Jharkhand : सर्वोच्च बलिदानियों को भूल गई सरकार, नौकरी व मुआवजा राशि के लिए कलेक्ट्रेट का चक्कर काट रहे परिजन
राज्य सरकार ने देश की सीमा पर या नक्सल अभियान में शहीद जवानों के परिजनों को नौकरी व मुआवजा राशि देने की घोषणा कर रखी है लेकिन इन शहीदों के परिजनों को अब तक कुछ भी नहीं मिला है।
साहिबगंज, [डॉ. प्रणेश]। मई, जून व जुलाई का महीना जिलेवासियों के लिए काफी दुखदायी रहा। इन तीन माह में जिले के तीन बेटों ने अपना बलिदान दिया। 11 मई को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के उरीपाल में एंटी नक्सल ऑपरेशन के दौरान मुफस्सिल थाना क्षेत्र के महादेवगंज निवासी व सीआपीएफ जवान मुन्ना यादव ने अपना बलिदान दे दिया। इसके अगले माह 16 जून को मुफस्सिल थाना क्षेत्र के ही डिहारी गांव निवासी रविशंकर ओझा के पुत्र कुंदन ओझा गलवन घाटी में चीनी सैनिकों से झड़प में शहीद हो गए। वे दानापुर रेजिमेंट के जवान थे। दो जुलाई को सीआरपीएफ जवान कुलदीप उरांव भी जम्मू में सीमा पर शहीद हो गए। कोरोना संक्रमण के बीच तीनों का शव यहां आया और राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। राज्य सरकार ने देश की सीमा की रक्षा करते हुए या एंटी नक्सल अभियान में शहीद हाेनेवाले जवानों के परिजनों को नौकरी व मुआवजा राशि देने की घोषणा कर रखी है, लेकिन इन तीनों शहीदों के परिजनों को अब तक राज्य सरकार की ओर से कुछ भी नहीं मिला है।
फिलहाल तीनों के परिजन कलेक्ट्रेट का चक्कर काट रहे हैं। लिखा-पढ़ी हो रही है जबकि गलवन घाटी में शहीद हुए जवानों के आश्रितों को बिहार व तेलंगाना सरकार ने पिछले माह ही नियुक्ति पत्र के साथ-साथ मुआवजा राशि भी दे दी। बिहार के समस्तीपुर जिले के रहनेवाले शहीद अमन की पत्नी को पांच जुलाई को ही कलेक्ट्रेट में निम्नवर्गीय लिपिक के पद पर नियुक्ति संबंधी पत्र दिया गया। तेलंगाना सरकार ने भी गलवन में शहीद हुए कर्नल संतोष बाबू की पत्नी को पिछले माह ही ग्रुप ए की नौकरी दे दी। पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में भी आश्रितों को नौकरी देने का कार्य अंतिम चरण में है, लेकिन झारखंड में अब तक कुछ भी नहीं हुआ है।
मुन्ना यादव व कुंदन ओझा की पत्नी को नौकरी की जरूरत : बलिदानी मुन्ना यादव व कुंदन ओझा दोनों की ही पत्नियों को सरकारी नौकरी की जरूरत है। मुन्ना यादव को दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। बेटी की उम्र छह साल तो बेटे की उम्र मात्र दो साल है। पत्नी निताई कुमारी स्नातक है। कुंदन ओझा के बलिदान के समय तो उसकी बेटी मात्र 15 दिन की थी। उनकी पत्नी भी स्नातक पास है। कुलदीप उरांव की पत्नी पश्चिम बंगाल पुलिस में कार्यरत हैं। चूंकि कुलदीप उरांव की पत्नी सरकारी सेवा में है, इसलिए उनके किसी परिजन को नौकरी मिलने की उम्मीद कम है। वैसे तीनों ही बलिदानियों के परिजनों ने जिला प्रशासन को आवेदन देकर नौकरी व मुआवजे की मांग की है, लेकिन अब तक सरकार की ओर से कोई ठोस पहल नहीं हुई है।
शहीद के परिजनों का दर्द :
- सरकार ने शहादत के समय नौकरी, मुआवजा, जमीन सहित कई सुविधाएं देने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक कुछ भी नहीं मिला है। राज्य सरकार की ओर से जब कोई सुध नहीं लेने आया तो शुक्रवार को उपायुक्त को जाकर आवेदन सौंपा। बिहार व तेलंगाना में शहीदों के परिजनों को नौकरी मिल चुकी है, लेकिन यहां कब मिलेगी कुछ नहीं कहा जा सकता। -रविशंकर ओझा, बलिदानी कुंदन ओझा के पिता।
- कुलदीप उरांव की शहादत के समय सरकार ने शहीदों को मिलनेवाली सभी प्रकार की सुविधाएं देने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक राज्य सरकार की ओर से कुछ भी नहीं मिला है। इस संबंध में जिला प्रशासन को आवेदन दिया गया है। कुछ दिन पूर्व सीआरपीएफ के एक अधिकारी यहां आए थे। वे पूरी जानकारी लेकर गए हैं। -घनश्याम उरांव, बलिदानी कुलदीप उरांव के पिता।
- राज्य सरकार ने अब तक किसी प्रकार की सहायता नहीं दी है। पति को खोने से काफी दुखी हूं। मुआवजा व नौकरी से उनकी क्षति की पूर्ति नहीं हो सकती, लेकिन जख्म पर कुछ मरहम जरूर लग जाता। हालांकि सरकार द्वारा अब तक कोई पहल नहीं हुई है। इस संबंध में जिला प्रशासन को आवेदन दिया गया है। -निताई कुमारी, बलिदानी मुन्ना यादव की पत्नी।
शहीद मुन्ना यादव के परिजनों की ओर से आवेदन मिला है, जिसे राज्य सरकार को भेज दिया गया है। शहीद कुलदीप उरांव के परिजनों की ओर से एक-दो दिन पहले ही आवेदन मिला है। इसपर आवश्यक कार्रवाई की जा रही है। शहीद कुंदन ओझा के परिजनों की ओर से अभी तक किसी प्रकार का आवेदन नहीं मिला है। -मिथिलेश झा, स्थापना उपसमाहर्ता, साहिबगंज।