शिक्षा मंत्री ने छेड़ा असली-नकली का राग, 1932 के खतियान में नाम वालों को बताया झारखंडी
1952 में आम चुनाव हुआ था। उस चुनाव में जिन लोगों ने मतदान किया था उन्हें भी झारखंडी मानने पर विचार किया जा सकता है। हर हाल में हेमंत सरकार में स्थानीय नीति में बदलाव होगा।
बेरमो, जेएनएन। 15 नवंबर, 2000 को बिहार को बांट अलग झारखंड राज्य बनने के बाद से ही यहां की स्थानीय नीति पर राजनीति होती रही है। झारखंड नामधारी पार्टियां 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय और नियोजन नीति लागू करने की मांग करती रही है। झारखंड में पूर्व की रघुवर सरकार ने स्थानीय को परिभाषित करते हुए डेढ़ दशके से जारी विवाद को समाप्त करने की कोशिश की। झारखंड में झामुमो की सरकार बनने के बाद से स्थानीय नीति को लेकर बयानबाजी जारी है। अब शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो भी बाहरी-भीतरी की राजनीति में कूद पड़े हैं। उन्होंने कहा है कि जिसके पास 1932 का खतियान है वही असली झारखंडी है।
1952 के चुनाव में मतदान करने वालों पर किया जा सकता विचार
डुमरी के विधायक और झामुमो गठबंधन की सरकार में शिक्षा मंत्री महतो ने रविवार को बोकारो जिले स्थित अपने पैतृत गांव अलारगो में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि 1932 के खतियान में जिनके नाम हैं, वही असली झारखंडी हैं। खतियान ही असली झारखंडी की पहचान निर्धारित करेगा। उन्होंने कहा कि 1952 में आम चुनाव हुआ था। उस चुनाव में जिन लोगों ने मतदान किया था, उन्हें भी झारखंडी मानने पर विचार किया जा सकता है। हर हाल में हेमंत सरकार में झारखंड की स्थानीय नीति में बदलाव होगा। उन्होंने बताया कि हेमंत सरकार में कैबिनेट की पहली बैठक में फैसला लिया गया था कि तीन सदस्यीय समिति नई स्थानीय नीति का प्रारुप तय करेगी। इस समिति में उन्होंने अपना पक्ष रखा है। कहा है कि 1932 के खतियान को आधार बनाना चाहिए। स्थानीय नीति के लिए 1985 को आधार वर्ष मानना कतई सही नहीं है। इसमें जरूर बदलाव होगा। उन्होंने कहा कि झामुमो माटी की पार्टी है। झारखंडियों के हितों की रक्षा के लिए झामुमो प्रतिबद्ध है। नीति-सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं हो सकता।
रघुवर सरकार की स्थानीय नीति का झामुमो ने किया था विरोध
वर्ष 2016 में रघुवर सरकार ने स्थानीय नीति की घोषणा की थी। इसमें 1985 को कट ऑफ डेट निर्धारित किया गया था। उस वक्त झामुमो ने दो सत्र के दौरान सदन की कार्रवाई को बुरी तरह बाधित किया था। जगरनाथ महतो ने खूब सियासी हंगामा किया था। रघुवर सरकार ने स्थानीय नीति नहीं बदली। इस दौरान पूरे प्रदेश में इसके तहत लोगों ने प्रमाणपत्र बनवाए हैं।