अपनी शायरी से श्रोताओं को 'राहत' दे जाते थे इंदौरी
धनबाद मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी नहीं रहे। उनको जिसने भी सुना वो उनका मुरीद हो गया। यही कारण है कि धनबाद की धरती पर उनका आगमन गाहे बगाहे होता रहा है। अपनी साहित्य की रसधार शेरो शायरी के जलवे व हास्य-व्यंग्य से उन्होंने न केवल श्रोताओं का हमेशा दिल जीता बल्कि अपना अक्स भी लोगों के जेहन में छोड़ा।
धनबाद : मशहूर शायर डॉ. राहत इंदौरी नहीं रहे। उनको जिसने भी सुना वो उनका मुरीद हो गया। यही कारण है कि धनबाद की धरती पर उनका आगमन गाहे बगाहे होता रहा है। अपनी साहित्य की रसधार, शेरो शायरी के जलवे व हास्य-व्यंग्य से उन्होंने न केवल श्रोताओं का हमेशा दिल जीता बल्कि अपना अक्स भी लोगों के जेहन में छोड़ा। उनकी शायरी के आगोश में श्रोता राहत पाते थे। उनके कार्यक्रम में खुद ब खुद भीड़ जुटती थी। तीन वर्ष पहले कतरास में दैनिक जागरण की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन में भी उन्होंने शिरकत कर श्रोताओं को अपनी रचनाओं से झुमा दिया था।
फरवरी 2018 में धनबाद में आयोजित एक कार्यक्रम में शहर में बढ़ती आबादी पर डॉ. इंदौरी का व्यंग्य खासा चर्चा में रहा। उसी वर्ष 11 नवंबर में भी वे टाउन हाल आए थे। धनबाद की धरती पर उनके पढ़े गए शेर शहर में तो बारूद का मौसम है, गांव में चलो अमरूदों का मौसम है, फैसला जो भी हो, मंजूर होना चाहिए, जंग हो या इश्क भरपूर होना होना चाहिए, सिर्फ खंजर ही नहीं आंखों में पानी चाहिए, ए खुदा मुझको दुश्मन भी खानदानी चाहिए, अब कहां ढूंढ़ने जाओगे हमारे कातिल, आप कत्ल का इल्जाम हमीं पे रख दो, हमने जिस ताख पर कुछ टूटे हुए दीया रखे है, चांद-तारों को भी ले जाकर वहीं पर रख दो आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं। वे जब रचनाएं पढ़ते तो श्रोता उनमें डूब जाते थे, उसके बाद तालियों की गड़गड़ाहट श्रोताओं में उनके प्रति प्यार और रचनाओं को दाद देने की भावनाओं को दर्शा जाती थी।