Weekly News Roundup Dhanbad: हवा-हवाई तीरंदाजी... पदक से तो चूकेंगे ही खिलाड़ी
Weekly News Roundup Dhanbad लॉकडाउन के समय से से बंद फीडर सेंटर खुलने का नाम नहीं ले रहा। वहीं जिले के तीरंदाज सुविधाओं से महरूम हैं। बोकारो में रिकर्व प्रतियोगिता में जिले के खिलाड़ी टूटे हुए धनुष के साथ पहुंचे सो आयोजकों ने उन्हें शामिल ही नहीं होने दिया।
धनबाद [ सुनील कुमार ]। वैसे तो डिगवाडीह टाटा फीडर सेंटर के तीरंदाज राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन करते रहे हैं, लेकिन अभी पिछले ही सप्ताह सिल्ली, चाईबासा और बोकारो में हुई तीन-तीन राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में जिले के धनुर्धर पदक के लिए तरसते दिखे। दरअसल लॉकडाउन के समय से से बंद फीडर सेंटर खुलने का नाम नहीं ले रहा। वहीं जिले के तीरंदाज सुविधाओं से महरूम हैं। बोकारो में रिकर्व प्रतियोगिता में जिले के खिलाड़ी टूटे हुए धनुष के साथ पहुंचे, सो आयोजकों ने उन्हें शामिल ही नहीं होने दिया! दूसरी ओर चाईबासा में इंडियन स्टाइल की स्पर्धा में भी मेडल नहीं मिला। कुल मिलाकर सिल्ली में कंपाउंड स्पर्धा में किसी तरह पांच पदक जुटा जिले की इज्जत बचाई। तीरंदाज कहते हैं कि उनके पास न धनुष है और न ही टारगेट। अभ्यास की भी कोई सुविधा नहीं। उधर जिला तीरंदाजी संघ हवा में किले बना रहा, लेकिन देता एक चवन्नी तक नहीं।
आप तो ऐसे न थे...
जिला फुटबॉल लीग शुरू होने वाला है। निबंधन की प्रक्रिया सोमवार को समाप्त हो गई, लेकिन पिछली बार की उपविजेता रही टाटा फीडर सेंटर की टीम इस बार शायद ही इसमें खेल पाए। वजह टाटा स्टील जैसी बड़ी कंपनी का नकारात्मक रवैया। टीम व खिलाडिय़ों के रजिस्ट्रेशन के लिए कम से कम पांच हजार रुपये चाहिए, लेकिन खिलाड़ी ग्रामीण परिवेश के हैं और अधिकतर आर्थिक रूप से कमजोर। वैसे कंपनी पैसे नहीं भी दे तो कुछ लोग सहयोग का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन उनके सामने संशय यह है कि क्या टाटा स्टील इस टीम के नाम को आधिकारिक रूप से इस्तेमाल करने देगी। अगर दूसरे नाम से टीम उतरेगी तो उससे ए डिवीजन खेलने की पात्रता छिन जाएगी। वही कंपनी का खेल विभाग मौन है। 'स्पोट्र्स- अ वे ऑफ लाइफÓ जैसे स्लोगन गढऩे वाली टाटा स्टील सरीखी कंपनी से तो ऐसी उम्मीद नहीं थी।
जेएससीए का संक्रमण काल
कोरोना का असर भले धीरे-धीरे कम हो रहा, लेकिन झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन (जेएससीए) इससे उबरता नहीं दिख रहा है। लगता है कोरोना काल में तगड़ी आर्थिक चपत पड़ी है। तभी तो अंपायरों को ट्रैवलिंग अलाउंस का भुगतान नहीं किया जा रहा। जेएससीए के नियमित टूर्नामेंट हो नहीं रहे। जेएससीए पैनल के अंपायरों को मैचों में पोस्टिंग नहीं मिल रही। अभी कुछ मैचों का संचालन करने गए अंपायरों को यात्रा भत्ता नहीं मिला। बेचारे परेशान हैं। ट्रेनें चल नहीं रहीं। बसों का किराया भी बेहिसाब बढ़ गया, सो अपनी ही जेब ढीली हो रही है। मैच फी भी 800 से घटा 600 रुपये कर दिया गया। कोढ़ में खाज यह कि अंपायरों को कोरोना टेस्ट कराकर आने को कहा गया। इसपर दो से ढाई हजार रुपये खर्च हो गए। उम्मीद थी कि टेस्ट के पैसे वापस मिल जाएंगे, लेकिन अब तो यह भी नामुमकिन लग रहा।
इनकी तो बहाली की दौड़
इन्हें न तो किसी चैंपियनशिप में भाग लेना है और न ही किसी पदक की ख्वाहिश है। फिर भी बिना नागा रोज सुबह जियलगोरा स्टेडियम में दौड़ते नजर आते हैं। सैकड़ों की संख्या में युवा कान में ईयरफोन ठूंसे पसीने से तरबतर चक्कर काटे जा रहे हैं। लक्ष्य है पुलिस या आर्मी में शामिल होकर देशसेवा करने का। प्रतिदिन मैदान पहुंचने वाले पुराने क्रिकेटर दीपक अग्रवाल बताते हैं कि अभी तक इस मैदान से निकल सैकड़ों युवा सुरक्षा बलों में शामिल हो चुके हैं। शहीद शशिकांत पांडेय भी कभी यहीं पसीना बहाते थे। चर्चा छिडऩे पर कुछ युवाओं ने कहा कि सिल्वर-गोल्ड की तो हमें ख्वाहिश ही नहीं है। हम तो बस बहाली निकलने का इंतजार कर रहे। जब बताया गया कि स्पोट्र्स सर्टिफिकेट का भी वेटेज बहाली में मिलता है तो जवाब दिया कि उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बस दौड़ निकालना जरूरी है।