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Weekly News Roundup Dhanbad: दहाड़ कर बेदम हुआ टाइगर, बच्चों के माता-पिता हुए निराश

बड़ी विकट स्थिति है भाई। घर ही तो जाना चाहते हैं। रोजी-रोटी छिन ही गई है। कम से कम सकुशल घर ही पहुंचा दीजिए। ऐसी भी क्या नाराजगी। मजदूर हैं अपराधी नहीं कि गाली-गलौज करेंगे।

By MritunjayEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 01:23 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jun 2020 01:52 PM (IST)
Weekly News Roundup Dhanbad: दहाड़ कर बेदम हुआ टाइगर, बच्चों के माता-पिता हुए निराश
Weekly News Roundup Dhanbad: दहाड़ कर बेदम हुआ टाइगर, बच्चों के माता-पिता हुए निराश

धनबाद [ आशीष सिंह ]। झारखंड में टाइगरों का बुरा हाल है। एक सरकार के बाहर हैं, इसलिए जेल के अंदर हैं। वहीं दूसरे सरकार में हैं लेकिन उनकी दहाड़ पर निजी स्कूल संचालक मजे ले रहे हैं। बात सुनकर अनसुनी कर दी जा रही है। सरकार भी अभी कोरोना में व्यस्त है। इसलिए कोई फायदा नहीं हो रहा। दहाड़ कुंद हो जा रही है। सबको मौका मिल गया है। गली-मोहल्ले में चर्चा आम हो चली है। लॉकडाउन में फीस लेंगे या नहीं, यह तय करने के लिए टाइगर के साथ स्कूल वालों की मंत्रणा हुई। सबने अपना-अपना राग अलापा। आर्थिक संकट की दुहाई दे डाली। इसके बाद बात बदल गई। कहा- स्कूलों से फीस नहीं लेने की गुजारिश की थी, आदेश तो दिया ही नहीं। फिर भी इसपर आगे चर्चा करके निर्णय लेंगे। अब स्कूलों को क्या चाहिए। मौका मिल गया तो फीस भी चालू्र। जो समझना हो, समझें।

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मजदूर हैं अपराधी नहीं

बड़ी विकट स्थिति है भाई। घर ही तो जाना चाहते हैं। रोजी-रोटी छिन ही गई है। कम से कम सकुशल घर ही पहुंचा दीजिए। ऐसी भी क्या नाराजगी। मजदूर हैं अपराधी नहीं कि गाली-गलौज करेंगे, डंडे बरसाएंगे। यह दर्द हर दिन ब्रिटिश जमाने के मैदान में छलक रहा है। इस ग्राउंड का नाम है- गोल्फ ग्राउंड। यहां थोक भाव में बसें खड़ी रहती हैं बाहर से आए कामगारों को घर पहुंचाने के लिए। भीड़ भी अच्छी खासी। उन्हें पुलिस के जवानों ने डंडे और गालियों के साथ बसों में ठूंस दिया। यह ध्यान नहीं रखा कि इनमें महिलाएं हैं, बच्चे हैं और बुजुर्ग भी। सिर्फ यही परेशानी नहीं। पहले तो विशेष ट्रेन की झेलाऊ यात्रा। उसके बाद बस के लिए चार घंटे की लाइन। फिर हाजिरी। और, तब बसों में चढऩे की बारी। तीमारदारों के हिसाब से नहीं चले तो लाठियां। लॉकडाउन ने क्या-क्या दिखा दिया।

नाले में सड़क

नगर निगम के ठेकेदार चांदी कूट रहे हैं। हो भी क्यों नहीं। सैंया जो कोतवाल ठहरे। कुछ माह पहले एक ने सड़क बनाई, दूसरा उसी के बगल में सड़क खोद कर नाला बना देता है। नाला बन गया। अब दोबारा सड़क बन रही है। आखिर दो महीने में ही सड़क तोडऩे की जरूरत क्यों पड़ गई। नाला ही बनाना था तो सड़क नहीं बनाते मगर इतनी मगजमारी क्यों करें। अभी बालू का उठाव बंद है। निर्माण कार्यों में मिट्टी मिक्स बालू का उपयोग हो रहा है। इसलिए गुणवत्ता पर सवाल उठना लाजिमी है। हुक्मरान के पास जब शिकायत पहुंची तो जवाब मिला- सब ठीक है। इसका मतलब है कि चोरी के बालू से काम हो रहा है। शहर में कई जगह फंड के अभाव में सड़क-नाली का काम रुका हुआ है। तो, कहीं विकास के नाम पर कुछ इधर-उधर तो नहीं हो रहा। कुछ तो लोचा है।

बेवड़े नहीं, यहां सब इज्जतदार

झारखंड से पहले कई राज्यों में शराब की दुकानें खुल गई थीं। होड़ लग गई। एक-एक के पास पेटी की पेटी। कई जगह पुलिस को लाठियां चटकानी पड़ीं। जब यहां शराब की दुकानें खोलने की अनुमति मिली तो प्रशासन ने पुख्ता तैयारी कर ली। साफ-सफाई हो गई। शॉप के सामने गोल घेरा बना दिया गया, पुलिस के दो-दो जवान तैनात कर दिए गए। आखिरकार इंतजार की घडिय़ां खत्म हुईं। मय के शौकीन क्या करते हैं, इसके लिए कैमरे लगे रहे। मंशा ये कि झारखंड में बेवड़ों की लाइन की फोटो लेकर वायरल करेंगे। पेटी ले जाते लोग कहीं पहचान वाले निकल गए तो मजा आ जाएगा। लेकिन यह क्या, जो सोचा वैसा हुआ नहीं। यहां तो संयम वाले लोग रहते हैं। दुकानों पर कहीं आपा-धापी नहीं। इक्का-दुक्का लोग, वो भी लाइन में। भीड़ नदारद। दो दिन बाद जवान हटा लिए गए। मय ही सब नहीं।


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