Corona Fighter: मां की ममता से हार गया कोरोना, 6 दिन में ही घर वापसी कर लैब टेक्नीशियन ने मासूम बच्चों को सीने से लगाया
विद्योत्तमा ने बताया कि अस्पताल में रहने के बाद मोबाइल से वीडियो कॉलिंग करके अपने परिजनों से बातचीत करती थी और बच्चे को देखती थी। अस्पताल के कई सहकर्मियों ने इस बीच हिम्मत दी।
धनबाद, जेएनएन। शाम का वक्त था। धनबाद सदर अस्पताल से घर पहुंचीं विद्योतमा कुमारी हाथ-पैर धो रही थी ताकि अपने चार माह के लाडले बिट्टू को लाड-प्यार कर सके। तभी मोबाइल की घंटी बज उठी। स्वास्थ्य विभाग का फोन था। उधर से आवाज आई-आपकी कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव है। यह सूचना कान तक पहुंचते ही विद्योतमा के पैर तले से जमीन खिसक गई। कुछ देर के लिए तो अंधेरा छा गया। चाहकर भी चार माह के बिट्टू को सीने से नहीं लगा सकी। कातर निगाहों से उसे देखती रही। स्वास्थ्य विभाग की टीम आई और विद्योतमा को ले जाकर कोविड-19 अस्पताल में भर्ती कर दिया। कोरोना ने मां और बच्चे को दूर-दूर कर दिया। इसके बाद शुरू हुई कोरोना से जंग। इस जंग में मां की ममता के आगे कोरोना टिक न सका। छह दिन में ही विद्योतमा कोरोना को पराजित कर घर लाैट गईं। अब अपने 5 साल की मासूम बेटी और चार माह के लाडले बिट्टू को सीने से लगा खूब लाड-प्यार लुटा रही हैं।
घर वापसी के दिन मिली दोहरी खुशी
विद्योतमा कुमारी तो पहले से ही कोरोना फाइटर थीं। धनबाद सदर अस्पताल में लैब टेक्नीशियन का काम करते हुए कोरोना से जंग में अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन कर रही थीं। लेकिन जब से कोरोना वायरस को पराजित कर अस्पताल से घर वापसी की है हर जगह चर्चा में है। विद्योतमा की कोरोना जांच रिपोर्ट 26 मई को पॉजिटिव आई थी। इसके बाद कोविड अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती किया। 1 जून को रिपोर्ट निगेटिव आई। 2 जून का दिन और महत्वपूर्ण हो गया जब अस्पताल से छुट्टी मिली और यह पता चला कि उसके घर के सभी सदस्यों की रिपोर्ट भी निगेटिव है। इसमें उसके बच्चों की रिपोर्ट भी शामिल थी। फिलहाल विद्योतमा अपने परिजनों के साथ 14 दिनों तक घर में ही क्वारंटाइन हैं। पति संजीत कुमार पीएमसीएच में आउटसोर्सिंग पर कार्यरत हैं।
6 दिन 6 साल के समान
सदर अस्पताल की लैब टेक्नीशियन 24 वर्षीय विद्योतमा ने कोरोना को पराजित करने के बाद दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए बताया कि पॉजिटिव रिपोर्ट की सूचना मिलने के बाद सबसे पहले अपने पति को सूचना दी। मेडिकल टीम आने के बाद मुझे सेंट्रल अस्पताल में ले जाया गया। अब सबसे बड़ा डर खुद के लिए खत्म हो गया था, चिंता केवल घर-परिवार और नन्हे से 4 माह के बच्चे के लिए था। मन में सबसे बड़ी बेचैनी थी कि मेरी वजह से कहीं मेरे 4 माह के बच्चे और देवर के 3 माह के बच्चे सहित पूरा परिवार संक्रमित ना हो जाए। 6 दिनों तक सेंट्रल अस्पताल में गुजारा लेकिन यह 6 दिन मेरे लिए 6 वर्ष से कम न थे। हर घंटे, हर समय मन बेचैन रहा। लेकिन मन में आशा थी कि जरूर ठीक होकर अस्पताल से घर लाैटूंगी।
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वीडियो कॉलिंग से होती थी बात, परिजनों की आती थी याद
विद्योतमा कुमारी ने बताया कि अस्पताल में रहने के बाद मोबाइल से वीडियो कॉलिंग करके अपने परिजनों से बातचीत करती थी और बच्चे को देखती थी। अस्पताल के कई सहकर्मियों ने इस बीच हिम्मत दी। डॉक्टरों ने भी बीच-बीच में संपर्क कर जल्द ठीक होने की कामना की। सबकी दुआ है कि अब मैं और मेरा परिवार सुरक्षित है।
4 माह का बिट्टू की शारीरिक क्षमता के आगे हार गया कोरोना
विद्योतमा का 4 माह का एक पुत्र हैं। 5 वर्ष की एक बेटी अदिति है। उसकी देवरानी का एक 3 माह की बच्ची है। इसके साथ माता-पिता सहित 10 परिजन एक साथ रहते हैं। सबसे बड़ी चिंता 4 माह के बच्चे को लेकर थी। बच्चे को हर रोज गोद में लेकर लालन-पालन करती थी। लेकिन बच्चे के शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता के आगे कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं हो पाया। अब विद्योतमा का पूरा परिवार खुश है।