घटिया किताबों में उलझे स्कूली बच्चे; परोसी जा रहीं गलत जानकारियां, 7 अजूबों की सूची में ना ताजमहल ना ही स्वर्ण मंदिर Dhanbad News
धनबाद पब्लिक स्कूल की कक्षा चार में गोयल ब्रदर्स की एक किताब पढ़ाई जा रही है। इस किताब का नाम है- नूतन सरल हिंदी माला। इसमें भारत के सात अजूबों की जानकारी गढ़ी गई है।
धनबाद, [अजीत कुमार]। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में बच्चों की किताबों में अधकचरी व गलत जानकारियां परोसी जा रही हैं। दुर्भाग्य से निजी स्कूलों की ओर से निर्धारित की गई किताबें पढ़ना ही स्कूली बच्चों की मजबूरी है, जबकि किताबों में जांची-परखी व स्तरीय जानकारियां होने की बजाय गलत तथ्य पढ़ाए जा रहे हैं। ऐसी जानकारियों से बच्चों के व्यक्तित्व विकास की बात तो छोड़ दें, उलटे वह गलत तथ्य पढ़कर गलतफहमी के शिकार हो रहे हैं। यहां एक स्कूल की चर्चा की जा रही है, लेकिन राज्य के ज्यादातर स्कूलों में हालत ऐसी ही दिखती है।
धनबाद पब्लिक स्कूल की कक्षा चार में गोयल ब्रदर्स की एक किताब पढ़ाई जा रही है। इस किताब का नाम है- नूतन सरल हिंदी माला। इस किताब में एक पाठ है भारत के सात अजूबे। इन अजूबों की सूची में आगरा के ताजमहल का नाम भी शामिल नहीं है। वैसे दुनिया के सात अजूबों के बारे में हम सभी पढ़ते आए हैं, लेकिन भारत के सात अजूबों की जानकारी इस किताब में गढ़ी गई है।
दरअसल, इसमें भारत के सात आश्चर्य की खोज के लिए एक टीवी चैनल ने भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के साथ मिलकर एक देशव्यापी मुहिम चलाई थी। इसी के तहत वोट के आधार पर भारत के सात अजूबों में लाल किला, खजुराहो मंदिर, नालंदा, मीनाक्षी मंदिर, जैसलमेर का किला, कोणार्क का सूर्य मंदिर और धोलावीरा के जलाशय को शामिल किया गया है। किताब में इसी के आधार पर बच्चों को यह सब पढ़ाया जा रहा है। अगर इसे जानकारी योग्य प्रामाणिक मान भी लें तो भारत के सात अजूबों में आगरा का ताजमहल और स्वर्ण मंदिर का नाम शामिल न होना खटकता है।
इतना ही नहीं किताब में कई अशुद्धियां भी हैैं। खजुराहो की गुफाओं को खजुराओ के मंदिर लिखा गया है। इसी तरह धोलावीरा को धौलावीरा लिखा गया है। इसके अलावा 340 कमरों वाले राष्ट्रपति भवन को करीब 350 कमरे वाला बता दिया गया है।
गलत जानकारियां बच्चों के भविष्य निर्माण में घातक : शिक्षाविदों की मानें तो इस पाठ की जगह भारत या विश्व के जो सात अजूबे हैं उसके बारे में पढ़ाया जाना चाहिए था, ताकि बच्चों को सही ज्ञान मिले। किसी कार्यक्रम के आधार पर उसे पाठयक्रम में शामिल करना उचित नहीं है। इस पाठ के अनुसार अगर बच्चे भारत के सात अजूबों के बारे में याद कर लें तो भविष्य में प्रतियोगी परीक्षा में वे गलतियां कर बैठेंगे। इसके अलावा इसी किताब में कुछ शब्दों में एकरूपता नहीं है। जैसे, कहीं नसरुद्दीन तो कहीं नसीरुद्दीन लिखा गया है। दूसरी ओर कई कविताओं व कहानियों से लेखक के नाम को भी गायब कर दिया गया है।
स्कूल में किताबों के चयन के लिए होती हैं समितियां : स्कूल कौन सी किताबें चलाएगा इसके लिए शिक्षकों की समिति होती है। यह समिति किताबों का अध्ययन करती है। इसके बाद निर्णय लिया जा जाता है कि वह किताब बच्चों को पढ़ाने लायक है या नहीं। कई बार इस स्तर पर भी गड़बडिय़ां हो जाती हैं।
स्कूल में जो भी किताबें पढ़ाई जाती हैैं उसको पब्लिसर्स पहले स्कूल में दे जाते हैैं। उसके बाद स्कूल उस किताब की समीक्षा कर तय करता है कि यह ठीक है या नहीं। किसी भी स्तर से गलती हो सकती है। इन सभी बिंदुओं को सुधार कर आगे की कक्षा में इसे ठीक करने की जरूरत है। - राजेश कुमार, प्राचार्य, उच्च विद्यालय धनबाद।