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मिट्टी के मित्र कीड़ों को मार रहा प्लास्टिक, उर्वरा शक्ति हुई आधी, हवा-पानी सोखने की क्षमता भी घटी

कृषि विज्ञानी डॉ. आदर्श श्रीवास्तव के अनुसार प्लास्टिक जमीन में दब जाते हैैं। उसे जला भी दिया जाता है। इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता नष्ट हो रही है। जो मित्र कीड़े बचते हैं उनकी शक्ति रासायनिक प्रभाव से क्षीण हो रही है।

By MritunjayEdited By: Published: Tue, 17 Nov 2020 06:39 AM (IST)Updated: Tue, 17 Nov 2020 06:39 AM (IST)
मिट्टी के मित्र कीड़ों को मार रहा प्लास्टिक, उर्वरा शक्ति हुई आधी, हवा-पानी सोखने की क्षमता भी घटी
बलियापुर कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि विज्ञानी डॉ. आदर्श श्रीवास्तव।

धनबाद [ आशीष सिंह ]। गुजरे चार -पांच दशक से प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं पर लोगों की निर्भरता बढ़ गई। यह जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, मगर इन सुविधाओं का दुष्प्रभाव सजीव जगत और पर्यावरण पर तेजी से पड़ रहा है। वर्षो तक नष्ट नहीं होने वाला प्लास्टिक जमीन में दबता जा रहा है। यह मिट्टी के लिए घातक साबित हो रहा है। इस पर कृषि विज्ञान केंद्र बलियापुर धनबाद के विज्ञानी ने सचेत किया है। उनका कहना है कि प्लास्टिक के कारण मिट्टी के अंदर केंचुआ, फफूंद जैसे कई प्रकार के मित्र कीड़े और बैक्टीरिया मर रहे हैं। इससे मिट्टी में वर्षा जल और हवा सोखने की क्षमता घट रही है। एक दशक में मिट्टी की उर्वरा शक्ति आधी हो गई है। 

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90 फीसद तक कम हुई नाइट्रोजन की मात्रा

कृषि विज्ञानी डॉ. आदर्श श्रीवास्तव के अनुसार प्लास्टिक जमीन में दब जाते हैैं। उसे जला भी दिया जाता है। इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता नष्ट हो रही है। जो मित्र कीड़े बचते हैं उनकी शक्ति रासायनिक प्रभाव से क्षीण हो रही है। कृषि विज्ञानी कहते हैैं कि पिछले एक दशक में खेती योग्य भूमि में प्राकृतिक नाइट्रोजन  90  फीसद तक कम हो गई है। फास्फोरस की मात्रा भी काम हुई है। पोटाश की मात्रा पांच साल से लगातार घट रही है। इस साल इसमें 28 फीसद की कमी आई। जिंक की मात्रा में सात से नौ प्रतिशत कमी दिखी है। आयरन की कमी 25 से बढ़कर 38 फीसद पहुंच गई। इसी तरह मिट्टी में हवा-पानी सोखने की क्षमता में पिछले एक दशक में 40 फीसद तक कमी आई है। उर्वरा शक्ति 50 फीसद तक घटी है। ऐसी स्थिति झारखंड के तकरीबन हर जिले की है।

झरिया में 23 हजार 115 टन प्लास्टिक जमा

देश में प्रदूषण के मामले में अव्वल धनबाद में हर दिन 22 टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है। यह झरिया के बनियाहीर में जमा किया जा रहा है। गुजरे तीन साल से यही हो रहा है। अभी तक यहां 23 हजार 115 टन प्लास्टिक डंप हो चुका है। नियमों का उल्लंघन कर आम कचरे (सूखा-गीला) के साथ ही इसे रखा जाता है। प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट अधिनियम 2016 के तहत इसे अगल कर रीसाइकिल के लिए भेजना है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। बनियाहीर और इसके आसपास लाखों की आबादी प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से प्रभावित हो रही है। आसपास की जमीन बंजर होती जा रही है। 

प्लास्टिक मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी खत्म करता है। अधिक वक्त बीत जाने के बाद यह  माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है। प्लास्टिक की रोकथाम में बोर्ड निगम का सहयोग कर सकता है। बोर्ड को कार्रवाई का अधिकार नहीं है।

-आरएन चौधरी, क्षेत्रीय पदाधिकारी झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

प्लास्टिक कचरे के कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति लगातार घट रही है। यह भविष्य के लिए खतरनाक है। वैसे ही दो सेंटीमीटर मिट्टी की परत बनने में एक हजार साल लगते हैं, लेकिन अपरदन के कारण इसे खत्म होने में महज कुछ सेकेंड। पिछले 40 साल में धरती की 30 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि खत्म गई है। 

- डॉ.आदर्श श्रीवास्तव, वैज्ञानिक कृषि वैज्ञानिक केंद्र बलियापुर।


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