यहां 10 फीट नीचे धंसी शिलाखंड पर विराजमान हैं मां काली, लेकिन मंदिर में घुसना मना Dhanbad News
आज का पुराना बाजार उस वक्त घना जंगल था और मंदिर के आसपास का हिस्सा श्मशान था। अघोरी साधु वहां मां के शिलाखंड के आसपास बैठकर साधना करते थे। आज वह शिलाखंड जमीन के 10 फीट नीचे है।
जागरण संवाददाता, धनबाद: वैसे तो धनबाद में मां काली के कई मंदिर हैं। पर पुराना बाजार काली मंदिर का अतीत तकरीबन ढाई सौ साल पुराना है। मंदिर 1771 में उस वक्त अस्तित्व में आया, जब धनबाद की अपनी कोई पहचान नहीं थी। आज का पुराना बाजार उस वक्त घना जंगल था और मंदिर के आसपास का हिस्सा श्मशान था। अघोरी साधु वहां मां के शिलाखंड के आसपास बैठकर साधना करते थे। आज वह शिलाखंड जमीन के 10 फीट नीचे है और उसके ऊपर मां विराजमान हैं।
मंदिर के मुख्य पुजारी नीलकंठ भट्टाचार्य बताते हैं कि उनके परदादा शशिभूषण भट्टाचार्य को मां काली ने स्वप्न देकर कहा था कि मैं पुराना बाजार में जिस स्थान पर निवास कर रही हूं वहां मंदिर का निर्माण कराओ। परदादा के पिता दुर्गाचरण भट्टाचार्य काशीपुर पुरूलिया के राजा के कुल पुरोहित थे। जब स्वप्न की बात बताई तो उसके बाद बांस और बिचाली की कुटिया खड़ी कर मां काली की प्राण प्रतिष्ठा की गई।
मंदिर के पास पड़े मिले थे पूजा के बर्तन और अन्य सामान: जिस जगह मंदिर बनना था, वहां पीपल का पेड़ था। पेड़ के नीचे ही पूजा के बर्तन और अन्य पूजन सामग्री भी पड़े मिले थे। उन पूजन सामग्रियों को मंदिर से सटे कुएं में विसर्जित कर दिया गया।
इस मंदिर में नहीं है दानपेटी: आमतौर पर मंदिरों में दानपेटी रहते हैं। पर मां के इस मंदिर में दानपेटी नहीं है। पुजारी कहते हैं कि मां के भक्त हर समय सहयोग के लिए तैयार रहते हैं। इसलिए दानपेटी की कभी आवश्यकता नहीं पड़ी।
मंदिर में प्रवेश है वर्जित: इस मंदिर एक और विशेषता यह भी है कि यहां भक्तों का प्रवेश वर्जित है। केवल पुजारी ही मंदिर में प्रवेश करते हैं। अगर किसी भक्त की यह इच्छा होती है कि मंदिर में अंदर जाकर मां का दर्शन करें तो उसके लिए पुजारी के घर पर स्नान कर सभी विधि-विधान को पूरा करना पड़ता है। स्नान के बाद भीगे वस्त्र में ही प्रवेश की अनुमति दी जाती है।
हर साल काली पूजा के दिन बदली जाती है प्रतिमा: इस मंदिर की प्रतिमा स्थायी नहीं है। हर साल काली पूजा के दिन प्रतिमा बदली जाती है। इससे पहले मौजूदा प्रतिमा का पूरे रीति रिवाज के साथ विसर्जन किया जाता है। नई प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होती है।
छोटाआंबोना का सूत्रधार परिवार देता है प्रतिमा को आकार: मां काली की प्रतिमा को आकार देने हर साल छोटाआंबोना के उषारा ग्राम से सूत्रधार परिवार के लोग आते हैं। जबसे मंदिर स्थापित है, तभी से इस परिवार के सदस्य प्रतिमा को आकार देते हैं।
मंदिर के मुख्य पुजारी नीलकंठ भट्टाचार्य बताते हैं कि मां काली अपने भक्तों की सारी मनोकामना पूरी करती हैं। जहां तक उनके शिलाखंड का सवाल है, तो उसे जमीन के नीचे संभवत: इसलिए गाड़ दिया गया होगा, ताकि कोई चुरा न सके। शिलाखंड कैसा और किस धातु का है, इस बारे में कहना मुश्किल है।
कचहरी रोड काली मंदिर में 85 सालों से जल रही ज्योति: वह जमाना फिरंगियों का था और साल था 1934। तभी से मां के दरबार में अखंड ज्योति जल रही है। इसके पीछे क्या सच्चाई है ये कोई नहीं जानता, लेकिन श्रद्धालु इसे मां काली का चमत्कार मानते हैं। बात हो रही है हीरापुर कचहरी रोड के पोस्टल क्वार्टर स्थित मां काली के मंदिर की। यहां निरंतर जल रही ज्योति को मां काली का प्रतीक माना जाता है।
देवी का यह मंदिर आजादी के पहले का है। मंदिर के पास रहने वाले लोगों का कहना है कि 1934 में डाक विभाग के कर्मचारी ने पूजा शुरू की थी। वह मंदिर के बगल के क्वार्टर में ही रहते थे। उन्होंने ही ज्योति जलाई थी जो अभी तक जल रही है।
मनोकामना पूरी होने पर तेल दान करते हैं भक्त: मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं, सिर्फ ज्योति है। इस ज्योति के सामने खड़े होकर भक्त मां से मनोकामना करते हैं और पूरी होने पर ज्योति में सरसो का तेल दान करते हैं।
कालीपूजा पर स्थापित होगी प्रतिमा: काली पूजा पर प्रतिमा स्थापित कर भव्य आयोजन किया जाएगा। स्थानीय लोग काली पूजा की तैयारी में जुटे हैं।
हीरापुर हटिया, हरि मंदिर और नेपाल काली मंदिर में भी होती है मनोकामना पूरी: हीरापुर हटिया और हरि मंदिर के साथ-साथ मां का भव्य मंदिर जेसी मल्लिक रोड में स्थापित है। इस मंदिर को शहरवासी नेपाल काली के रूप में जानते हैं। कई दशक पहले नेपाल बनर्जी ने इस मंदिर की स्थापना की थी। यही वजह है कि मंदिर नेपाल काली के रूप में मशहूर हुआ। मंदिर की बनावट बेहद आकर्षक है और भक्तों के लिए यह आस्था केंद्र भी है।