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बंगाल में प्रधानमंत्री की तीसरी सभा का जिम्‍मा संभालेंगे धनबाद के पूर्व मेयर, कहा- मुझे नजरअंदाज करते पीएम

अब प्रधानमंत्री मुझे नजर अंदाज करने लगे हैं। लगता है वह पहचान गए हैं। इसलिए उनका नजरअंदाज करना बहुत अच्छा लगता है। यह कहना था पूर्व मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल का। अग्रवाल लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री की आम सभा के संयोजक बनाए गए हैं।

By Deepak Kumar PandeyEdited By: Published: Mon, 12 Apr 2021 11:36 AM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 11:36 AM (IST)
बंगाल में प्रधानमंत्री की तीसरी सभा का जिम्‍मा संभालेंगे धनबाद के पूर्व मेयर, कहा- मुझे नजरअंदाज करते पीएम
पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री की अधिकांश सभाएं झारखंड के नेताओं के जिम्मे रही है।

जागरण संवाददाता, धनबाद: अब प्रधानमंत्री मुझे नजर अंदाज करने लगे हैं। लगता है वह पहचान गए हैं। इसलिए उनका नजरअंदाज करना बहुत अच्छा लगता है। यह कहना था पूर्व मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल का। अग्रवाल लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री की आम सभा के संयोजक बनाए गए हैं। वह 22 अप्रैल को मालदा में होने वाली सभा की पूरी जिम्मेदारी निभाएंगे।

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अग्रवाल की मानें तो पश्चिम बंगाल में प्रधानमंत्री की अधिकांश सभाएं झारखंड के नेताओं के जिम्मे रही है। उनके जिम्मे यह तीसरी सभा है तो पूर्व सांसद डॉ रवींद्र राय, पूर्व प्रवक्ता राकेश प्रसाद दो-दो सभाएं कर चुके हैं। मौजूदा प्रवक्ता सरोज सिंह और गणेश मिश्रा को भी महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया है। हालांकि यह अग्रवाल के लिए नया नहीं है। वह बोकारो, धनबाद और जमशेदपुर में भी झारखंड चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री की सभाओं का आयोजन कर चुके हैं।

21 में राम 26 में वाम: बंगाल चुनाव की स्थिति पर उन्होंने कहा कि यहां दो तरह के वोटर है। एक जो वोकल है और एक साइलेंट वोटर। इसके अलावा कार्यकर्ताओं का भी अच्छा समर्थन मिल रहा है। इनमें दूसरे भी दलों के लोग हैं। अग्रवाल के मुताबिक यहां एक नारा जोर से चल रहा है 21 में राम, 26 में वाम। यह शायद इसलिए कि भाजपा कार्यकर्ताओं से अधिक दमन तृणमूल वालों ने वामपंथी कार्यकर्ताओं का किया है। उन्हें उम्मीद है कि भाजपा सरकार आएगी तो उन्हें फिर से उभरने का अवसर मिलेगा। यह नारा काम करता दिख रहा है। मजेदार बात यह है कि बंगाल के गांव में अधिक समर्थन है। हालांकि चुनाव प्रचार की वर्तमान शैली से बंगाल के लोग अभी तक अनभिज्ञ रहे थे। चुनाव में इतने व्यापक पैमाने पर रैलियों, आम सभाओं के वह अभ्यस्त नहीं दिखते। ऐसे में मेहनत दोगुनी बढ़ जाती है।


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