ट्रेजडी किंग का क्रेज ही कुछ अलग था, आज भी झरिया को याद है 'ज्वार भाटा' का जमाना
झरिया के सिनेमाघर देशबंधु में लगी थी दिलीप कुमार की पहली फिल्म ज्वार भाटा। इसके बाद इस सिनेमाघर में उनकी दर्जनों फिल्में लगीं। गोपी फिल्म का प्रसिद्ध गाना रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा ..... लोकप्रिय भजन-गीत आज भी लोगों की जुबान पर है। ल
गोविंद नाथ शर्मा, झरिया। हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार का आज जन्म दिवस (Dilip Kumar 99th Birth Anniversary) है। दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर को साल 1922 पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। उनका असली नाम मोहम्मद युसुफ खान था लेकिन फिल्मों के आने के बाद वह दिलीप कुमार हो गए। अगर वो और दो साल जी गए होते तो उम्र का शतल लगा लिया होता। इसी साल 7 जुलाई, 2021 को निधन हो गया था। वे 98 साल के थे। ट्रेजडी किंग के नाम से मशहूर दिलीप कुमार को झरिया कोयलांचल से कोई खास नाता तो नहीं रहा है कि लेकिन उनके चाहने वालों की कोई कमी नहीं है। उनकी पहली फिल्म 'ज्वार भाटा' से लेकर आखिरी फिल्म 'किला' तक झरिया की देशबंधु सिनेमा घर में प्रदर्शित हुईं और लोग बड़े चाव से देखते थे।
ट्रेजडी किंग की फिल्मों के दीवाने थे झरिया कोयलांचल के लोग
झरिया के सबसे पुराने सिनेमाघर देशबंधु में लगी थी दिलीप कुमार की पहली फिल्म ज्वार भाटा। इसके बाद इस सिनेमाघर में दिलीप कुमार की दर्जनों फिल्में लगीं। गोपी फिल्म में दिलीप कुमार के गाए प्रसिद्ध भजन रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा ..... लोकप्रिय भजन-गीत आज भी लोगों की जुबान पर है। लगभग 95 वर्षीय पुराने झरिया देशबंधु सिनेमा घर के मालिक 76 वर्षीय गोपाल अग्रवाल ने कहा कि इस सिनेमाघर को यह सौभाग्य प्राप्त है कि ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार की पहली फिल्म ज्वार भाटा से लेकर आई उनकी लगभग सभी फिल्में यहां लगी हैं। दिलीप कुमार की फिल्म के झरिया वासी बहुत दीवाने थे। यही कारण है कि उनकी पहली फिल्म ज्वार भाटा जब 1944 में देशबंधु सिनेमाघर में लगी तो इसे देखने दूर-दूर से लोग सिनेमाघर में उमड़ पड़े थे। इस सिनेमाघर में दिलीप कुमार की लगने वाली लगभग सभी फिल्म में काफी भीड़ होती थी। इतना ही नहीं दिलीप कुमार की फिल्में महीनों चलती थी।
दिलीप कुमार की फिल्मों में लाजवाब लाने होते
देशबंधु सिनेमा घर के मालिक गोपाल अग्रवाल ने बताया कि दिलीप कुमार की दर्जनों फिल्में इस सिनेमाघर में लगी थीं। इन फिल्मों में अंदाज़, दीदार, देवदास, मुग़ल-ए-आज़म, दाग, जुगनू, गंगा जमुना, नया दौर, मधुमती, कोहिनूर, तराना, आन, राम और श्याम, क्रांति, विधाता, दुनिया, मजदूर, शक्ति, इज्जतदार, सौदागर, कर्मा, किला आदि शामिल हैं। लोग एक नहीं कई बार देखें हैं। तीन और चार शो सुबह 11 से रात के 11 बजे तक लोग फिल्म देखने आते थे। दिलीप कुमार की फिल्में महीनों चलती थी। उनकी फिल्में और उनके गाने लाजवाब होते थे। झरिया मानबाद निवासी बुजुर्ग प्रकाश शर्मा, हेटलीबांध के विजय सिंह, कोइरीबांध के उपेंद्र कुमार गुप्ता, फुलारीबाग के शंकर पंडित, ऊपर राजबाड़ी रोड के विजय कुमार बरनवाल ने कहा कि दिलीप कुमार अभिनय सम्राट थे। इनकी फिल्म सिनेमाघर में लगने के बाद काफी संख्या में लोग देखने आते थे। मुश्किल से टिकट मिल पाता था। उस समय टिकट का दाम 2 रुपये 10 पैसे, 3 रुपये 15 पैसे, 4 रुपये 20 पैसे और 5 रुपये 25 पैसे होते थे। फिर भी लोग एक नहीं कई बार फिल्म को देखते थे।
फिल्मों में आने से पहले ब्रिटिश आर्मी कैंटीन में करते थे काम
दिलीप कुमार ने 1947 में आई फिल्म 'जुगनू' से उन्होंने पहली बार सफलता का स्वाद चखा फिर उसके बाद उन्हें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि फिल्मों में आने से पहले वह ब्रिटिश आर्मी कैंटिन में काम करते थे। कैंटिन में उनके बनाए हुए सैंडविच बेहद मशहूर हुआ करते थे। लोग बड़े चाव से उनकी सैंडविच खाने आते थे। एक बार दिलीप कुमार ने अपनी कैंटीन में स्पीच दी कि आजादी के लिए भारत की लड़ाई एकदम जायज है और ब्रिटिश शासक भारतीयों से साथ गलत पेश आते हैं। ये किस्सा दिलीप कुमार की किताब द सब्सटांस एंड द शैडो में बखूबी बयां किया किया है। अपनी किताब 'दिलीप कुमार - द सब्सटांस एंड द शैडो' में दिलीप कुमार लिखते हैं, 'फिर क्या था, ब्रिटेन विरोधी भाषण के लिए मुझे येरवाड़ा जेल भेज दिया गया जहां कई सत्याग्रही बंद थे।
फिल्मों में ट्रेजेडी किंग के नाम से मशहूर
दिलीप कुमार ने देवदास, मुगल-ए-आजम जैसी फिल्मों में अपने शानदार अभिनय को पेश किया है। वह आखिरी बार 1998 में आई फिल्म 'किला' में नजर आए थे। 'ट्रेजेडी किंग' कहलाने वाले दिलीप कुमार ने अपने पांच दशक के फिल्मी करियर में एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में दीं। दिलीप कुमार को 2015 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया था। उन्हें 1994 में दादासाहेब फाल्के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।