इलाज करना बंद कर दिया है। जिस प्रकार से अस्पतालों में बीमा कंपनियों के लिए जगह दी जाती है, उसी प्रकार से गरीबों के लिए भी एक अलग से हेल्प डेस्क का गठन किया जाना चाहिए। दूसरी यह कि सरकार स्वास्थ्य के नाम पर जो व्यवस्था दे रही है, उसकी निगरानी निचले स्तर पर भी की जानी चाहिए।
- कंवलजीत सिंह धीर, व्यवसायी
सरकारी या निजी अस्पताल कोई भी ईमानदारी पूर्वक अपना काम नहीं कर रहा है। सभी इलाज के नाम पर लूटने में लगे हुए हैं। सरकारी अस्पताल में चिकित्सक काम नहीं करना चाहते और निजी में लूटने का धंधा चल रहा है। इस व्यवस्था को सरकार को रोकना चाहिए। प्रत्येक अस्पताल के लिए सरकार चार साल की मान्यता दे। हर साल उसकी जांच हो और कमी पाए जाने पर उसकी मान्यता को समाप्त कर दिया जाए। हाल के दिनों में गलत दवा देने का मामला सामने आया है। ऐसे मामलों में अस्पताल का लाइसेंस रद करने की कार्यवाही की जानी चाहिए।
- डॉ. अरविंदर कौर, अध्यक्ष रोटरी क्लब
धनबाद की बात करें तो पहले सदर अस्पताल शहर के बीचो बीच स्थित था। जहां सभी का पहुंचना आसान था। अब इसे पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया है। यहां भी कुछ व्यवस्था दी जानी चाहिए थी। दूसरी बात यह है कि सरकारी नौकरी का ठप लग जाने के बाद कोई काम नहीं करना चाहता। ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए कि जो युवक या युवतियां राज्य के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ेंगे, उन्हें पांच साल तक ग्रामीण और उसके बाद के पांच साल तक शहरी क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों में काम करना होगा।
- राजकुमार वर्मा, शिक्षक
सरकार की कोई भी योजना तभी सफल हो सकती है, जब उसमें काम करने वाले लोग अपने कार्य के प्रति निष्ठावान और समर्पित हों। बिना समर्पण के कोई भी व्यवस्था ठोस नहीं बन सकती। विशेष कर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में इसकी घोर कमी दिखती है। लोग सरकारी मेडिकल अस्पताल में पढऩा तो चाहते हैं, लेकिन सरकारी अस्पताल में नौकरी नहीं करना चाहते। सरकार को इस मामले पर गंभीर होना होगा।
- संजय कुमार, शिक्षक