इनके Life की कहानी बदल देंगे आपके जीवन जीने का नजरिया...बोल उठेंगे जब ये कर सकते तो मैं क्यों नहीं
कोरोना महामारी में कितने लोगों का राेजगार चला गया तो कई बेघर हो गए। ऐसे में झरिया के इन लोगों ने अपने मजबूत इरादों से समाजा में एक मिशाल कायम की है। पढ़िए इनकी प्रेरणादायक कहानी ...कैसे नौकरी चले जाने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत।
गोविन्द नाथ शर्मा, झरिया : वैश्विक महामारी कोरोना की पहली और दूसरी लहर में लाखों लोग असमय मौत के शिकार हो गए। लाखों लोगों को कंपनी के मालिक ने नौकरी से निकाल दिया। ऐसे मध्यम वर्ग के लोगों के समक्ष परिवार के पालन- पोषण की विकट समस्या खड़ी हो गई। लेकिन ऐसे अनेक लोगों ने अपनी हिम्मत नहीं हारी। अपने जज्बे से कोरोना आपदा को अवसर में बदल दिया। नौकरी से निकाले जाने के बाद अब तरह-तरह की दुकानें साइकिल में चला रहे हैं। परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। झरिया और इसके आसपास क्षेत्र के ऐसे ही लोगों की प्रेरणादायक कहानी से आपको अवगत कराते हैं।
केस नंबर : 1
झरिया के घनुडीह में रहने वाले 40 वर्षीय धर्मेंद्र महतो पहले यहां की एक आउटसोर्सिंग परियोजना में काम करते थे। कोरोना काल में प्रबंधन ने इन्हें नौकरी से निकाल दिया। धर्मेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी। घर में रखी साइकिल की थोड़ी मरम्मत कर इसमें इडली बेचना शुरू कर दिया। दो वर्षों से धर्मेंद्र इडली बेचकर अपने परिवार के छह सदस्यों का भरण-पोषण कर रहे हैं। धर्मेंद्र ने कहा कि प्रतिदिन तीन से चार सौ रुपये कमा लेते हैं। हम खुश हैं।
केस नंबर : 2
पोद्दारपाड़ा झरिया में रहने वाले 50 वर्षीय निरंजन कुमार पहले बाहर में रहकर काम करते थे। कोरोना महामारी फैलने के कंपनी ने इन्हें नौकरी से निकाल दिया। इसके बाद निरंजन घर की साइकिल को दुकान बनाने की ठान ली। अब साइकिल में तरह-तरह के खिलौने और सामान बेचते हैं। निरंजन का कहना है कि हर दिन दो से तीन सौ रुपये यहां रह कर कमा ले रहे हैं। परिवार ठीक-ठाक चल रहा है। अब बाहर जाने की सोचना भी छोड़ दिए हैं।
केस नंबर : 3
कोयरीबांध झरिया निवासी 55 वर्षीय रामचंद्र साव भी कोरोना काल में बेरोजगार हो गए थे। बावजूद इसके उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी। घर की साइकिल को ही दुकान बना डाला। रामचंद्र हर दिन साइकिल में सिगरेट, पान मसाला, जर्दा आदि सामान बेचते हैं। रामचंद्र ने कहा कि मात्र छह घंटे साइकिल में दुकान चलाकर रोज तीन से चार सौ कमा लेते हैं। अब बाहर जाने की नहीं सोचते हैं। झरिया में ही रहकर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं।
केस नंबर : 4
झरिया चार नंबर में रहने वाले 50 वर्षीय बबन दत्ता को भी कोरोना महामारी ने बेरोजगार कर दिया था। बबन बाहर जाकर काम करते थे। साल में एक या दो बार ही घर आ पाते थे। कंपनी की ओर से काम से निकाले जाने के बाद बबन झरिया में ही रहकर साइकिल में कई तरह के ब्रेड बेचने का काम करने लगे। बबन का कहना है कि सुबह आठ बजे घर से साइकिल में ब्रेड लेकर निकलते हैं। तीन बजे तक घर आ जाते हैं। इन्हें बेच कर हर दिन तीन से चार सौ कमा लेते हैं। परिवार खुशहाल जीवन जी रहा है।
केस नंबर : 5
बलियापुर निवासी 30 वर्षीय गोपाल कुमार यूपी की एक फैक्ट्री में मजदूरी का काम करते थे। कोरोना की पहली लहर में कंपनी के मालिक ने काम से निकाल दिया। गोपाल के समक्ष परिवार को चलाने की कठिन जिम्मेवारी आन पड़ी। बावजूद इसके गोपाल ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने साइकिल में ही रेडीमेड कपड़ा बेचना शुरू कर दिया। इससे गोपाल को हर दिन तीन से चार सौ की आमदनी होने लगी। गोपाल का कहना है कि अब बाहर जाकर काम कभी नहीं करेंगे। यही रह कर साइकिल में ही दुकान चलाएंगे।
कम पूंजी में ही साइकिल में चलने लगी दुकानें
कोरोना काल में नौकरी से निकाले जाने के बाद झरिया के ऐसे सैकड़ों लोग हैं, जिन्होंने हिम्मत से काम लेते हुए साइकिल में ही दुकान चलाने का काम शुरू किया है। इन लोगों का कहना है कि बहुत ही कम लागत में साइकिल में अपनी दुकान चलाने लगे। मात्र छह से आठ घंटे में 10 से 20 किलोमीटर की दूरी तय कर अपने सामानों को बेचते हैं। शाम को घर चले आते हैं। इससे परिवार के लोग भी काफी खुश हैं।
साइकिल में दुकान चलाने वाले लोगों के जज्बे को सलाम : अमित
झरिया चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अमित कुमार साहू दीपू ने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना ने लोगों को अप्रत्याशित दर्द दिया है। महामारी ने एक और जहां लाखों लोगों की जान ले ली। वहीं लाखों लोग महामारी के कारण बेरोजगार हो गए। ऐसे में साइकिल में दुकान चलाने वाले झरिया के सैकड़ों लोगों के जज्बे को सलाम करते हैं। कोयलांचल में लगभग दो हजार लोग साइकिल में दुकान चला रहे हैं। ऐसे लोग अपने परिवार का भरण-पोषण कर खुश हैं। ऐसे लोगों को सरकार को भी मदद करनी चाहिए।