IIT ISM के पूर्व निदेशक संस्थान को कहेंगे अलविदा Dhanbad News
आइआइटी आइएसएम इन दिनों एक प्रोफेसर का वीआरएस लेना चर्चा का विषय बना हुआ है। यह प्रोफेसर खास है। खास इसलिए कि आइएसएम पर आइआइटी का टैग लगने के बाद आइआइटी आइएसएम के पहले निदेशक रह चुके हैं
धनबाद, जेएनएन : आइआइटी आइएसएम इन दिनों एक प्रोफेसर का वीआरएस लेना चर्चा का विषय बना हुआ है। यह प्रोफेसर खास है। खास इसलिए कि आइएसएम पर आइआइटी का टैग लगने के बाद आइआइटी आइएसएम के पहले निदेशक रह चुके हैं।
प्रो. डीसी पाणिग्रही ने रिटायरमेंट के ठीक पांच वर्ष पहले वीआरएस ले लिया है। हालांकि माइनिंग इंजीनियरिंग के प्रो. पाणिग्रही का वीआरएस अभी स्वीकृत होकर नहीं आया है। उनकी नौकरी मार्च 2026 तक थी। अब पूरे संस्थान में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर पांच साल पहले ही प्रो. पाणिग्रही ने वीआरएस क्यों ले लिया। ऐसी क्या वजह हो गई कि उन्हें वीआरएस का निर्णय लेना पड़ा। इस पर कोई भी अधिकारी या प्रोफेसर कुछ भी बाेलने से परहेज कर रहा है। खुद प्रो. पाणिग्रही मूंह खोलने को तैयार नहीं है।
विवाद में है प्रोजेक्ट
प्रो. पाणिग्रही के सेवानिवृति की स्पष्ट वजह अब तक सामने नहीं आई है। लेकिन एक प्रोजेक्ट सामने आई है। सुत्रों की माने तो यह प्रोजेक्ट संस्थान को मिलना था लेकिन यह प्रोजेक्ट एक निजी कंसलटेंसी व रिसर्च कंपनी के हाथ में चला गया। इसके बाद से ही प्रो. पाणिग्रही काफी दबाव में थे। सुत्रों की माने तो इसी दबाव के चलते उन्हें रिटायरमेंट से पहले ही वीआरएस ले लिया।
माइनिंग के क्षेत्र में बड़ा नाम है प्रो. पाणिग्रही
प्रो. डीसी पाणिग्रही देश के बेहतरीन माइनिंग वैज्ञानिक माने जाते हैं। उन्होंने आइएसएम से ही बीटेक, एमटेक और पीएचडी किया है। टाटा स्टील और सिंफर जैसे संस्थानों की नौकरी छोड़कर उन्होंने 1992 में बतौर प्रोफेसर योगदान दिया। 2011 में संस्थान के निदेशक बन गए। निदेशक पद पर रहते हैं आइएसएम आइआइटी बना। प्रो.पाणिग्रही ने अंडरग्राउंड माइंस को दुर्घटना मुक्त बनाने के लिए उन्होंने काफी काम किया। उनका सबसे अधिक योगदान खदानों में वैंटिलेशन प्रणाली को बेहतर बनाने में रहा है। केवल इतना ही नहीं उनके नेतृत्व में संस्थान ने विश्वस्तरीय मुकाम भी पाया।