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Dhanbad Flash Back: ब्रिगेडियर बाग व ईमामुल के बीच शुरू हुई थी मेयर की जंग...जान‍िए फ‍िर ऐसा क्‍या हुआ धनबाद नगर ही न बन सका

सितंबर अक्टूबर में धनबाद नगर निगम का चुनाव प्रस्तावित है। मेयर डिप्टी मेयर और पार्षद के लिए उम्मीदवार खड़े होंगे और मतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी को वोट देकर ‘शहर की सरकार’ बनाएंगे। नगर निगम से जुड़ा ही कोयलांचल का एक पुराना किस्सा है।

By Atul SinghEdited By: Published: Thu, 24 Jun 2021 03:14 PM (IST)Updated: Sat, 26 Jun 2021 05:10 PM (IST)
Dhanbad Flash Back: ब्रिगेडियर बाग व ईमामुल के बीच शुरू हुई थी मेयर की जंग...जान‍िए फ‍िर ऐसा क्‍या हुआ धनबाद नगर ही न बन सका
मजदूर पंचायत ट्रेड यूनियन के सदस्य ईमामुल हई खां। (फाइल फोटो)

धनबाद, आशीष सिंह। सितंबर अक्टूबर में धनबाद नगर निगम का चुनाव प्रस्तावित है। मेयर, डिप्टी मेयर और पार्षद के लिए उम्मीदवार खड़े होंगे और मतदाता अपने पसंदीदा प्रत्याशी को वोट देकर ‘शहर की सरकार’ बनाएंगे। नगर निगम से जुड़ा ही कोयलांचल का एक पुराना किस्सा है। बात उन दिनों की है, जब निजी कोयला उद्योग के श्रमिकों और नागरिकों की जनसमस्याओं का हल निकालने के लिए धनबाद में ‘वेलफेयर कमिश्नर’ का कार्यालय जगजीवन नगर धनबाद में खुला था।

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1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी। पंडित नेहरू के प्रथम मंत्रिमंडल में बाबू जगजीवन राम, प्रथम श्रम मंत्री बनाए गए थे और उन्हींं के नाम पर धनबाद में, जगजीवन नगर जैसा आधुनिक उपनगर बनाया गया था। भूली नामक स्थान में श्रमिकों के लिए एक नगर बसाया गया था। एक लाख श्रमिकों को सपरिवार रहने की सुविधा प्रदान की गई थी। उसके पहले कोयला क्षेत्र के श्रमिक परिवारों के लिए आवास के रूप में झोपड़ी और धौड़ा निजी खदान मालिकों द्वारा बनाए जाते थे। भूली नगर की आवासीय सुविधा के लिए उन्हीं खान मालिकों को प्रति टन उत्पादन के आधार पर एक सेस (टैक्स) देना होता था। खान-श्रमिकों की विभिन्न वैधानिक सुविधाएं मसलन आवास, स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा आदि के लिए पाठशाला आदि की निगरानी और संचालन का कार्य जगजीवन नगर स्थित वेलफेयर कमिश्नर के मुख्यालय के अधीन था। कमिश्नर की नियुक्ति दिल्ली से होती थी। इस पद पर नियुक्त व्यक्ति को कई अधिकार होते थे। इसलिए जिले में उनका काफी महत्व होता था। वरिष्ठ पत्रकार बनखंडी मिश्र बताते हैं कि पहले वेलफेयर कमिश्नर जाट रेजीमेंट के एक ब्रिगेडियर के. बाग सिंह नियुक्त किए गए थे।

अपनी ऊंची कद, डील डौल, चुस्त-दुरुस्त शरीर और अनुशासनप्रियता में पूर्ण, ब्रिगेडियर साहब को उनके रौब-दाब के कारण लोग ‘बाघ सिंह’ का संबोधन करते थे। उनकी एक विशेषता यह भी थी कि किसी भी व्यक्ति से, चाहे वह खदान मालिक हों, श्रमिक नेता, पत्रकार-सामाजिक कार्यकर्ता हों, उनसे, ब्रिगेडियर साहब पूर्ण मिलिट्री वेश-भूषा में मिलते थे। उनको जिले के किसी भी व्यक्ति ने, उनके बंगले तक में, सामान्य नागरिक वेश-भूषा में कभी नहीं देखा था।

उन्हीं दिनों धनबाद नगरपालिका, झरिया माइन्स बोर्ड, वाटर बोर्ड जैसे संगठनों के अधिकारों को केन्द्रीभूत करने और धनबाद नगर निगम बनाने के मुद्दे पर सरकार ने विचार किया और इसके लिए कागजी तैयारियां प्रारंभ हो गई। उन दिनों मेयर के पद के लिए चुनाव नहीं होता था, बल्कि राजनीतिक गलियारे के लोगों को ही सत्ताधारी पार्टी मनोनीत कर, उपकृत कर देती थी। इसलिए निगम के मेयर पद के लिए संभावित उम्मीदवारों की तैयारियां शुरू हो गई। समाज के कुछ प्रबुद्ध और महत्वाकांक्षी लोग भी इस अभियान में जुट गए। लेकिन, सबों के लिए दिल्ली दरबार तक अपनी पहुंच बनाना आसान तो नहीं था। पूरे क्षेत्र से दो लोग काफी गंभीर कैंडीडेट थे, जो मेयर पद के लिए खुद को उपयुक्त समझते थे और दोनों की पहुंच दिल्ली दरबार तक थी- ईमामुुल हई खां और ब्रिगेडियर बाग सिंह।

ईमामुल हई खां उनदिनों कोयला मजदूर पंचायत नामक एक ट्रेड यूनियन के सदस्य थे। लोकप्रिय श्रमिक नेता महेश देसाई भी बाद में इसमें जुड़े थे। ईमामुल बाघमारा के विधायक भी बने थे और बिहार सरकार के मंत्री भी। झरिया वाटर बोर्ड और झरिया माइन्स बोर्ड के आजीवन चेयरमैन रहे। धनबाद के भावी निगम के मेयर पद के लिए ब्रिगेडियर बाग सिंह को पूरा भरोसा था कि दिल्ली से ही उनके मनोनयन का फरमान आ जाएगा। ईमामुल हई खां को अपने गुप्त सूत्र पर पूरा इत्मीनान था। वह सूत्र थे- दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम साहब। इमाम साहब ने खान साहब को किसी समय यह भरोसा दिलाया था कि कभी दिल्ली हुकूमत से कोई काम करवाना हो, तो मुझे याद करना। दोनों ने मेयर बनने के लिए अपनी-अपनी पैरवी की। इन दोनों के पक्ष में दिल्ली में वकालत करने वालों की संख्या धीरे-धीरे काफी बढ़ गई। नगर निगम बनने से पहले ही मेयर बनने के लिए इस मारामारी को देखकर, धनबाद नगर निगम बनाने का मामला ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और ब्रिगेडियर बाग सिंह व ईमामुल हई खां की मेयर बनने की चाहत अधूरी ही रह गई थी।


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