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16 साल 16 सवालः उच्चाधिकारियों को पता ही नहीं कुपोषित बच्चों की संख्या

मिड डे मील जैसी सरकार की योजना सराहनीय है, पर इससे बच्चों को फायदा नहीं मिल पा रहा है। सरकार ने बच्चों को स्कूल भिजवाने के उद्देश्य से यह व्यवस्था लागू की थी।

By mritunjayEdited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 01:39 PM (IST)Updated: Tue, 19 Feb 2019 01:39 PM (IST)
16 साल 16 सवालः  उच्चाधिकारियों को पता ही नहीं कुपोषित बच्चों की संख्या
16 साल 16 सवालः उच्चाधिकारियों को पता ही नहीं कुपोषित बच्चों की संख्या

धनबाद, जेएनएन। सरकार की योजनाओं के बावजूद धनबाद समेत झारखंड में बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। हालांकि ऐसे बच्चों की खानपान से लेकर पढ़ाई तक का इंतजाम झारखंड सरकार ने उठा रखा है। बावजूद व्यवस्था की कमी व जागरुकता के अभाव में सरकारी व्यवस्था धरातल पर उतर पाई है। सोमवार को दैनिक जागरण में आयोजित '16 साल 16 सवाल' कार्यक्रम में वक्ताओं ने धनबाद में व्यवस्था खामियों पर मंथन करते हुए सरकार से व्यवस्था में सुधार की मांग की।

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वक्ताओं का कहना था कि मिड डे मील जैसी सरकार की योजना सराहनीय है, पर इससे बच्चों को फायदा नहीं मिल पा रहा है। सरकार ने बच्चों स्कूल भिजवाने के उद्देश्य से यह व्यवस्था लागू की थी। लेकिन यहां न तो बच्चे पौष्टिक भोजन का स्वाद चख पाते हैं और न ही उनकी पढ़ाई हो पा रही है। धनबाद में कुछ स्कूल ही ऐसे हैं, जो मिड डे मील योजना को तरीके से लागू कर रहे हैं। कई स्कूलों में कीड़े लगे चावल भी दिए जाते हैं। सच्चाई है कि अब तक सरकार को भी यह जानकारी नहीं है कि धनबाद में कितने बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। न तो इस पर सर्वे होता है और न ही सहिया इस संबंध में कोई रिपोर्ट लेने की कोशिश करती हैं। 

सरकारी स्कूलों के बच्चों से ही स्कूल का काम कराया जाता हैं। जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती हैं। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का वेतन निजी विद्यालयों के शिक्षकों की तुलना में दोगुनी है, लेकिन शिक्षक गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते हैं। 15-15 रुपये का सॉस मार्केट में मिल रहा है, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग आंखें मूंदे हुए है। सरकार को इस ओर भी ध्यान देना होगा।

- प्रदीप सिंह, पूर्व अध्यक्ष डेकोरेटर्स एसोसिएशन

कोई भी क्षेत्र देख लीजिए, महिलाएं कुली की तरह काम करती हैं लेकिन उन्हें पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है। अस्पताल में गरीबों का निश्शुल्क चेकअप तो हो जाता है, लेकिन उन्हें आहार किस तरह का मिलता है इसपर कोई ध्यान नहीं देता। यहीं से कुपोषण की शुरुआत होती है। जब मां को ही पौष्टिक आहार नहीं मिलेगा तो बच्चा कैसे स्वस्थ्य रहेगा। पहले माह से मां की तंदरुस्ती पर ध्यान देना होगा।

- गुरजीत सिंह, उपाध्यक्ष बैंक मोड़ बड़ा गुरुद्वारा

माता-पिता बच्चों को स्कूल जाते वक्त फल, रोटी-सब्जी, दूध जैसा पौष्टिक आहार न देकर चिप्स और कुरकुरे देते हैं। दो मिनट में मैगी बनकर तैयार हो जाती है, मां अपना समय तो बचा लेती है लेकिन बच्चों के पौष्टिक आहार की चिंता नहीं करती। गरीब तो छोडि़ए अब तो अमीरों के बच्चे भी कुपोषित हो रहे हैं। इसका बड़ा कारण फास्टफूड है। जागरूक होना पड़ेगा। 

- छवि सिन्हा, गृहिणी एवं पूर्व शिक्षिका

सरकार की कुपोषण को लेकर जो भी योजनाएं बन रही हैं, वो अंतिम आदमी तक पहुंच रही हैं या नहीं, यह देखने की जरूरत है। लाख योजनाएं बन जाएं, खुराक भी उपलब्ध हो, लेकिन जब वो जरूरतमंद तक पहुंचे ही नहीं तो इसका क्या फायदा। इसके साथ-साथ लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा। 

- रनीता गंगवाल, गृहिणी

बच्चे को आंगनबाड़ी में प्रत्येक सप्ताह आयरन गोली नहीं मिल पाती, न ही पौष्टिक आहार। जिस तरह से चिप्स और कुरकुरे का ऐड किया जाता है, उसी तरह फलों का भी प्रचार होना चाहिए ताकि बच्चों और बड़ों दोनों को पौष्टिक आहार मिल सके। 

- नीलाशी गुप्ता, सामाजिक कार्यकर्ता

पोषण सखी को खुद पता नहीं कि किस प्रकार की दवाई कब और किसे दी जाए। सेविका से उच्च अधिकारी तक आंगनबाड़ी सेविकाओं से रुपयों की मांग करते हैं। बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति इनका काम न रहकर अधिकारियों की जेबें भरना रह गया है। इसी में पूरा समय बर्बाद हो जा रहा है। 

- कुमार कौशल, समाजसेवी

पूरे धनबाद में मुखिया, काउंसलर को पता नही होगा कि कितने कुपोषित बच्चे हैं। आंगनबाड़ी में गलत रिपोर्ट बनती है। सही तरीके से मॉनीटङ्क्षरग नहीं होती। स्कूल में मौजूद स्कूल प्रबंध समिति भी यह तो देखती है भोजन बन रहा है, लेकिन इसकी गुणवत्ता चेक नहीं की जाती।

- रूपलाल महतो, रेलवे चाइल्डलाइन को-ऑर्डिनेटर

लोगों को पता है सड़क पर कचरा नहीं फेंकना है, फास्टफूड खाने से नुकसान होगा, फिर भी लोग इसके उलट काम करेंगे। बतौर पार्षद मैं भी क्षेत्र भ्रमण पर जाती हूं तो लोगों से कहती हू कि यहां कचरा न फेंके तो जवाब मिलता है कि आपका काम है इस कचरे को साफ करना। इसलिए कुपोषण के प्रति लोगों को जागरूक होना पड़ेगा।

- अंदिला देवी, पार्षद

लोगों की सोच बदलनी होगी। शुरुआत हमें अपने घर से ही करनी होगी। सरकार पर हर चीज का ठीकरा फोडऩा सही नहीं है। आपके आसपास कुपोषित बच्चे हैं तो इसकी सूचना संबंधित पदाधिकारी को दें।

- अंशु तिवारी, नगर मंत्री एबीवीपी

इन्होंने भी रखी अपनी बातः दिनेश प्रसाद, राजीव रंजन, शंकर कुमार नापित, अरुण कुमार दास, अशोक रावत, नीरज कुमार दे, अंकित सिंह, मोहन कुमार। 


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