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जच्चा-बच्चा की माैत के बाद जागा Giridih Administration, सूरजी के गांव को ही पहाड़ से मैदान में उतारने की तैयारी

Giridih Ki News 26 फरवरी को सूरजी मरांडी को प्रसव पीड़ा हुई। दर्द से तड़पती सूरजी को स्वजन खाट पर लादकर गावां सामुदायिक अस्पताल लेकर चल दिए। रास्ते में उसने बेटी को जन्म दिया। मगर बिटिया की मौत हो गई। उपचार न मिलने से सूरजी की भी जान चली गई।

By MritunjayEdited By: Published: Tue, 02 Mar 2021 03:18 PM (IST)Updated: Wed, 03 Mar 2021 06:05 AM (IST)
जच्चा-बच्चा की माैत के बाद जागा Giridih Administration, सूरजी के गांव को ही पहाड़ से मैदान में उतारने की तैयारी
लक्ष्मी बथान गांव का रास्ता और सूरजी को खाट पर लादकर अस्पताल ले जाते स्वजन ( फाइल फोटो)।

गिरिडीह [ दिलीप सिन्हा ]। सूरजी मरांडी एवं उसके नवजात की मौत ने लक्ष्मीबथान गांव को प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता में ला दिया है। जिस गांव की आज तक प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने सुध नहीं ली, उसे विकास की दौड़ में शामिल करने की कदमताल हो रही है। पहाड़ के इस गांव तक सड़क बनाने एवं मोबाइल टावर लगाने के लिए कसरत शुरू है। बात नहीं बनी तो गांव के 24 आदिवासी एवं दलित परिवारों को मैदान में सरकारी जमीन पर बसाने की प्रशासन तैयारी कर रहा है।

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भंडेश्वर पहाड़ पर चढ़ना बेहद मुश्किल

दरअसल, गावां एवं तिसरी के भंडेश्वर पहाड़ पर आबाद लक्ष्मीबथान गांव तक पहुंचना बेहद मुश्किल है। गाड़ी छोडि़ए, बाइक से भी वहां नहीं पहुंच सकते। पहाड़ से चार किमी. पैदल नीचे उतरने के बाद पीसीसी मार्ग मिलता है। इसके बाद बिना पुल की दो बरसाती नदी पार कर आप गावां पहुंच सकते हैं। यह गांव तिसरी प्रखंड का हिस्सा है मगर वहां की दूरी 24 किमी. है। गावां की दूरी सात किमी। 

... और सूरजी व उसकी बेटी का निकल गया था दम

26 फरवरी को सूरजी मरांडी को प्रसव पीड़ा हुई। दर्द से तड़पती सूरजी को स्वजन खाट पर लादकर गावां सामुदायिक अस्पताल लेकर चल दिए। रास्ते में उसने बेटी को जन्म दिया। मगर बिटिया की मौत हो गई। जब स्वजन गावां अस्पताल पहुंचे तो कोई डॉक्टर नहीं मिला। उपचार न मिलने से सूरजी की भी जान चली गई। खाट पर मरीज को लाने एवं जच्चा-बच्चा की मौत ने समूचे समाज को झकझोर दिया। सिस्टम पर भी सवाल उठाए। डीसी राहुल कुमार सिन्हा ने जांच टीम बनाई। जो चार किमी. पैदल चलकर गांव पहुंची। यहां रहने वाले 21 आदिवासी एवं तीन दलित परिवारों की जिंदगी के दर्द से रूबरू हुई। वहां दर्द देख अधिकारियों की संवेदना जागी। गांव को मैदान में बसाने के विकल्प पर भी मंथन होने लगा। हालांकि लक्ष्मीबथान ऐसा एकमात्र गांव नहीं है जहां के ऐसे हालात हैं। पहाड़ पर आदिवासियों के दर्जनों गांव हैं जहां आवागमन का कोई साधन नहीं है। गांव के कई लोगों का कहना है कि हमारा दर्द प्रशासन समझे। हमें भी सुविधाएं मिलें। ताकि फिर किसी सूरजी की ऐसे मौत न हो। 

जच्चा-बच्चा की मौत पर चार चिकित्सकों को शोकॉज

गिरिडीह : जच्चा-बच्चा की मौत के बाद उपायुक्त की जांच रिपोर्ट मिलते ही सरकार कड़े कदम उठा रही है। सरकार के उपसचिव विद्यानंद शर्मा पंकज ने गावां पीएचसी के चार चिकित्सकों डॉ. सालिक जमाल, डॉ. नेहा कुमारी, डॉ. इरशाद अंसारी एवं डॉ. काजिम खान को शोकॉज कर एक सप्ताह में जवाब मांगा है। इनसे कहा कि लापरवाही और अनुशासनहीनता के लिए कार्रवाई होगी। दरअसल जांच टीम ने रिपोर्ट में डॉक्टर की लापरवाही का जिक्र किया है। कहा कि चिकित्सकों को प्रभारी चिकित्सा अधिकारी के लौटने तक मुख्यालय नहीं छोडऩा था।

राह दुरूह होने के कारण लक्ष्मीबथान गांव तक पहुंचना मुश्किल है। मोबाइल नेटवर्क भी वहां काम नहीं करता है। इस कारण स्वजन 108 एंबुलेंस की सेवा नहीं ले सके। गांव में कुल 24 परिवार है। गांव तक प्रशासनिक पहुंच है। वहां के लोगों के राशन कार्ड, वोटर कार्ड एवं आधार कार्ड बनाए गए हैं। पहली प्राथमिकता वहां सड़क बनाना एवं मोबाइल टावर लगवाना है। निर्देश दिए गए हैं। एक विकल्प यह भी है कि यदि वहां रहने वाले लोग चाहें तो उन्हें नीचे मैदान में सरकारी जमीन पर बसाया जा सकता है।

-राहुल कुमार सिन्हा, उपायुक्त, गिरिडीह 


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