झरिया को साहित्य में ग्यास अहमद ने दिलाई अंतरराष्ट्रीय पहचान
गोविन्द नाथ शर्मा झरिया काले हीरे की नगरी झरिया की साहित्य क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहच
गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया : काले हीरे की नगरी झरिया की साहित्य क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पहचान भी है। यहां जन्मे ग्यास अहमद गद्दी ने अपनी कहानियों से उर्दू साहित्य में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की थी। 17 फरवरी 1928 को झरिया में जन्मे ग्यास का नाम उर्दू साहित्य जगत में शिद्दत से लिया जाता है। इनका कहानी संग्रह परिदा पकड़ने वाली गाड़ी, तज दो तज दो, सारा दिन धूप, बाबा लोग, ज्वार भाटा आज भी प्रसिद्ध है। ग्यास ने पड़ाव नामक एक लघु उपन्यास भी लिखा जो काफी चर्चित हुआ। वर्ष 1948 में इनकी कहानी पहली बार पाकिस्तान की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका साकी में ज्वार भाटा शीर्षक से छपी थी। इसके बाद कई अंतरराष्ट्रीय उर्दू पत्रिकाओं में इनकी कहानियां छपी। 1986 में ग्यास के निधन के बाद देश के प्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर ने दूरदर्शन पर अपने साहित्यिक सीरियल दर्पण में इनकी रचनाओं को सम्मान दिया।
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मदरसा, स्कूल में नहीं पढ़े थे ग्यास, बने प्रसिद्ध अफसाना निगार
झरिया में मध्यम परिवार में जन्मे ग्यास अहमद गद्दी का जीवन संघर्षमय रहा। मदरसा व स्कूल की शिक्षा नहीं ले पाए। धर्मशाला रोड झरिया के घर में आने वाले मौलवी से ही उर्दू व फारसी की प्रारंभिक शिक्षा ली। गाय, भैंस पालकर दूध बेचना इनका मुख्य पेशा था। पत्नी के निधन के बाद दो पुत्र तसव्वुर गद्दी, इकबाल गद्दी व परिवार पालने की जिम्मेवारी इनके ऊपर आ गई।
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झरिया की उर्दू लाइब्रेरी में नियमित आने के बाद जागा साहित्य प्रेम
ग्यास अहमद शाम को दूध बचने के बाद रोज मेन रोड झरिया की उर्दू लाइब्रेरी में जरूर आते थे। लाइब्रेरी इनका प्रमुख ठिकाना था। शाम से रात तक यहां के साहित्य किताबों को गंभीरता से पढ़ते थे। कहानी लिखने का साहित्य प्रेम यहीं से जागा। देश-विदेश के पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां लिखने लगे। इनकी पहचान उर्दू के प्रमुख और अंतरराष्ट्रीय साहित्यकारों में होने लगी। इस दौरान ग्यास ने दर्जनों कहानियां लिखी।
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ग्यास की कहानी बेजोड़ थी : बनखंडी
झरिया के वरीय पत्रकार-साहित्यकार बनखंडी मिश्र कहते हैं कि ग्यास मेरे मित्र थे। उनसे मात्र चार वर्ष छोटे भाई साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित इलियास अहमद गद्दी मेरे सहपाठी थे। गयास उर्दू साहित्य में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कहानीकार थे। उनकी लिखी हर कहानी बेजोड़ थीं। देश के अलावा विदेशों में भी इनकी कहानियां खूब पढ़ी गई। उनकी कमी आज भी खलती है।
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साहित्यकार राजेंद्र सिंह बेदी से प्रभावित थे ग्यास
कहानीकार ग्यास अहमद गद्दी, इलियास अहमद गद्दी सहित गद्दी बिरादरी पर पीएचडी किये डॉ. रौनक शहरी कहते हैं कि ग्यास उर्दू के महान साहित्यकार राजेंद्र सिंह बेदी से काफी प्रभावित थे। उर्दू साहित्य में मंटो, राजेंद्र सिंह बेदी, अस्मत चुगतई के बाद गयास का नाम शिद्दत से लिया जाता है। उर्दू शायर इम्तियाज दानिश कहते हैं कि पत्थरों के बीच शीशे का गुलदान थे गयास साहब। इनकी कृतियों ने उर्दू अदब के खजाने का इजाफा किया है। गयास जिसके हकदार थे। वह उन्हें नहीं मिला।
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बिहार और झारखंड के विवि में पढ़ाई जाती है ग्यास की कहानी
झरिया के उर्दू के साहित्यकार डॉ. हसन निजामी कहते हैं कि झरिया के ग्यास अहमद की ओर से आपातकाल के दौरान लिखी गई कहानी परिंदा पकड़ने वाली गाड़ी काफी चर्चित है। आपातकाल के दौरान सरकार की बर्बरता का वर्णन किया गया है। इनकी यह कहानी आज भी विनोबा भावे विश्वविद्यालय झारखंड व मगध विश्वविद्यालय बिहार के पीजी में पढ़ाई जाती है। इंटरमीडिएट में भी ग्यास की कहानी पढ़ाई जा रही है।
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ग्यास अहमद पर रांची के प्रो जमशेद कमर ने किया शोध
रांची विश्वविद्यालय के प्रो जमशेद कमर ने ग्यास अहमद पर शोध किया है। अन्य कई साहित्यकारों ने भी ग्यास पर शोध किया है। झरिया के ही डॉक्टर रौनक शहरी ने गद्दी बिरादरी पर शोध के दौरान प्रसिद्ध कहानीकार ग्यास अहमद और इनके छोटे भाई साहित्य अकादमी से पुरस्कृत इलियास अहमद गद्दी पर भी शोध किया है। ग्यास के दो पुत्रों में एक पुत्र तसव्वर गद्दी का निधन हो चुका है। पुत्र इकबाल गद्दी पिता के साहित्य के धरोहर को आगे बढ़ाने में लगे हैं। 25 जनवरी 1986 को प्रसिद्ध अफसाना निगार ग्यास का निधन बीमारी से झरिया में हो गया।