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Digital India Mission: माटी ने पुकारा तो लौट आए स्वदेश, मोदी की डिजिटल टीम का बने हिस्सा

Digital India Mission विज्ञानी डॉ. राय बताते हैं कि मैं 36 देशों में रहा। अक्सर अपने देश की याद आती थी। दूसरे देशों में काम करने के दौरान जो ज्ञान व अनुभव अर्जित किया अब उसे अपने देश की तरक्की में लगाना चाहता हूं।

By MritunjayEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 09:27 PM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 08:22 AM (IST)
Digital India Mission: माटी ने पुकारा तो लौट आए स्वदेश, मोदी की डिजिटल टीम का बने हिस्सा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ डॉ. सोमेश्वर राय। डिजिटल इंडिया मिशन में साइंटिफिक एडवाइजर की सेवा दे रहे हैं।

धनबाद [ तापस बनर्जी ]। Digital India Mission भारत प्रतिभाओं का देश है। प्रतिभाएं आकाश भी छूना चाहती हैैं और माटी से भी जुड़ी रहना चाहती हैैं। धनबाद के ज्ञान मुखर्जी रोड निवासी विज्ञानी डॉ. सोमेश्वर राय भी ऐसी ही प्रतिभाओं में शुमार हैैं। शोध-अनुसंधान से 12 वर्षों से जुड़े युवा विज्ञानी विभिन्न देशों में अपनी सेवा दे चुके हैैं। विदेशों में रहने के दौरान भी डॉ. सोमेश्वर के मन में यह टीस हमेशा रही कि वह अपने वतन लौटें और अपने देश की सेवा करते हुए मिट्टी का कर्ज उतारें। मिट्टी से उनका यही जुड़ाव उन्हेंं दोबारा भारत खींच लाया और आज वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया मिशन में बतौर साइंटिफिक एडवाइजर अपनी सेवा देते हुए देशवासियों को विज्ञान व तकनीक से कदमताल कराने में मददगार साबित हो रहे हैैं। 

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तत्कालीन राष्ट्रपति से मुलाकात से बाद स्वदेश वापसी की मिली प्रेरणा 

डॉ. सोमेश्वर बताते हैैं कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनकी घर लौटने की इच्छा को दोबारा जगाया था। वर्ष 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इजरायल गए तो वहां मेरी उनसे मुलाकात हुई थी। भारतीय राजदूत जयदीप सरकार ने उनसे मुलाकात कराई थी। उस वक्त मैैं भारत और इजरायल के बीच डिफेंस रोबोटिक्स अनुसंधान पर काम कर रहा था। प्रणब दा को जानकारी दी गई कि मैैं विजिटिंग साइंटिस्ट के तौर पर सेवा दे रहा हूं। वे काफी खुश हुए। एक शाम मैैं उनके साथ था। संक्षिप्त बातचीत में उन्होंने वतन लौटने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा- अपने देश कब लौटोगे, मैं इंतजार में रहूंगा...। उनकी इस बात ने मुझे एक बार फिर भीतर से झिंझोड़ दिया। इस बीच कई देशों में आना-जाना लगा रहा। आखिरकार जनवरी 2020 में जर्मनी से स्थायी तौर पर अपने देश लौट आया हूं। तब से डिजिटल इंडिया के लिए सेवा दे रहा हूं। 

ज्ञान और अनुभव देश की सेवा में लगे, यही इच्छा...

विज्ञानी डॉ. राय बताते हैैं कि मैैंने छह विकसित देशों में शोध अनुसंधान से जुड़ा काम किया। 36 देशों का भ्रमण कर अनुभव हासिल करने का अवसर भी मिला। अक्सर अपने देश की याद आती थी। दूसरे देशों में काम करने के दौरान जो ज्ञान व अनुभव अॢजत किया, अब उसे अपने देश की तरक्की में लगाना चाहता हूं। भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए यहां विज्ञानियों और विशेष प्रतिभाओं की आवश्यकता है। हमें प्रतिभाओं का पलायन भी रोकना है और मिलकर देश की तरक्की भी करनी है। 

विरासत में मिला देश सेवा का जज्बा

डॉ. सोमेश्वर के पूर्वजों में भी देश व समाज के लिए कुछ करने का जज्बा था। इनके परिवार की धनबाद में प्रतिष्ठा है। धनबाद का पीके राय मेमोरियल कॉलेज इन्हीं के पूर्वजों की जमीन पर बना है। इनके पिता सेवानिवृत्त प्रोफेसर विद्युत राय ने भी इस कॉलेज में सेवा दी है। दादा भोलानाथ राय और उनके भाइयों ने अपने पिता पीके राय यानी प्रसन्न कुमार राय के सौजन्य से 1960 में धनबाद में उच्च शिक्षा को गति देने के लिए कई एकड़ जमीन दान दी और कॉलेज का निर्माण कराया था। हीरापुर के ज्ञान मुखर्जी रोड में डॉ. सोमेश्वर का पुस्तैनी मकान राय विला है।  हरि मंदिर के पास वाले लिंक रोड का नाम पीके राय रोड है।


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