Jharkhand के चार चेहरे जिन्होंने Bengal चुनाव में किया कमाल...आप भी जानिए चारोंं के चहेते बनने का राज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलकाता के ब्रिगेड मैदान की महती चुनावी सभा से बंगाल में चुनाव अभियान का आगाज किया तो आसनसोल में समापन। कोरोना के कहर से बंगाल के लोगों को बचाने के लिए उन्होंने मालदा मुर्शिदाबाद कोलकाता दक्षिण एवं बीरभूम की अपनी चुनावी सभाओं को स्थगित कर दिया।
धनबाद, अश्विनी रघुवंशी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलकाता के ब्रिगेड मैदान की महती चुनावी सभा से बंगाल में चुनाव अभियान का आगाज किया तो आसनसोल में समापन। कोरोना के कहर से बंगाल के लोगों को बचाने के लिए उन्होंने मालदा, मुर्शिदाबाद, कोलकाता दक्षिण एवं बीरभूम की अपनी चुनावी सभाओं को स्थगित कर दिया। उसके बदले वर्चुअल तरीके से चुनावी सभा की। बंगाल में प्रधानमंत्री ने जहां भी चुनावी सभाएं की, वहां लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। जहां तक नजर जाए, वहां तक सिर्फ लोगों के सर दिखाई दिए। चुनावी सभाओं में जो कुछ हुआ, वह सबको दिखाई दिया।
यद्यपि, पीएम की हरेक चुनावी सभा के लिए एक पखवाड़ा पहले से खूब मशक्कत हुई है। झारखंड के चार चेहरे ऐसे हैं जिन्होंने बंगाल में नरेंद्र मोदी की सफल चुनावी सभाओं के आयोजन में कमाल किया। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर रवींद्र राय, भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विनय जायसवाल, भाजपा नेता राकेश प्रसाद और धनबाद नगर निगम के पूर्व मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल को प्रधानमंत्री की हरेक सभाओं के लिए अहम जवाबदेही दी गई। इन लोगों ने प्रधानमंत्री कार्यालय, भाजपा मुख्यालय से लेकर बंगाल में मंडल स्तर के लोगों से समन्वय का काम किया। चुनावी सभा की घेराबंदी, जनसमूह के आने-जाने की व्यवस्था, बैठने के लिए कुर्सियों का इंतजाम, भीषण गर्मी में पानी की उपलब्धता समेत सारे पहलुओं को गौर किया। जहां कमी दिखाई दी, उसे तुरंत दुरुस्त कराया। बंगाल के रण में परदे के पीछे रह कर लगातार काम करने वाले चारों नेताओं को झारखंड वापसी का मौका मिल चुका है। बेहतरीन काम करने वाले इन नेताओं को भविष्य में प्रधानमंत्री की सभाओं के लिए फिर जवाबदेही दी जा सकती है।
किसी भी दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनावों की तुलना में बंगाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपेक्षाकृत अधिक सभाएं हुई। सब कुछ बिल्कुल नियोजित। रणनीति यह थी कि अधिकतम विधानसभा क्षेत्रों के लोगों को प्रधानमंत्री की सभाओं में लाया जाय। इसके लिए कई विधानसभा क्षेत्रों को मिला कर एक सभा की गई। हरेक विधानसभा क्षेत्र के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए थे। सभा के एक पखवाड़े पहले से हरेक विधानसभा क्षेत्र के मंडल अध्यक्षों के साथ बैठकें की गई। लोगों को सभा स्थल तक लाने के इंतजाम पर गौर फरमाया गया। यह बात भी आई कि तृणमूल के लोग मोदी की चुनावी सभाओं में जाने से लोगों को रोकते हैं, धमकाते हैं तो कैसे प्रतिकार किया जाएगा। हरेक विधानसभा क्षेत्र के लोगों को प्रभावित करने वाले मसलों को समझा गया। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भाजपा के स्थानीय नेताओं को चिह्नित किया गया। हवाई अड्डा और सभा स्थल पर स्वागत करने से लेकर विदा करने वालों की सूची तैयार कर स्थानीय प्रशासन को दी गई। चुनावी सभा हुई तो सभी विधानसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों को मंच पर जगह दी गई। एक-एक उम्मीदवार का नाम लेकर प्रधानमंत्री ने समर्थन देने का आह्वान किया।
दरअसल, भाजपा के रणनीतिकारों के अध्ययन में यह बात आई कि बंगाल में अधिकतम लोग नरेंद्र मोदी को देखना और सुनना चाहते हैं। जहां भी उनकी सभाएं हुई, वहां भाजपा के पक्ष में वातावरण भी तैयार हुआ। इसी कारण योजनाबद्ध तरीके से प्रधानमंत्री की अधिकतम सभाएं कराई गईं। प्रधानमंत्री के संबोधन में राष्ट्रीय एवं प्रदेश स्तरीय मुद्दे थे तो उन्होंने स्थानीय मसलों पर भी जोर दिया। आसनसोल आए तो औद्योगिक क्षेत्र के तौर पर विकास की बात उठाई। तीन साल पहले हुए सांप्रदायिक दंगा पर उन्होंने ममता दीदी की घेराबंदी की। मकसद बिल्कुल साफ था कि हरेक तरह की सोच रखने वाले मतदाताओं से भावनात्मक तौर पर जुड़ा जाय। मोदी इसमें कामयाब भी रहे।
मालदा, मुर्शिदाबाद, कोलकाता दक्षिण एवं बीरभूम में पीएम की चुनावी सभाओं का स्वरुप बदल गया। पहले मोदी खुद आने वाले थे। कोरोना के कारण वे नहीं आए। वे दिल्ली में थे। लोगों ने उन्हें एलइडी स्क्रीन पर सुना। मोबाइल, लेपटॉप एवं कंप्यूटर पर भी मोदी को सुनने का लोगों को अवसर मिला। मुर्शिदाबाद में सबसे बड़ी सभा प्रस्तावित थी। उसमें 22 विधानसभा क्षेत्रों के लोगों को बुलाया गया था। मुख्य समन्वयक के तौर पर धनबाद के पूर्व मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल वहां एक सप्ताह से डटे थे। मालदा की सभा की जवाबदेही विनय जायसवाल को मिली थी। बीरभूम की सभा में नौ विधानसभा क्षेत्रों के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में काम हुआ था। हरेक चुनावी सभा के आयोजन के लिए अलग-अलग तरह की चुनौती का भी सामना करना पड़ा। नंदीग्राम के नजदीक कांथी में प्रधानमंत्री की सभा का आयोजन किसानों की जमीन पर करना था। उसके लिए रैयतों से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना पड़ा था। चंद्रशेखर अग्रवाल को इसके लिए एक सप्ताह तक मशक्कत करनी पड़ी थी। कुछ सालों पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की बंगाल में कुछ सभाएं इसलिए टाल दी गई थी क्योंकि रैयतों ने जमीन के उपयोग के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र नहीं दिया था। विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभाओं के आयोजन में सारे पहलुओं का ध्यान रखा गया था।
वर्जन
बंगाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभाओं के आयोजन में भागीदार बनने का मौका मिलना बड़ी बात है। बेहद व्यवस्थित तरीके से उनकी सारी सभाएं हुई। अपार जनसमूह उमड़ा। किसी को तनिक भी दिक्कत नहीं। नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व अदभुत है। उनका सानिध्य सदैव स्मरणीय रहेगा।
चंद्रशेखर अग्रवाल, पूर्व मेयर, धनबाद नगर निगम