Jharia, Jharkhand Coal Mine Fire News: 100 साल गुजर गए, न आग रुकी न आबादी हटी; सर्वे और मास्टर प्लान तक ही सिमटा जेआरडीए
झरिया की भूमिगत आग 100 साल से ज्यादा पुरानी है। ब्रिटिश हुकूमत ने खतरे को भांपते हुए वर्ष 1922 में कोयला खदान की आग पर अध्ययन शुरू कराया था। इसके बाद से अबतक कई अध्ययन व सर्वे हुए। आग प्रभावित इलाकों को चिह्नित किया गया।
राजीव शुक्ला/आशीष अंबष्ठ, धनबाद। वर्ष 1916 में सबसे पहले यह बात सामने आई थी कि अपने गर्भ में कोयले का अथाह भंडार समेटेे झरिया की जमीन के नीचे कई हिस्सों में आग धधक रही है। इसके बाद साल-दर-साल और दशक-दर-दशक कोयले में लगी यह आग भीषण रूप धारण कर जमीन के ऊपर बसी आबादी के लिए बड़ा खतरा बनती गई। बड़े इलाके तक फैली भूमिगत आग को बुझाया जाना संभव नहीं था। ऐसे में अग्नि प्रभावित इलाकों से लोगों को हटाकर दूसरी जगह बसाने की चिंता शुरू हुई। इस चिंता के शुरू हुए 100 साल से अधिक समय बीत गए, बड़ी संख्या में लोगों की जान गई। आग से खोखली होती जमीन में लोगों के घर जमींदोज होते गए, लेकिन न आग बुझाई जा सकी, न प्रभावित लोगों का पुनर्वास कराया जा सका। यहां से सबकुछ छोड़कर जाने के एवज में लोग आवास, मुआवजा, रोजगार की व्यवस्था व अन्य सुविधाएं चाहते हैैं, जिसमें अक्सर कोई न कोई तकनीकी बाधा आ जाती है। पुनर्वास पर पीएमओ द्वारा गंभीरता दिखाए जाने के बाद यहां के लोगों में नई उम्मीद जगी है।
अबतक क्या हुआ
ब्रिटिश हुकूमत ने खतरे को भांपते हुए वर्ष 1922 में कोयला खदान की आग पर अध्ययन शुरू कराया था। इसके बाद से अबतक कई अध्ययन व सर्वे हुए। आग प्रभावित इलाकों को चिह्नित किया गया। मुआवजे और पुनर्वास की रूपरेखा तय की गई है। पुनर्वास के लिए लोगों को चिह्नित किया जा चुका है। एक लाख से अधिक परिवारों का पुनर्वास कराया जाना है, लेकिन अभी तक कुछ हजार आवास ही बनाए गए हैैं।
सुप्रीम कोर्ट दे चुका निर्देश, पीएमओ कर रहा निगरानी
पुनर्वास कार्य में तेजी के लिए केंद्र सरकार, झारखंड सरकार और कोल इंडिया लगातार समीक्षा कर रही है, वहीं सुप्रीम कोर्ट भी प्रभावित लोगों को झरिया से हटाकर सुरक्षित जगह में बसाने का निर्देश दे चुका है। झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार का गठन हुए 17 साल गुजर चुके हैैं। 2019 तक सभी लोगों का पुनर्वास कराने की समयसीमा बीत जाने के बाद अब झरिया कोल फील्ड पुनर्वास परियोजना पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने सीधे हस्तक्षेप किया है। हर दिन की प्रगति रिपोर्ट पीएमओ भेजी जा रही है। उसके निर्देश पर नीति आयोग भी पुनर्वास की प्रगति की समीक्षा में लग गया है।
पुनर्वास में अड़चनें क्या हैं
- झरिया से 25 किलोमीटर दूर बेलगढिय़ा में जहां कुछ आवास बनाए गए हैैं, वहां सुविधाओं का अभाव है, जिस कारण लोग वहां नहीं जा रहे।
- 10-15 सदस्यों वाले परिवारों को भी दो कमरे का एक घर आवंटित किया गया है, ऐसे लोग नए आवासों में जाना नहीं चाहते।
- कई बार सर्वे के बाद भी प्रभावितों को मुआवजा नहीं दिया जा सका है।
- बड़ी संख्या में लोग कोयला चुनकर अपना भरण-पोषण करते हैैं। इनमें रैयत भी हैं और अतिक्रमणकारी भी। नई जगह पर जाने से पहले रोजी-रोजगार की व्यवस्था की गारंटी चाहते हैैं।
- मुआवजे और पुनर्वास के लिए वर्ष 2004 का कट आफ डेट तय किया गया है। अब इसके बाद बसे लोग इस समयसीमा को बढ़ाकर 2009 करने की मांग कर रहे हैैं।
सर्वे में निकल गए 12 साल
झरिया कोलफील्ड के अग्नि प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले लोगों के सर्वे में 12 साल गुजर चुके हैैं। अवैध कब्जा कर रहने वालों का सर्वे हो चुका है। रैयतों का सर्वे बाकी है। सर्वे का कई रैयत बहिष्कार किए हुए हैैं। अभी झरिया पुनर्वास एïवं विकास प्राधिकार के पास 32,064 रैयतों की सूची है। अब फिर उनका सर्वेक्षण होगा। उनकी जमीन और मकान का फिर मूल्यांकन किया जाना है। मास्टर प्लान में पुनर्वास के लिए गली एवं मुहल्लों के आधार पर क्षेत्र का निर्धारण किया गया है। झरिया कोलफील्ड में 584 क्षेत्रों से लोगों को हटाना है। इसमें 333 क्षेत्र ऐसे हैैं जहां सिर्फ रैयतों का बसेरा है।
कुछ प्रभावित परिवारों का पुनर्वास हुआ है। कुछ लोग पुनर्वास स्थल पर उपलब्ध नागरिक सुविधाओं पर नाखुशी जता रहे हैैं। उन्हेंं समझाया जा रहा है। ऐसे लोगों की मांगों से संबंधित लोगों को अवगत कराया गया है। जल्द ही और प्रभावित परिवारों का बेहतर पुनर्वास किया जाएगा। रैयत पुरानी अधिग्रहण नीति से जमीन देने से इन्कार कर चुके हैैं। नई मुआवजा नीति तय होगी तो रैयतों की जमीन का अधिग्रहण कर उनका बेहतरीन पुनर्वास किया जाएगा।
- संदीप कुमार सिंह, उपायुक्त, सह प्रबंध निदेशक सह उपाध्यक्ष, झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार