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विदेश में भारतीय वैज्ञानिकों को मिलेगा वज्र का साथ

धनबाद अत्याधुनिक अनुसंधान से जुड़े विदेशी वैज्ञानिक आइआइटी आइएसएम के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर शोध करेंगे। वहीं आइएसएम के प्रोफेसर भी विदेश जाकर शोध करेंगे।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Jul 2020 03:43 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2020 06:19 AM (IST)
विदेश में भारतीय वैज्ञानिकों को मिलेगा वज्र का साथ
विदेश में भारतीय वैज्ञानिकों को मिलेगा वज्र का साथ

धनबाद : अत्याधुनिक अनुसंधान से जुड़े विदेशी वैज्ञानिक आइआइटी आइएसएम के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर शोध करेंगे। वहीं आइएसएम के प्रोफेसर भी विदेश जाकर शोध करेंगे। संस्थान के प्रोफेसर शालीवाहन को इसका पहला श्रेय मिला है। प्रो. शालीवाहन फ्रांस जाकर ड्रिलिग तकनीक पर शोध में सहयोग करेंगे। वहीं फ्रांस के रेविल सैवोई मोंट-ब्लैंक इस्ट्रे विश्वविद्यालय के डॉ. युनिव से आंद्रे आइएसएम आएंगे। आइआइटी आइएसएम जियोफिजिक्स विभाग के प्रो. शालीवाहन को वैधानिक निकाय-विज्ञान और इंजीनियरिग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) के तहत डिपार्टमेंट ऑफ साइंस टेक्नोलॉजी (डीएसटी) द्वारा वज्र (विजिटिग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च) संकाय योजना ने चयनित किया है। इसके तहत प्रो. शालीवाहन एक महीने के लिए फ्रांस जाएंगे। जहां मिनरल से संबंधित ड्रिलिग टेक्नॉलाजी पर रिसर्च करेंगे। प्रो. शालीवाहन ने बताया कि यह काफी सम्मान का विषय है। इसके तहत मिनरल से संबंधित ड्रिलिग तकनीक क्या है इसको वहां के विश्वविद्यालय से साझा करेंगे। उन्होंने बताया कि ड्रिलिग तकनीक काफी महंगा और खर्चीला होता है। इससे पर्यावरण को भी काफी ज्यादा खतरा भी है। ऐसे में ड्रिलिग तकनीक से पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो, साथ ही काफी कम खर्च में ड्रिलिग की सफलता का अनुपात अधिक हो इस पर फोकस होगा। वहीं उनके वहां जाने के बाद ड्रिलिग से संबंधित रिसर्च के लिए दो शोधकर्ता तीन से छह महीने के लिए वहां जाएंगे। प्रो. शालीवाहन ने बताया कि वहीं आइआइटी आइएसएम में वज्र संकाय के रूप में फ्रांस के डॉ. युनिव से आंद्रे बतौर फैकल्टी के रूप में यहां आएंगे। वे यहां सरकार के खर्च पर आएंगे। उन्हें यहां कम से कम एक साल फैकल्टी के रूप में रहना होगा। इस बीच वह अपने देश आना-जाना कर सकते हैं, पर तीन महीने के बाद इसकी इजाजत मिलेगी। उनके आने-जाने और रहने का खर्च संस्थान वहन करेगी। क्या है वज्र

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आठ जनवरी, 2017 को प्रधानमंत्री ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वज्र (विजटिग एडवांस ज्वाइंट रिसर्च) योजना की शुरूआत की थी। इस योजना के तहत अप्रवासी भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को भारत में अनुसंधान व विकास कार्यक्रम में योगदान देने का अवसर मिलेगा। वज्र संकाय में निवास अवधि एक वर्ष के लिए न्यूनतम तथा एक महीने व अधिकतम तीन महीने रखी गई है। भारतीय सहयोगी और विदेशी संकाय संयुक्त रूप से एक शोध योजना तैयार करेंगे और संस्थान के प्रमुख विधिवत आवेदन भारतीय सहयोगी द्वारा ऑनलाइन जमा करेंगे। वहीं शोध पूरा होने पर साझा पेटेंट भी कराया जाएगा।

15 हजार डॉलर की सहायता

वज्र संकाय को पहले महीने के निवास के दौरान लगभग 15000 डॉलर दिए जाएंगे और शेष दो महीनों के 10000 डॉलर प्रतिमाह दिए जाएंगे। यात्रा भत्ता व उनके निवास, चिकित्सा आदि की व्यवस्था संस्थान करेगा। वहीं मेजबान संस्थान अतिरिक्त सहायता प्रदान करने के संबंध में विचार कर सकता है।


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