IIT ISM Dhanbad: आइएसएम वन क्षेत्रों में पैदा करेगा रोजगार के अवसर, इन चीजों पर होगा काम
वन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पेड़-पौधे पत्तियां जड़ी बुटी सहित अन्य दुर्लभ चीजें भी आम लोगों तक पहुंचेगी। इस में क्षेत्र में भी रोजगार की संभावनाओं को तराश कर बाहर निकाला जाएगा। इसकी जिम्मेवारी आइआइटी आइएसएम ने अपने कांधे पर उठाई है।
जागरण संवाददाता, धनबाद : वन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पेड़-पौधे, पत्तियां, जड़ी बुटी सहित अन्य दुर्लभ चीजें भी आम लोगों तक पहुंचेगी। इस में क्षेत्र में भी रोजगार की संभावनाओं को तराश कर बाहर निकाला जाएगा। इसकी जिम्मेवारी आइआइटी आइएसएम ने अपने कांधे पर उठाई है। इस मुहिम में आइएसएम का साथ भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद देहरादून देगा। इस मुहिम की नीव दोनों संस्थानों के बीच हुए समझौता हस्ताक्षर के बाद पड़ गई है।
आइसीएआरएफइ देश भर में स्थित अपने संस्थानों और केंद्रों के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर वानिकी अनुसंधान, विस्तार, शिक्षा का मार्गदर्शन, प्रचार और समन्वय कर रहा है। वर्तमान में आइसीएआरएफइ विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन, वन उत्पादकता, जैव विविधता और कौशल विकास के क्षेत्रों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के समकालीन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
आइआइटी आइएसएम के डीन आरएनडी प्रो. शालीवाहन ने बताया कि समझौता ज्ञापन पर खनन क्षेत्र में सुधार और वानिकी अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान एवं संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं के कार्यान्वयन के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के उदेश्यों के साथ हस्ताक्षर किए गए हैं।
इस सहयोग के माध्यम से आइएसएम अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञाओं को साझा करके एक दूसरे के पूरक होंगे। इससे तकनीकी अंतराल की पहचान करने, वन आधारित प्रौद्योगिकियों के विस्तार, हितधारकों को सूचना के प्रसार के लिए संसाधनों के आदान-प्रदान में मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि सबसे महत्वपूर्ण बात है कि यह आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देने और वन आधारित समुदायों की आय बढ़ाने के साथ-साथ संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करने के लिए उद्योगों की सहायता करने में भी मदद करेगा।
दोनों संस्थानों से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों और केंद्रों के बीच अंतर-संस्थागत लिंक सहयोग को और मजबूत करेंगे। समझौता ज्ञापन से दोनों संगठनों के लिए अनुसंधान और विकास में सहयोग मिलने की उम्मीद है। इसका लक्ष्य बेहतर आर्थिक और पारिस्थितिक सुरक्षा को बढ़ावा देना होगा।