यहां जायके के साथ सेहत भी सुधार रहीं चटपटी 'बेमौत' चींटियां, जानिए Dhanbad News
झारखंड के कोड़ा आदिवासी समाज में लाल चींटियों और इनके अंडों का सेवन करता है। ऐसी धारणा है कि लाल चींटी का सेवन सर्दी खांसी बुखार और मलेरिया जैसी बीमारी नहीं होंगी।
By MritunjayEdited By: Published: Sun, 08 Sep 2019 07:55 AM (IST)Updated: Sun, 08 Sep 2019 07:55 AM (IST)
धनबाद [आशीष सिंह]। चींटियों को देखकर भले ही देश के बाकी हिस्से के लोग नाक-भौं सिकोड़ते हों, लेकिन झारखंड के आदिवासी इलाकों में लोग जंगली लाल चींटियों की चटनी बनाकर खाते हैं। नमक, मिर्च और मसाले मिलाकर बनाई जानेवाली यह खट्टी और चटपटी चटनी आदिवासियों के पारंपरिक भोजन और लजीज व्यंजनों की सूची में तो शुमार है ही, यह चटनी अपने खास औषधीय गुणों के लिए भी जानी जाती है।
लाल चींटी को बेमाैत चींटी भी कहतेः हर इलाके में लाल चींटी के अलग-अलग नाम हैं। धनबाद नगर निगम का एक इलाका है, रंगिनीभीठा। यहां आदिवासी कोड़ा समुदाय के लोग लाल चींटी को बेमौत चींटी कहते हैं। इस समुदाय में मान्यता है कि लाल चींटी की चटनी का सेवन करने से कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं। रंगिनीभीठा में पांच छह पीढिय़ों से रहने वाले कोड़ा आदिवासी समाज के लोगों का मुख्य पेशा मिट्टी खोद कर तालाब और कुआं बनाना है। इनमें कुछ लोग खेती भी करते ही हैं। इनके आवासीय इलाके को नगर निगम में शामिल जरूर कर लिया गया है, लेकिन रहन-सहन बिल्कुल वनवासियों वाला है। कोड़ा समुदाय के आदिवासी युवकों के पास मोबाइल फोन नहीं पहुंचा है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती यह चींटीः इंटरमीडिएट तक तालीम हासिल कर चुके मनोज कोड़ा कहते हैं, पुरखों के समय से हमारा समाज बेमौत चींटी का सेवन करते आ रहा है। पूर्वज बताते थे कि इसकी चटनी खाने से सर्दी, खांसी और बुखार नहीं होता है। इस चींटी की चटनी शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। यकीन नहीं हो तो आप खुद सेवन कर देख लीजिए...। कोड़ा समुदाय के लोगों की मान्यता है कि बेमौत चींटी का लगातार सेवन किया जाए तो मलेरिया जैसी बीमारी से भी बचाव हो सकता है।
चींटियों से कटवाकर भी उतरवाया जाता है बुखाः नीम, जामुन, आम और करंज के पेड़ पर बेमौत चींटियों का घरौंदा होता है। रंगिनीभीठा के सुरेश कोड़ा कहते हैं, घर में सब्जी नहीं बनी हो तो भात के साथ चटनी से भी काम चल जाता है। इसके औषधीय गुणों का फायदा भी मिलता है। चींटियों के बारे में मान्यता को लेकर वह बताते हैं कि उनके समुदाया में अगर किसी को बुखार हो जाए तो उसे चींटियों वाली जगह पर ले जाकर बैठाया जाता है। चींटियां जब पीडि़त को काटती हैं तो धीरे-धीरे बुखार उतर जाता है। सुनने में अटपटा लगे, मगर इनकी मानें तो यही सच है।
इसलिए होती हैैं चटपटः आम तौर पर कोड़ा समुदाय के लोग साल के पत्ते में चींटी और उसके अंडों को इकट्ठा करते हैं। फिर उन्हें सिलबट्टे पर पीसा जाता है, बिल्कुल धनिया पत्ती या पुदीने की चटनी की तरह। इसके बाद नमक, मिर्च और तनिक तेल मिला दिया जाता है। चींटी में फॉर्मिक एसिड होता है। जाहिर है, एसिड के कारण स्वाद चटपटा हो जाता है।
क्या कहते हैैं डॉक्टर :चींटी आम तौर पर भारत में लोग नहीं खाते। हालांकि ये चींटियां हेपेटाइटिस बी और गठिया जैसे रोगों के लिए लाभकारी हो सकती है। इससे शरीर की प्रतिरक्षण क्षमता बढ़ती है। ऐसी बात चीन में हुए शोध में सामने आई है। जो लोग चींटी की चटनी नहीं खाते हैैं, उनके भी पेट में भी यदि भोजन के साथ किसी प्रकार चींटी चली जाए तो उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।
-डॉ. नरेश प्रसाद, धनबाद
लाल चींटी को बेमाैत चींटी भी कहतेः हर इलाके में लाल चींटी के अलग-अलग नाम हैं। धनबाद नगर निगम का एक इलाका है, रंगिनीभीठा। यहां आदिवासी कोड़ा समुदाय के लोग लाल चींटी को बेमौत चींटी कहते हैं। इस समुदाय में मान्यता है कि लाल चींटी की चटनी का सेवन करने से कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं। रंगिनीभीठा में पांच छह पीढिय़ों से रहने वाले कोड़ा आदिवासी समाज के लोगों का मुख्य पेशा मिट्टी खोद कर तालाब और कुआं बनाना है। इनमें कुछ लोग खेती भी करते ही हैं। इनके आवासीय इलाके को नगर निगम में शामिल जरूर कर लिया गया है, लेकिन रहन-सहन बिल्कुल वनवासियों वाला है। कोड़ा समुदाय के आदिवासी युवकों के पास मोबाइल फोन नहीं पहुंचा है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती यह चींटीः इंटरमीडिएट तक तालीम हासिल कर चुके मनोज कोड़ा कहते हैं, पुरखों के समय से हमारा समाज बेमौत चींटी का सेवन करते आ रहा है। पूर्वज बताते थे कि इसकी चटनी खाने से सर्दी, खांसी और बुखार नहीं होता है। इस चींटी की चटनी शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। यकीन नहीं हो तो आप खुद सेवन कर देख लीजिए...। कोड़ा समुदाय के लोगों की मान्यता है कि बेमौत चींटी का लगातार सेवन किया जाए तो मलेरिया जैसी बीमारी से भी बचाव हो सकता है।
चींटियों से कटवाकर भी उतरवाया जाता है बुखाः नीम, जामुन, आम और करंज के पेड़ पर बेमौत चींटियों का घरौंदा होता है। रंगिनीभीठा के सुरेश कोड़ा कहते हैं, घर में सब्जी नहीं बनी हो तो भात के साथ चटनी से भी काम चल जाता है। इसके औषधीय गुणों का फायदा भी मिलता है। चींटियों के बारे में मान्यता को लेकर वह बताते हैं कि उनके समुदाया में अगर किसी को बुखार हो जाए तो उसे चींटियों वाली जगह पर ले जाकर बैठाया जाता है। चींटियां जब पीडि़त को काटती हैं तो धीरे-धीरे बुखार उतर जाता है। सुनने में अटपटा लगे, मगर इनकी मानें तो यही सच है।
इसलिए होती हैैं चटपटः आम तौर पर कोड़ा समुदाय के लोग साल के पत्ते में चींटी और उसके अंडों को इकट्ठा करते हैं। फिर उन्हें सिलबट्टे पर पीसा जाता है, बिल्कुल धनिया पत्ती या पुदीने की चटनी की तरह। इसके बाद नमक, मिर्च और तनिक तेल मिला दिया जाता है। चींटी में फॉर्मिक एसिड होता है। जाहिर है, एसिड के कारण स्वाद चटपटा हो जाता है।
क्या कहते हैैं डॉक्टर :चींटी आम तौर पर भारत में लोग नहीं खाते। हालांकि ये चींटियां हेपेटाइटिस बी और गठिया जैसे रोगों के लिए लाभकारी हो सकती है। इससे शरीर की प्रतिरक्षण क्षमता बढ़ती है। ऐसी बात चीन में हुए शोध में सामने आई है। जो लोग चींटी की चटनी नहीं खाते हैैं, उनके भी पेट में भी यदि भोजन के साथ किसी प्रकार चींटी चली जाए तो उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।
-डॉ. नरेश प्रसाद, धनबाद
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें