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भारतीय तालीम से चमकेगी अफगान की किस्मत

फोटो एएमआइ 76 - 44 अफगानी छात्रों के दल ने पूरी की बीई माइनिंग की पढ़ाई - आइएसएम क

By JagranEdited By: Published: Mon, 07 May 2018 06:50 AM (IST)Updated: Mon, 07 May 2018 06:50 AM (IST)
भारतीय तालीम से चमकेगी अफगान की किस्मत
भारतीय तालीम से चमकेगी अफगान की किस्मत

फोटो एएमआइ 76

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- 44 अफगानी छात्रों के दल ने पूरी की बीई माइनिंग की पढ़ाई

- आइएसएम को मिली अफगान स्कूल ऑफ माइंस स्थापना की जिम्मेदारी

शशि भूषण, धनबाद : अफगानिस्तान जहां गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती है। तालिबान, अलकायदा जैसे संगठनों ने खूनी खेल खेलकर इंसानियत को शर्मसार किया। उसी धरती पर अब भारतीय तालीम विकास की गाथा लिखने को तैयार है। अफगान के पाताल से लिखी जानेवाली यह इबारत इस देश को उन्नति के शिखर पर ले जाएगी।

जी हा, धनबाद के आइआइटी आइएसएम (भारतीय खनि विद्यापीठ) से अफगानिस्तान के 44 छात्रों का दल खनन प्रौद्योगिकी का ज्ञान अर्जित कर अपने वतन रवाना हो गए हैं। ये छात्र अफगानिस्तान में खुलनेवाले अफगान स्कूल ऑफ माइंस की नींव भी रखेंगे। इन छात्रों की यही तमन्ना है कि माइनिंग के क्षेत्र में अफगान को शीर्ष देशों में शुमार कर दें। छात्रों के इस दल ने आइआइटी आइएसएम में बीई (बैचलर ऑफ इंजीनिय¨रग) की पढ़ाई की है।

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आइएसएम को मिला है अफगान स्कूल ऑफ माइंस का प्रोजेक्ट :

अफगानिस्तान में खनिज संपदा का प्रचुर भंडार है। पर, इनका सटीक दोहन तभी हो सकता है जब अफगानिस्तान में अच्छे खनन विशेषज्ञ हों। ऐसे में इंडियन स्कूल ऑफ माइंस की तर्ज पर अफगान स्कूल ऑफ माइंस की स्थापना की तैयारी अफगान सरकार ने की। इसकी स्थापना की जिम्मेवारी अफगानिस्तान सरकार ने आइएसएम को दी है। क्योंकि आइएसएम की ख्याति पूरी दुनिया में है। अफगानिस्तान सरकार ने भारत सरकार से बातचीत की। इसके बाद अफगान स्कूल ऑफ माइंस की स्थापना के लिए आइएसएम के तीन सदस्यीय दल को भारत सरकार ने अफगानिस्तान भेजा। 13-15 दिसंबर 2015 को अफगानिस्तान जाकर दल ने वहां कई क्षेत्रों का दौरा किया। इस दल में कुलसचिव कर्नल एमके सिंह, प्रो. एके मिश्रा व प्रो. धीरज कुमार शामिल थे। अफगानिस्तान दौरा करने के बाद आइएसएम की टीम ने अफगान स्कूल ऑफ माइंस का डीपीआर तैयार किया। इसे अफगानिस्तान सरकार को भेज दिया गया है।

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अफगानी छात्रों के लिए

बना विशेष पाठ्यक्रम :

आइएसएम के माइनिंग विभाग के प्रो. धीरज ने बताया कि अफगानी छात्रों के लिए आइएसएम ने पांच वर्षीय विशेष कोर्स बनाया। इसको 'बैचलर ऑफ इंजीनिय¨रग' नाम दिया। जबकि अन्य छात्रों को चार वर्षीय बीटेक की डिग्री दी जाती है। इस पाठ्यक्रम में कुछ अन्य जानकारियों का भी समावेश किया गया है। ये छात्र यहां से जाकर आइएसएम विशेषज्ञों की देखरेख में अफगान स्कूल ऑफ माइंस को साकार रूप देने में जुट जाएंगे। यही छात्र उस संस्थान में बतौर शिक्षक भी अपनी सेवाएं देंगे।

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खूब भाया 'पोस्तो' से

¨हदी तक का सफर

अफगान के छात्र नामांकन के लिए जब आइएसएम आए थे तब उन्हें सिर्फ पोस्तो भाषा आती थी। पांच वर्षो के दौरान अफगानी छात्रों ने न केवल अंग्रेजी बल्कि उससे कहीं अधिक ¨हदी में पकड़ बना ली। अफगानी छात्र अब्दुल जलील खलीली, अब्दुलाली नासिरी, अब्दुल हलीम पोपाल, मीर सैयद अली, नजीबुल्ला इकबाल, फरहाद यूसुफ ने बताया कि जितने मित्र यहां बन गए उतने तो अफगानिस्तान में भी नहीं हैं। यहां की तहजीब, लिबास, पर्व, खानपान हमें खूब भाया है। इसे हमने अपने जीवन में भी ढाला है।

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कोट

अफगान स्कूल ऑफ माइंस का डीपीआर वहां की सरकार को भेज दिया है। अफगानी छात्रों की पढ़ाई पूरी हो गई है। अब ये अपने वतन जाएंगे। पांच वर्षो में आइएसएम ने इनको न केवल किताबी ज्ञान बल्कि प्रायोगिक ज्ञान में भी पारंगत किया है। यहां की खदानों को अफगानी छात्रों ने काफी करीब से देखा है। छात्र अपने देश में माइनिंग स्कूल की नींव रखेंगे।

प्रो. धीरज कुमार, माइनिंग विभाग, आएसएम धनबाद


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