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आत्मनिर्भर भारत का सारथी चितरजंन रेल कारखाना, अब तक पटरियों पर दाैड़ीं 11 हजार इंजन

चिरेका के उत्तरी क्षेत्र से होकर अजय नदी बहती है। कारखाना कार्यालय तथा क्वार्टर चारों ओर से हरे-भरे पेड़ों व वृक्षों से घिरे हुए हैं एवं इनके बीच पर्याप्त दूरी है। यहां अनेक जलाशय हैं जो हरे-भरे पर्यावरण को दर्शाता है।

By MritunjayEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 11:10 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 11:10 AM (IST)
आत्मनिर्भर भारत का सारथी चितरजंन रेल कारखाना, अब तक पटरियों पर दाैड़ीं 11 हजार इंजन
चितरजंन रेल कारखाना में बना पहला इंजन देशबंधु ( फाइल फोटो)।

रूपक शर्मा, मिहिजाम (जामताड़ा)। देश का गौरव चित्तरंजन लोकोमोटिव वक्र्स (चित्तरंजन रेलइंजन कारखाना) भारतीय रेल को आत्मनिर्भर बनाने का प्रमुख उत्पादन इकाई है। चित्तरंजन रेलइंजन कारखाना का नामकरण महान स्वतंत्रता सेनानी नेता और देशबंधु चित्तरंजन दास के नाम पर किया गया है। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने 14 अक्टूबर 1961 को प्रथम 1500 वोल्ट डीसी रेलइंजन लोकमान्य का शुभारंभ किया। चिरेका ने 70 गौरवशाली वर्षों की अपनी यात्रा में लगभग 11000 इंजनों का उत्पादन अबतक कर लिया है। चिरेका में उत्पादन की गतिविधि 26 जनवरी 1950 को आरंभ की गई थी जिस दिन भारत गणतंत्र बना। चित्तरंजन रेलइंजन कारखाना का प्रारंभिक उत्पाद वाष्प रेलइंजन था।

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वर्तमान में नवीनतम इंसुलेटेड गेट बाइपोलर ट्रांजिस्टर आइजीबीटी प्रौद्योगिकी के सभी आधुनिक विशेषताओं सहित अत्याधुनिक थ्री-फेज रेलइंजनों का सफलतापूर्वक उत्पादन कर रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा विद्युत रेलइंजन निर्माता है। वर्तमान में चिरेका भारतीय रेल को उच्च गति व भारी वजन खींचने वाले विद्युत कर्षण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए एक वाहन के रूप में कार्य कर रहा है। इतने वर्षों के समर्पित प्रयास से माल व यात्री परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराने में इस रेल इंजन कारखाने का तेजी से संवृद्धि और विकास हुआ है।

उत्पादन के साथ पर्यावरण पर भी नजर

चिरेका के उत्तरी क्षेत्र से होकर अजय नदी बहती है। कारखाना कार्यालय तथा क्वार्टर चारों ओर से हरे-भरे पेड़ों व वृक्षों से घिरे हुए हैं एवं इनके बीच पर्याप्त दूरी है। यहां अनेक जलाशय हैं जो हरे-भरे पर्यावरण को दर्शाता है। यह जलाशय प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है। सालभर यहां विभिन्न वनस्पति व जीव जन्तु देखे जा सकते हैं। पर्यावरण के प्रति सजग होने के काफी पहले ही चिरेका प्रशासन ने शुष्क क्षेत्र को हरा-भरा बनाने के लिए पौधारोपण प्रारंभ किया। वर्ष 1996 में पश्चिम बंगाल सरकार के सोशल फारेस्ट्री डिविजन की मदद से 90 हजार और वर्ष 2005 में 50 हजार छोटे पौधे लगाए गए। प्रशासन लगातार कर्मचारियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक और परिलक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करते रहता है। हाल ही में, पर्यावरण को संरक्षित करने की दृष्टि से काफी काम किया गया है। विश्व पर्यावरण फाउंडेशन ने मान्यता भी प्रदान की एवं चिरेका को नौ जून 2006 को पर्यावरण प्रबंधन के लिए स्वर्ण मयूर पुरस्कार से नवाजा गया। चिरेका ने पूरी तरह से औद्योगिक सुरक्षा अधिनियम 1948 के प्रावधानों का अनुपालन किया है। चिरेका अपनी संरक्षा नीति के संबंध में चित्तरंजन रेलइंजन कारखाना में कार्यरत सभी कर्मचारियों को सौ प्रतिशत संरक्षा सुनिश्चित करता है। चिरेका को संरक्षा नवीनीकरण पुरस्कार तथा गुणवत्ता फोरम के इंजीनियङ्क्षरग संस्थान भारत ने सितंबर 2006 को प्रदान किया। वहीं चिरेका को सितंबर 2009 को सेफ्टी इनोवेशन से नवाजा गया।

चिरेका चांदमारी से पहुंचा मिहिजाम

चिरेका पश्चिम बंगाल राज्य में कांचरापाड़ा के निकट चांदमारी नामक स्थान पर स्थापित होना था। परंतु प्रारंभिक परियोजना देश के विभाजन के कारण विकसित नहीं हो सकी जिसके कारण स्थान परिवर्तन करना आवश्यक हो गया। रेलइंजन निर्माण कारखाना स्थापित करने का मुद्दा केंद्रीय विधान-मंडल के सक्रिय विचाराधीन निरंतर रहा और दिसंबर, 1947 को रेलवे बोर्ड ने मिहिजाम के निकट चित्तरंजन में फैक्ट्री स्थापित करने का निर्णय लिया। रेलइंजन कारखाना व नगरी 18.34 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। मेसर्स हमफ्री तथा श्रीनिवासन के नेतृत्व में समिति गठित कर रेलइंजन निर्माण इकाई की स्थापना की संभावनाओं तथा इसकी आर्थिक क्षमता की जांच कर दिसंबर 1947 को रेलवे बोर्ड ने मिहिजाम के निकट चित्तरंजन में रेल कारखाना की स्थापना को लेकर जमीन का चयन किया। नौ जनवरी 1948 को प्रस्तावित क्षेत्र के सर्वेक्षण कार्य प्रारंभ कर चित्तरंजन रेलइंजन कारखाना व नगर का विस्तार करने का कार्य अप्रैल 1948 में शुरू किया गया था। वर्ष 1961 में विद्युत रेलइंजनो का उत्पादन प्रारंभ किया गया। इस प्रक्रिया में चिरेका ने पंद्रह प्रकार के विद्युत रेलइंजनों का उत्पादन किया एवं इस श्रृंखला में डब्ल्यूएजी-9 मालवाही रेलइंजन तथा डब्ल्यूएपी-7 यात्रीवाही रेलइंजन नवीनतम है। चिरेका द्वारा 2840 अश्वशक्ति का एक ब्राड गेज 25 केवीएसी अधिकतम गति 80 किमी घंटा का मालवाही प्रथम विद्युत रेलइंजन विधान डब्ल्यूएजी-1 निकाला गया। बाद में चिरेका ने रेलइंजन की अश्वशक्ति 2840 से बढ़ाकर 6000 और अधिकतम गति को 80 किमी प्रति घंटा से बढ़ाकर 160 किमी प्रति घंटा तक किया। पश्चिम रेलवे में बीआरसी से बीसीटी तक मेल एक्सप्रेस रेलगाडिय़ों को खींचने के लिए चिरेका ने 25 केवीएसी1500 वोल्ट डीसी, एसी डीसी रेलइंजन निर्मित किए।

भारत-रूस का मैत्री का गवाह चिरेका

17 दिसंबर 1955 में चित्तरंजन रेल इंजन कारखाना का निरीक्षण करने के लिए यूएसएसआर रूस से प्रतिनिधि के तौर पर चेयरमैन काउंसिल आफ मिनिस्टर हिज एक्सीलेंसी मिस्टर एन ए बुलगानीन व मेंबर आफ द प्रेङ्क्षसडियम आफ द सुप्रीम सोवियत हिज एक्सीलेंसी मिस्टर खुशचैव पहुंचे थे। रूस के प्रतिनिधि का दौरा करने के उपरांत तत्कालीन चिरेका महाप्रबंधक करनैल ङ्क्षसह ने भारत और रूस के इस मैत्री संबंध को चिरेका के इतिहास में युगों तक कायम रखने के लिए रेल नगरी के मुख्य सड़क पर ताज महल के तर्ज पर भव्य व आकर्षक लोहे का गेट का निर्माण कराया था।


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