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BJP District President Election: चंद्रशेखर का बचेगा ताज या मिलेगा नए को माैका, जल्द होगी नाम की घोषणा

अब तक धनबाद में सांसद की राय ही सर्वाेपरि मानी जाती रही है। घोषित तौर पर इस बार भी यही कहा जा रहा है लेकिन अंदरखाने सांसद के नीचे से ऊपर तक हर कोई फेरबदल को आतुर भी दिख रहा है।

By MritunjayEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 08:58 AM (IST)Updated: Wed, 03 Jun 2020 09:53 AM (IST)
BJP District President Election: चंद्रशेखर का बचेगा ताज या मिलेगा नए को माैका, जल्द होगी नाम की घोषणा
BJP District President Election: चंद्रशेखर का बचेगा ताज या मिलेगा नए को माैका, जल्द होगी नाम की घोषणा

धनबाद, जेएनएन। अब जबकि अनलॉक-1 शुरू हो चुका है, भाजपा ने जिलाध्यक्षों की घोषणा शुरू कर दी है। हालांकि बड़े और महत्वपूर्ण छह जिलों के जिलाध्यक्षों की घोषणा नहीं हुई है। इन छह हैवीवेट जिला कमेटियों में धनबाद भी है। उम्मीद की जा रही है कि अगले एक-दो दिन में यहां के जिलाध्यक्षों की भी घोषणा हो जाएगी।

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मार्च में ही जिलाध्यक्ष पद के लिए रायशुमारी हो चुकी है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने भी अपनी राय प्रदेश कमेटी को भेज दी है। अब प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, महामंत्री संगठन धर्मपाल, नेता विधायक दल बाबूलाल मरांडी, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा व पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की मंडली के हाथ में सबकुछ है। आर्थिक व राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होने की वजह से इन पांचों दिग्गजों का एकमत होने जरूरी है। ऐसे में फेरबदल भी अवश्यंभावी माना जा रहा है। कई समीकरणों के टूटने की भी संभावना जताई जा रही है।

अब तक धनबाद में सांसद की राय ही सर्वाेपरि मानी जाती रही है। घोषित तौर पर इस बार भी यही कहा जा रहा है लेकिन, अंदरखाने सांसद के नीचे से ऊपर तक हर कोई फेरबदल को आतुर भी दिख रहा है। यही वजह है कि कल तक वर्तमान जिलाध्यक्ष को ही कमान मिलना अवश्यंभावी बताया जा रहा है लेकिन अब उन्हें चुनौती मिलने की बात कही जा रही है। दूसरी तरफ रायशुमारी से अलग रहे संजय झा जिला महामंत्री होने की वजह से सीधे तौर पर रेस में शामिल हो गए हैं। अरुण राय, मुकेश पांडेय, नितिन भट्ट तगड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं।

इन जिलों की होनी है घोषणा

धनबाद, रांची, खूंटी, जमशेदपुर, हजारीबाग, देवघर

  • ये हैं रेस में

चंद्रशेखर सिंह 

खासियत : वर्तमान जिलाध्यक्ष होने के नाते रायशुमारी में स्वाभाविक तौर पर सर्वाधिक सक्रिय थे। सांसद पीएन सिंह के करीबी हैं। सभी कार्यकर्ताओं तक व्यक्तिगत रूप से पहुंच है। तीन दशक से अधिक समय से संगठन में सक्रियता है।

कमजोरी : अनुशासनात्मक मामलों में सख्ती बरतने में कारगर कदम नहीं उठा सके। इसी वजह से बाघमारा विधायक ढुलू महतो ने मंच से नाराजगी जताई। सिंदरी विधायक के साथ भी रिश्ते ठीक नहीं हैं। पीडीएस का चावल प्रकरण और भाजपा कार्यालय के बकाया मामले उनकी वित्तीय प्रबंधन की लचरता दिखा रही। 

संजय झा

खासियत : जिला महामंत्री के तौर पर स्वाभाविक उम्मीदवार हैं। पार्टी के किसी भी गुट से जुड़े रहने का ठप्पा नहीं लगा है। सभी गुटों से संबंध बेहतर है। सांसद के साथ ही पूर्व सांसद से भी।लोस चुनाव में सांसद के एजेंट और विस चुनाव में सिंदरी विधानसभा के प्रभारी के तौर पर बेहतर परिणाम का श्रेय भी है। 

कमजोरी : खुले तौर पर रायशुमारी में शामिल नहीं हुए थे। सांसद के समक्ष ही यह कुबूल भी किया था। ऐसा वर्तमान जिलाध्यक्ष के समर्थन में किया था। जाहिर है रायशुमारी को आधार माना गया तो पिछड़ जाएंगे। स्थानीय जनप्रतिनिधियों की लॉबिंग में भी शामिल नहीं रहना घाटे का सौदा हो सकता है।

मुकेश पांडेय

खासियत : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से आए पांडेय दो बार युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे हैं। इसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है। रायशुमारी में सभी कार्यकर्ताओं के घर-घर जाकर संपर्क करने का उन्हें प्रतिदान भी मिला है। वे ब्राह्मण हैं और पूर्व सांसद रवींद्र पांडेय समेत एबीवीपी बैकग्राउंड के नेताओं की तगड़ी लॉबी ने साथ दिया तो वे पासा पलट सकते हैं।

कमजोरी : पार्टी में जिलास्तर पर किसी गुट के करीब नहीं हैं। हाल के वर्षों में मुख्य धारा से कटे होने की वजह से कोई बड़ी जिम्मेदारी भी नहीं रही। ऐसे में मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं के बीच पकड़ कमजोर होने व जिला स्तर पर अपनी अलग धारा बनाने, स्थानीय नेताओं से कटे रहने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। 

नितिन भट्ट

खासियत : सांसद के प्रतिनिधि हैं। जिलाध्यक्ष से नाराज चल रहे कार्यकर्ताओं का अच्छा समर्थन प्राप्त है। रायशुमारी में इन्हें प्रबल दावेदार माना गया है। मेयर व विधायक से भी संबंध बेहतर हैं। विभिन्न चुनाव कार्यों में आॢथक मोर्चे पर विश्वस्त कार्यकर्ता के नाते जाने जाते हैं। 

कमजोरी : रायशुमारी के वक्त वर्तमान जिलाध्यक्ष से भिड़ जाने की वजह से चर्चा में रहे। इस घटना के बाद वरदहस्त प्राप्त होगा इसमें संदेह है। अपने लोगों को फिट करने की मानसिकतावाले दौर में सांसद का लेबल लगे होने की वजह से अन्य महारथियों के गले भी नहींं उतर पा रहे। 

अरुण राय

खासियत : अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बैकग्राउंड के अरुण राय पूर्व सांसद प्रो. रीता वर्मा के सहयोगी रहे और विधानसभा चुनाव में बूथ मैनेजमेंट की धुरी रहे। वे विधानसभा टिकट के दावेदार भी रहे। हालांकि बात बनी नहीं। मृदुभाषी राय जमीनी स्तर के कार्यकर्ता रहे हैं। वे समय-समय पर मेयर व वर्तमान विधायक के भी विश्वासपात्र रहे हैं।

कमजोरी : आधुनिक राजनीति के हिसाब से संसाधनविहीनता इनके आड़े आ सकती है। सबको साथ लेकर चलने के दौड़ में एकला चलो रे... की मानसिकता भी कमजोरी ही है। प्रदेश व जिला स्तर पर संबंध भले सबसे अच्छे हों लेकिन करीब किसी के नहीं। नेता की छवि का भी अभाव है लिहाजा बड़े दिग्गजों को साध पाने में कितने सक्षम होंगे समय बताएगा।


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