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Dumka ByElection 2020: उपचुनाव में मुद्दों से अधिक समीकरणों के मायने; जल, जंगल, जमीन के मुद्दे को ही धार देगा झामुमो

Dumka ByElection 2020 उपचुनाव में मुद्दों से अधिक समीकरण मायने रखते हैं। उपराजधानी में झामुमो जल जंगल जमीन के मुद्दे को ही धार देगा। वहीं भाजपा को केंद्र व पूर्व की रघुवर सरकार की उपलब्धियों से आस है। झाविमो के भाजपा में विलय से उपचुनाव का परिदृश्य बदला है।

By Sagar SinghEdited By: Published: Tue, 06 Oct 2020 11:03 PM (IST)Updated: Tue, 06 Oct 2020 11:13 PM (IST)
Dumka ByElection 2020: उपचुनाव में मुद्दों से अधिक समीकरणों के मायने; जल, जंगल, जमीन के मुद्दे को ही धार देगा झामुमो
झाविमो का भाजपा में विलय होने से दुमका विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का परिदृश्य बदलाहै।

दुमका, [राजीव]। कोविड-19 की वजह से दुमका की छेदी पान दुकान में भले पान के शौकीनों का जमावड़ा नहीं लग पा रहा हो, लेकिन पान की लत भी राजनीति से कमतर नहीं। एक बार लग गई तो मुई छुड़ाए नहीं छूटती। सो, उपचुनाव की रणभेरी के साथ ही इन दिनों एक बार फिर शाम ढलते पान के शौकीन यहां जुटने लगे हैं। उपचुनाव का गणित व समीकरण भी यहां बन-बिगड़ रहा है। चर्चा है कि दुमका उपचुनाव में मुद्दों से ज्यादा समीकरण की अहमियत है। जिसके पक्ष में समीकरण फिट, उसी की चांदी होगी।

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कोविड-19 की वजह से तकरीबन नौ माह के शासन काल में झामुमो की नेतृत्व वाली हेमंत सरकार की वर्तमान हालत सिर मुंड़ाते ओले पड़े जैसी ही है। सरकार बनने के तुरंत बाद कोविड-19 के संक्रमण की वजह से विकास की रफ्तार पर सीधा असर पड़ा है। सो, पक्ष और विपक्ष के पास विकास के नाम पर एक-दूसरे को पछाडऩे के लिए बहुत धारदार मुद्दे नहीं हैं। उपचुनाव में विकास पर पुराने ही मुद्दों को ज्यादा धार देने की कोशिश होगी।

हालांकि इन्हीं नौ महीनों में सूबे के राजनीतिक हालात जरूर बदले हैं। इसमें भाजपा में बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो का विलय होना अहम है। संताल परगना से अपनी राजनीतिक पहचान कायम करने वाले बाबूलाल मरांडी वर्ष 15 नवंबर 2000 में अलग झारखंड गठन के बाद राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने। उस वक्त वे भाजपा के सबसे कद्दावर नेता और दुमका के प्रतिनिधि थे।

बाबूलाल झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को हराकर न सिर्फ सांसद बने थे, बल्कि संताल परगना के आदिवासी वोट बैंक पर झामुमो के एकाधिकार में भी जबरदस्त सेंधमारी करने में सफल रहे थे। बाद में राजनीतिक मतभेदों के कारण बाबूलाल मरांडी ने अपनी अलग पार्टी झाविमो बना ली थी। पिछले चुनाव में दुमका से झाविमो प्रत्याशी रहीं अंजुला मुर्मू को मात्र 3156 मतों से ही संतोष करना पड़ा था। जाहिर तौर पर उपचुनाव में झाविमो के इस वोट बैंक के भाजपा में शिफ्ट होने की पूरी उम्मीद है।

इसके अलावा बिहार विधानसभा में जिस तरह से इस बार जदयू-भाजपा का गठजोड़ है, उससे यह भी कयास लगाया जा रहा है कि दुमका में जदयू अपने पांव पीछे खींच ले, हालांकि पार्टी अपनी तरफ से तैयारी में जुटी ही है, लेकिन आनेवाले दिनों में तस्वीर और साफ होगी। मालूम हो कि पिछले चुनाव में जदयू प्रत्याशी मार्शल ऋषिराज टुडू को 2409 मत मिले थे। अगर झाविमो-जदयू के वोट भाजपा में शिफ्ट हुए तो पार्टी की राह थोड़ी आसान होगी।

इधर, सत्ताधारी पक्ष झामुमो का गठजोड़ कांग्रेस और राजद से है। इसकी वजह से झामुमो को अपने परंपरागत वोट बैंक मांझी-मुस्लिम के अलावा अन्य सेक्युलर वोटरों से भी उम्मीद है। चर्चा है कि उपचुनाव में झामुमो और भाजपा के बीच ही मुकाबला होना है। शेष प्रत्याशी दंगल में सिर्फ मौजूदगी का ही एहसास कराएंगे।

उपचुनाव में तो मुद्दे पुराने ही रहेंगे। जल, जंगल, जमीन की लड़ाई झामुमो की प्राथमिकता है। चुनाव में इस मुद्द को धार दिया जाएगा। जिस तरह से कोविड-19 की वजह से सूबे में विकास बाधित है, उस गतिरोध को इस चुनाव के बाद ही दूर कर जनता से किए गए वादों को धरातल पर उतारा जाएगा। -विजय कुमार सिंह, केंद्रीय महासचिव, झामुमो।

केंद्र सरकार की उपलब्धियों के अलावा भाजपा पूर्व के रघुवर सरकार की उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच जाएगी। हेमंत सरकार की नौ माह की नाकामी और सूबे में कोयला-बालू का अवैध धंधा भी चुनाव में मुद्दा बनेगा। झाविमो का भाजपा में विलय का लाभ मिलना भी तय है। -विनोद शर्मा, चुनाव प्रभारी, भाजपा।


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