जीना इसी का नाम है...भूखों की सेवा में रिटायर रेलकर्मी ने रोटी बैंक को सौंप दी गाड़ी की चाभी
धनबाद के मनईटांड़ में जन्मे संतोष दे का पुश्तैनी घर यहीं है। उनके पिता भी रेलकर्मी थे। फिर 1985 में उन्होंने रेलवे ने नौकरी शुरू की। अब सेवानिवृत्ति के बाद वो कोलकाता के बेहाला में शिफ्ट हो गए हैं।
धनबाद, जेएनएन। किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है...। रेलवे से रिटायर हुए संतोष कुमार दे ने बड़े शौक से मारुति ओमनी खरीदी थी। कुछ वर्षों तक उसकी सवारी भी की। एक रात जब वह धनबाद स्टेशन पर थे तो उन्होंने देखा कि बाइक लेकर कुछ युवाओं की टोली पहुंची और बाहर बैठे जरुरतमंद और असहाय लोगों को खाना परोसना शुरू किया। बाइक से एक साथ ज्यादा खाना नहीं ला सके थे। इसलिए फिर गए और खाना लेकर आए। काफी देर तक यह सिलसिला चलता रहा। दूसरे ही दिन उन्होंने युवाओं के बारे में पता करना शुरू किया। सबकुछ जानने के बाद दे ने अपन कार दान करने का फैसला लिया।
रोटी बैंक यूथ क्लब से जुड़े युवा रोजाना शहर के होटलों और दूसरी जगहों से बचा खाना इकट्ठा कर भूखों का पेट भरते हैं। चार पहिया वाहन न होने से बाइक से ही खाना लाते हैं। अब उन्होंने एक पल में ही निश्चय कर लिया और अपनी गाड़ी की चाभी रोटी बैंक को सौंप दी। धनबाद के मनईटांड़ में जन्मे संतोष दे का पुश्तैनी घर यहीं है। उनके पिता भी रेलकर्मी थे। फिर 1985 में उन्होंने रेलवे ने नौकरी शुरू की। अब सेवानिवृत्ति के बाद वो कोलकाता के बेहाला में शिफ्ट हो गए हैं। उनका एक बेटा सौमित रंजन दे न्यूजीलैंड में आइटी सेक्टर में काम करता है और दूसरा सौरभ दे कोलकाता में रहता है। उनका कहना है कि धनबाद उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों है। इसके लिए छोटी सी भेंट देकर अपना फर्ज निभाया है। रोटी बैंक से वादा भी कर गए हैं कि जब कभी जरुरत हो याद करे, वह हमेशा मदद को तैयार खड़े हैं।